-मनप्रीत कौर भाटिया
“सुनिये तो, अब तो मैं ऊब गई हूं। कुछ करना ही पड़ेगा शीला का।”
“अरे अब क्या हो गया?” राम चन्द्र ने अपनी पत्नी कौशल्या की चढ़ी हुई भौहें देखकर कहा।
“होना क्या है जी। लड़के की पढ़ाई-लिखाई और शादी पर हमने लाखों रुपए ख़र्च कर दिए, मगर उसके ससुराल वालों ने उसका कोई मोल नहीं पाया, कभी कोई अच्छी चीज़ आई है उसके ससुराल वालों से? जैसे भूखे मरते हैं वो लोग तो। ऊपर से उनकी बेटी शीला … घर का काम भी ठीक से नहीं करती और कई बातों में मेरे विरुद्ध जाने की भी कोशिश करती है। बस बहुत हो गया अब!”
“फिर क्या करें?” राम चन्द्र परेशान व गम्भीर होकर बोला।
“कुछ बोलना मत … बस ध्यान से मेरी बात सुनते जाइये।” पत्नी
“क्या?” पति ने पूछा।
“बस यही कि कल हमेशा की तरह आप और रमेश दफ़्तर चले जाना और काम वाली बाई के जाते ही शीला को किसी काम में लगाकर क़रीब बारह बजे मैं रसोई गैस खुली छोड़कर रसोई के दरवाज़े-खिड़कियां और बत्ती वग़ैरह सब बन्द कर दूंगी। कुछ देर के बाद शीला को कह दूंगी कि खाना-वाना बना रखे और खुद किसी के घर चली जाऊंगी। बस, फिर क्या है? रसोई में आते ही जल मरेगी और किसी को हम में से किसी पर शक भी नहीं होगा।”
और अगली सुबह बिल्कुल वैसे ही नियत समय पर कौशल्या किसी जान-पहचान वाले के घर चल दी। वक़्त अपनी चाल चल रहा था। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसे आए हुए एक घंटा बीत चुका है मगर अभी तक कोई ख़बर ही नहीं आई…। आख़िर वह उठ कर घर आ गई। मगर, यह क्या? अपने घर में पड़ा ताला देखकर वह हैरान ही हो गई। आस-पड़ोस से पता चला कि शीला बहुत घबराई हुई कहीं गई है। इतने में राम चन्द्र भी बेहद घबराया हुआ वहां आया और भारी गले से बोला, “जल्दी चलो कौशल्या रमेश का एक्सीडेंट … हो … गया है … वह अस्…पताल में…।” इतना कहते ही आंसू रामचन्द्र के गालों तक उतर आए। कौशल्या घबराई हुई पति के साथ स्कूटर पर सवार होकर अस्पताल पहुंची।
“डॉक्टर … साहब … हमा … रा … बेटा…।” आगे का वाक्य वह पूरा न कर पाई।
“आपके बेटे को गम्भीर चोट आने के कारण उसका खून बहुत बह चुका है। उसका ब्लड-ग्रुप दुर्लभ होने के कारण उसकी जान को बहुत ही ख़तरा बना हुआ था। मगर अब आप चिन्ता न करें, क्योंकि फ़ोन सुनते ही आपकी बहू शीला जी तुरन्त अस्पताल पहुंच गई। पति-पत्नी दोनों का ब्लड-ग्रुप एक होने की वजह से आपके बेटे की जान ख़तरे से बाहर हुई। अगर वह समय पर न आती तो…। ख़ैर अब वह ख़तरे से बाहर है, आप उसे देख सकती हैं।”
दोनों ने अन्दर जा के देखा, रमेश बेहोश पड़ा था और साथ वाले बैड पर पड़ी शीला सास-ससुर को आए देख मुस्कुरा उठी। शर्मसार हुए रामचन्द्र और कौशल्या को सिवाय पश्चाताप के कोई और बात नहीं सूझ रही थी।
आंसू गिराते हुए वे दोनों प्यार से शीला के सिर पर हाथ फेरने लगे।