-आनन्द कुमार अनन्त

गर्भधारण करना प्रत्येक विवाहिता का नैतिक अधिकार होता है। मां बनने में ही दांपत्य जीवन की पूर्णता होती है। गर्भ धारण करना तथा प्रसव जीवन की सफलता एवं स्वाभाविक क्रिया होती है। यह कोई ऐसी बीमारी नहीं होती जिसके विषय में सोच-सोचकर परेशान रहा जाए। अज्ञानता या अधूरे ज्ञान के कारण कभी-कभी गर्भ और प्रसव चिन्ता का कारण बन जाता है। ख़ासकर उन महिलाओं को जो प्रथम बार गर्भवती हुई होती हैं, गर्भावस्था का भय अधिक सताता है।

अगर आप भी मां बनने जा रही हैं तो आप बहुत ही सौभाग्यशाली हैं क्योंकि आपका दांपत्य जीवन सफल होने जा रहा है। आपके लिए गर्भावस्था से संबंधित कुछ समस्याएं तथा इनका समाधान प्रस्तुत है ताकि आप तथा गर्भस्थ शिशु दोनों ही स्वस्थ एवं सुरक्षित रह सकें:-

  • गर्भधारण करते ही नियमित रूप से होने वाला मासिक स्त्राव बन्द हो जाता है तथा स्तनों के आकार प्रकार में परिवर्तन होने लगता है। इस दौरान मज़बूत तथा उचित साइज़ का ब्रा पहनें ताकि स्तन वृद्धि में रुकावट न आये।
  • गर्भावस्था के दौरान गर्भवती के शरीर में खून की कमी होने लगती है। इसका प्रभाव ‘एनीमिया’ के रूप में उजागर होता है। इस दौरान पालक एवं अंडे की ज़र्दी आदि का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। डॅाक्टर की सलाह से ‘आयरन’ की गोलियों का सेवन करते रहना चाहिए।
  • गर्भवती स्त्री के पेट, जांघ और स्तन आदि अंगों पर सफ़ेद धारी युक्त लकीरें पड़ जाती हैं जो प्रसव के बाद प्राय: ठीक हो जाती हैं। इसके लिए घबराना नहीं चाहिए।
  • गर्भावस्था के समय प्राय क़ब्ज़ की शिकायत हो जाती है। रेशेदार पदार्थों को भोजन में लेते रहना तथा खूब पानी पीकर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
  • गर्भवती का जी मिचलाना या उल्टी आना भी एक समस्या है। इससे घबराना नहीं चाहिए। छोटी इलायची को मुंह में रखकर चबाते रहने से यह परेशानी समाप्त हो जाती है।
  • गर्भावस्था में ड्राईविंग करना कोई ख़तरनाक नहीं होता किन्तु धीरे-धीरे गाड़ी चलाना ही अच्छा होता है। भीड़-भाड़ वाले इलाके से बचना गर्भवती के लिए लाभप्रद होता है।
  • गर्भधारण के 4-6 महीने तक सहवास करने में कोई हर्ज नहीं होता है तथा इससे गर्भवती या गर्भस्थ शिशु को कोई हानि नहीं पहुंचती है। सहवास के समय यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि स्त्री के पेट पर भार न पड़ने पाये।
  • गर्भावस्था के समय गर्भवती का वज़न बढ़ जाता है तथा मोटापा भी बढ़ जाता है। इससे घबराना नहीं चाहिए क्योंकि प्रसव के बाद मोटापा स्वत: ही घट जाया करता है।
  • गर्भावस्था में हारमोन अधिक उत्तेजित हो जाता है। इसी कारण गर्भवती अधिक भावुक हो जाती है तथा कभी घबराहट एवं तनाव महसूस करने लगती है। भावुकता पर अंकुछ रखना अनिवार्य होता है।
  • गर्भवती महिला को अपने घर के कामकाज करते रहना चाहिए इससे उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है किन्तु भारी वज़न उठाना, ऊंची सीढ़ियों पर मटककर चढ़ने से वर्जित करना चाहिए।
  • गर्भावस्था में पैरों, घुटनों एवं मुंह पर सूजन आ जाती है। इससे छुटकारा पाने के लिए भरपूर आराम करना चाहिए तथा प्रोटीनयुक्त भोजन करना चाहिए। अत्यधिक सूजन की अवस्था में चिकित्सक से मिल लेना चाहिए।
  • इस दौरान अगर योनिमार्ग से रक्तस्त्राव का होना प्रारंभ हो जाए तो तुरंत ही चिकित्सक से मिलना चाहिए क्योंकि यह गर्भस्त्राव का भी लक्षण हो सकता है।
  • आयरन एवं कैल्शियम गर्भवती के लिए बहुत ही आवश्यक होता है, अतएव सूखे मेवे, गुड़, अंडा, मछली, मीट, पत्तेदार सब्ज़ियां, फोलिक एसिड, विटामिन ‘बी’ की गोलियां डॅाक्टर की सलाह से लेते रहना चाहिए।
  • गर्भावस्था में कोई भी औषधि स्वविवेक से नहीं लेनी चाहिए। चिकित्सक की सलाह पर ही किसी औषधि का सेवन करना चाहिए।
  • अल्कोहल युक्त शराब पीने का शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है। नशे के सेवन से या धूम्रपान करने से उदरस्थ भ्रूण पर कुप्रभाव पड़ता है तथा गर्भपात भी हो सकता है।
  • गर्भवती को अपने गुप्तांगों की सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसका ध्यान न रखने पर संक्रमण हो सकता है, जो गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित कर सकता है।
  • गर्भावस्था के दौरान सम्पूर्ण हिफ़ाज़त करके ही उदस्थ शिशु के साथ-साथ स्वयं को भी सुरक्षित रखा जाता है। अत: इनका ध्यान रखना आवश्यक होता है।

                                                                                                            -उर्वशी

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