-दविंदर कौर, वंदना गंडोत्रा

नये-नये कपड़ों का शौक़ हर इन्सान को होता है। ख़ासकर आज का दौर दिखावेबाज़ी का दौर है। हर कोई इस दौड़ में लगा हुआ है कि वह दूसरों पर अपना अच्छा प्रभाव डाल सके। लोगों के बारे में अंदाज़ा हम उनके पहरावे से ही करने लगे हैं। अगर हम ग़ौर से देखें तो ज़्यादातर लोगों का खाना-पीना जितना ख़राब है पहरावा उतना ही सुंदर। बड़े-बड़े शहरों में हुए शोध कार्य से पता चलता है कि ज़्यादातर नौकरी पेशा औरतें बिना नाश्ता किए काम पर जाती हैं और उनके पूरे दिन के खाने-पीने में संतुलित भोजन का नामो-निशान नहीं होता। उनका ज़्यादातर वक़्त, दफ़्तरों, स्कूलों और कॉलेजों में चाय, कॉफी और स्नैकस लेकर ही निकल जाता है लेकिन उनके पहरावे रोज़ाना एक से बढ़कर एक होते हैं।

कामकाजी महिलाओं का पहरावे पर ज़्यादा ख़र्च करना तो काफ़ी हद तक उनकी ज़रूरत है पर गृहणियां भी किसी प्रकार से कपड़ों पर कम ख़र्च नहीं करती। घर बैठे-बैठे ही रोज़ाना नये-नये सूट व साड़ियां पहनना, किट्टी पार्टियों और क्लबों के लिए नये-नये कपड़े सिलवाना, कहने का मतलब है कि हर कोई दूसरे से बेहतर दिखने की चाह में अंधाधुंध पैसा ख़र्च कर रहा है। मध्यम वर्ग की औरतें या कम आमदन वाले परिवार इस चक्कर में पिसते चले जा रहे हैं क्योंकि घर में अन्य बहुत से ज़रूरी ख़र्च होते हैं। जो कई बार नज़रअंदाज़ हो जाते हैं।

इसलिए ज़रा सोचें कि आप कहीं ऐसे लोगों में से तो नहीं कि आपकी आमदन का बड़ा हिस्सा ऐसे ही व्यर्थ ख़र्च हो रहा है। हालांकि सुंदर और अच्छे व्यक्तित्व के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप कपड़ों पर ढेरों ख़र्च करें। एक औरत जिसका कपड़ों का चुनाव सही हो जैसे कि वो ठीक रंग, तल और डिज़ाइन के वस्त्र चुनती है जोकि किसी एक अवसर पर पहने जाने की बजाये काफ़ी अवसरों के लिए उपयुक्त हों और वो उनकी संभाल भी अच्छी करती हो और उनको ढंग से पहनती हो तो वो हमेशा अच्छी लग सकती है। दूसरी तरफ़ एक औरत जोकि कपड़ों पर अत्यधिक ख़र्च करती हो परन्तु कहीं भी आने-जाने के समय यह कहती हो कि मेरे पास तो कोई ढंग का सूट ही नहीं है, क्या पहनूं? इसका मतलब है कि पहले वाली औरत जिसके पास चाहे कम वस्त्र हैं पर उसकी संभाल अच्छी होने के कारण दूसरी औरत से कहीं ज़्यादा अच्छी तरह तैयार होकर जाती है।

पोशाकें चाहे कम हों लेकिन सही ढंग की हों तो ज़्यादा ख़र्च करने की क्या ज़रूरत है जैसे कि सूती कपड़ों की बजाये मिश्रित रेशों के कपड़े जिन पर हल्की कढ़ाई हो, सुंदर रंग हों, ऐसे कपड़े तरह-तरह के अवसरों पर पहने अच्छे लगते हैं। कोशिश करें कि बहुत ज़्यादा हल्के रंग न ख़रीदें। मध्यम रंग हर मौसम में ठीक रहते हैं।

इसके इलावा ख़रीदारी हिसाब से करें। अत्यधिक कपड़े इसलिये भी ख़रीदना उचित नहीं क्योंकि फ़ैशन नित्य बदलते रहते हैं। अगर ख़रीदारी हिसाब से होगी तो फ़ैशन बदल जाने पर ज़्यादा कपड़े बेकार नहीं होंगे। परन्तु फ़ैशन अगर बदल भी गया है तो समझदारी इसी में है कि आप उन कपड़ों को फ़ैशन के हिसाब से तबदील करें जैसे कि लम्बे सूटों के बाद छोटों का फ़ैशन आ जाने पर उन्हें काट कर छोटा कर लें और छोटों से लम्बे आने पर कोई लेस या डोरियां लगाकर या हिसाब से कढ़ाई वाली पट्टी लगाकर उन्हें लम्बा कर लें अन्यथा बेटियों की पैंटों के साथ पहनने वाली टॉप व कुरते सिल लें। फ़ैशन बदलने पर साड़ियों की चादरें या रज़ाइयां या उनके कवर, कंबलों के कवर, बैग, कुशन कवर आदि बनवा लें। सिल्क के सूटों और साड़ियों की ज़री वाली पट्टियां दूसरेे सूटों और दुपट्टों पर लगा लें। सूती साड़ियों के दुपट्टे या परदों की लाईनिंग बना लें।

देखने में आता है कि हर सूट के साथ नया दुपट्टा ख़रीदा जाता है हालांकि पहले ढेरों दुपट्टे पड़े होते हैं। तो क्यों न पुराने दुपट्टों को नये रंग करवा लें। नये रंग करवाने में परेशानी नहीं होती। इसी प्रकार कई प्लेन सलवारें होती हैं। उनके साथ हम नयी कमीज़ें सिलवा सकते हैं।

ख़रीदारी करने के लिए सही समय का चुनाव करें। कोई भी सीज़न जब शुरू होता है तो उसमें कपड़ा महंगा होता है। ध्यान रखें कि जब किसी प्रकार की कोई छूट हो या सीज़न के आख़िर में अच्छी और सही सेल हो उस समय ख़रीदारी करें क्योंकि ऐसे मौक़ों पर कई बार आधे दाम में अच्छी चीज़ें मिल जाती हैं। हमेशा योजना बनाकर ख़रीदारी करें इससे ज़रूरी ख़र्चे पूरे हो जाने पर आपको सही अंदाज़ा हो जाता है कि आपकी ख़रीदने की क्या क्षमता है? कुछ हद तक औरतें अपने हाथों से सिलाई, कढ़ाई करके या अन्य सजावटें करके जैसे कि अपने सूटों पर ब्लॉक प्रिंटिग, फैबरिक पेंटिंग, सिप्पी मोती लगाकर भी बाज़ारों में ख़र्च होने वाले पैसे बचा सकती हैं। इसलिये अगली बार आप कपड़ों की ख़रीद करने जाएं तो इन बातों पर विचार ज़रूर कीजियेगा।

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