-शबनम शर्मा

किसी ने सच ही कहा है- “यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता” अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। पर प्रेम, त्याग, धैर्य और सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति नारी आज कितनी शोषित, प्रताड़ित, अपमानित और उपेक्षित है, यह तो सर्वविदित है। इस समाज ने नारियों को दयनीयता और अधोगति के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया है। उनकी इस असह्य एवं हृदय विदारक दयनीय स्थिति को देखकर किसी भी सहृदय मनुष्य मात्र का हृदय करुणा से आप्लावित हो सकता है और सहज वेदना से पीड़ित हो सकता है। नारियों की इसी दयनीय स्थिति पर क्षोभ और दुःख व्यक्त करते हुए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में हैं दूध और आंखों में पानी।” भारत वर्ष की परंपरा तो नारी को शक्ति मानने की रही है। त्रेता युग में जगतनियंता शिव भी नारी के अभाव में जड़ बने रहते हैं। राम की रावण पर विजय भी शक्ति पूजा से ही संभव हो पाई थी। आधुनिक युग में भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रम में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू आदि की सक्रियता में उनकी पत्नी की भूमिका कम नहीं थी। कहने का तात्पर्य यह है कि मानवता की विकास-यात्रा में नारी शक्ति का योगदान सराहनीय रहा है।

नारी का नारीत्व उसका परम् सौंदर्य है और उसका यह सौंदर्य अपनी शक्तिरूपी सुरभि से संपूर्ण विश्व को प्रकाशित करता है। यदि उसकी शक्ति सुरभि को शक्तिविहीन करने की कोशिश की गई तो न केवल भारत को अपितु संपूर्ण विश्व को इसका अच्छा ख़ासा खामियाज़ा भुगतना ही पड़ेगा। पिंजरे में क़ैद निरीह पक्षियों की भांति आज नारियां हर तरह से पुरुषों के अधीन हैं। वे पुरुषों की दासी भोग-विलास की सामग्री मात्र बन कर रह गयी हैं। वे पाशविक-शक्ति के अहंकारी पुरुषों के उचित-अनुचित हर इशारे पर नाचने को विवश हैं और एक चलती-फिरती मूक कठपुतली की तरह घर की चारदीवारियों में क़ैद घुटनभरी ज़िंदगी व्यतीत कर रही हैं। और यदि कोई नारी अपने अंदर साहस जुटाकर अपने ऊपर पुरुषों द्वारा किये गये तमाम अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाती है तो वह विद्रोही, उच्छृंखल और कुल-कलंकिनी करार दी जाती है। सर्वाधिक शर्मनाक स्थिति तो यह है कि आज के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के पुरुष भी नारियों को अपमानित और प्रताड़ित करने से नहीं चूकते। हां, उन्होंने नारियों को शिक्षा पाने की अनुमति अवश्य दी है। लेकिन उसे अपनी इच्छानुसार मर्यादित जीवन जीने की स्वच्छंदता नहीं दी गई है।

नौकरी करने वाली महिलाओं का तो और दोहरा शोषण हो रहा है। उनका अब कमाना और चूल्हा फूंकना दोनों काम हो गए हैं। शायद यह समाज भूल गया है कि नारी ही समाज की आधारशिला है। एक नारी ही अभिमन्यु-सा वीर, अर्जुन, कृष्ण, सुभाष चंद्र, भगत सिंह पैदा कर सकती है। आज का समाज नारी को गर्भ में ही मिटाने को तुला है, शायद नहीं जानता कि वो नारी को नष्ट कर खुद को बर्बाद कर रहा है। नारी की खुली सांस, उच्च विचार उसकी सूझ-बूझ ही समाज में बदलाव ला सकती है। नारी एक पुरुष से कहीं ज़्यादा समझदार व दूरदर्शी होती है। वह विलासिला से दूर अपनी ममता की छांव में सम्पूर्ण परिवार का पोषण करने की क्षमता रखती है जबकि ये पुरुष के बस की बात नहीं। नारी प्रकृति है वह सृजन करना जानती है। नारी को समाज में उसका स्थान मिलना ही चाहिए। इतिहास गवाह है कि जहां सीता-सी, यशोदा मां जैसी नारियां हुई हैं, वहीं दूसरी ओर रानी लक्ष्मीबाई, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी जैसी महिलाएं भी हमारे भारत में ही जन्मी हैं। आज देश में कोई भी क्षेत्र नारियों से अछूता नहीं है। लेखन, डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, सेना, दफ़्तर, घर, बाहर सब जगह वो बड़ी तनमन्यता व कार्यकुशलता से कार्यरत हैं। सिर्फ़ ज़रूरी है समाज की सोच का बदलाव, जो कि आज भी नारियों को हीन भावना तले दबा रहा है। इसलिए ज़रूरी है उनका स्थान उन्हें देना ताकि समाज का आधार संतुलित रहे वह चिंगारी बन समाज में उद्दंडता भरा माहौल पैदा न करे।

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