उस पैसे वाले को अपने किसी रिश्तेदार के लिए खून की ज़रूरत थी। मनु ने चंद रुपए की ख़ातिर अपने जिस्म का खून उसको दे दिया। बदले में उस आदमी ने मनु के हाथ में कुछ रुपए थमा दिए। नोट हाथ में आते ही उसके सूखे तिनके समान बदन में कुछ जान आ गई थी। वह उन पैसों को लेकर सीधे अपने घर की तरफ़ भागा। जब पेट की भूख ने उसे रास्ते में कितनी जगह पर रोकना चाहा, तो उसकी कम होती रफ़्तार ये सोचकर एकदम अपने आप तेज़ हो जाती कि वह अकेला ही भूखा नहीं है घर में इस वक़्त उस का परिवार भी भूखा है तो भला वह अकेला कैसे खा सकता है। रास्ते में खाने-पीने की दुकानों तथा ढाबों पर बढ़िया लज़ीज़ खाने की खुशबू ने उसके दौड़ते पांवों में बेड़ी अटकानी चाही मगर उसके मन के अटल फ़ैसले के आगे सारी कोशिश बेकार होती दिखाई दे रही थी। घर का किवाड़ धकेल कर वह जब घर में दाख़िल हुआ तो उसकी पत्नी उसके आने से पहले बड़े दो बच्चों को सुला चुकी थी मगर छोटा नवजात बेटा अभी तक अपनी माँ की छाती से चिपका अपनी भूख को शांत करने की कोशिश में जुटा हुआ था। मगर जिस माँ ने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया था भला अब उसके स्तन में दूध कैसे उतरता। पत्नी के सूखे मुरझाए चेहरे पर भूख का अहसास तथा बेटे के लिए स्नेेेेहिल आँखों में आँसू के दो कतरे। राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर की उक्ति को चरितार्थ कर रहे थे कि ‘अबला जीवन हाए तुम्हारी यही कहानी, आंचल में दूध मगर आँखों में पानी’ माँ के जिस्म से लटकते सूखे मांस के अग्र भाग को लगातार चूसने की कोशिश में बे-वजह वह अपने शैशव को थका रहा था।

   ‘बच्चे सो गए।’

  ‘हाँ….।’ उसकी पत्नी ने जवाब देते हुए कहा- ‘उन दोनों को तो मैंने पानी में थोड़ी शक्कर घोल कर पिला दी जिसे पीकर वो सो गए, मगर ये अभी भूखा है और भूखे पेट ये भला कैसे सो सकता है।’  

  ‘ये देखो।’ मनु ने बाएं हाथ की मुठ्ठी को खोलकर दिखाते हुए कहा, ‘मैंने आज किसी पैसे वाले को अपने जिस्म का खून बेचा। बदले में कुछ रुपए भी मिले हैं। मैं अभी बाज़ार जा कर कुछ न कुछ खाने को ले आता हूँ।’

‘इसके लिए थोड़ा-सा दूध भी लेते आना, मैं अब और इसे बहला नहीं सकती।’ दुखी माँ ने कहा।

‘हाँ…. हाँ तुम कुछ देर इन्तज़ार करो बस मैं गया और आया।’ इतना कहकर मनु रुपयों को मुठ्ठी में कस, बाहर चला गया। बाज़ार आकर उसको चारों तरफ़ कुछ अजीब-सा माहौल देखने को मिला। पूरे बाज़ार में अफ़रा तफ़री मची थी। अभी कुछ देर पहले बढ़िया खुशबूदार खाने वाली चीज़ों से सजा ये बाज़ार ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। अचानक वही बाज़ार एकदम सूनेपन की तस्वीर बन कर रह गया था। जहां तक उसकी नज़र जा रही थी वहां तक सारा बाज़ार बंद ही था। ये सब कैसे हो गया इसका कारण उसे मालूम नहीं हो सका? काफ़ी देर इधर-उधर की भाग-दौड़ एक चौराहे पर आकर रुकी। एक दुबला-पतला हमउम्र का व्यक्ति कूड़े के ढेर में से गिरे सामान को जल्दी-जल्दी समेट कर अपने थैले में भर रहा था।

  ‘क्या हुआ भाई?’ मनु ने क़रीब जाकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘यह अचानक बाज़ार क्यों बंद हो गया?’ उस आदमी ने मनु की तरफ़ पलट कर कुछ ऐसे देखा मानो वह उसकी सूरत में उलझे हुए हालात की एक सुलझी तस्वीर ढूंढ रहा था। वह उसके क़रीब आकर धीरे से बोला, ‘आज ही जन्मे हो क्या? तुम्हें मालूम नहीं शहर में दो अमीरों को परिवार सहित मार दिया गया है। उनके घरों में लूट पाट की ऐसी ही कई ख़तरनाक वारदातें शहर के किन्हीं हिस्सों में अभी तक जारी हैं।’

   ‘तो अब यह क्या हो रहा है?’

  ‘अंधे हो क्या? दिखाई नहीं दे रहा है कानून व्यवस्था को चुस्त करने के लिए पुलिस तुम्हारे और मेरे जैसे भूखे लोगों को धर दबोच रही है।’

  ‘लेकिन इस में हमारा क़सूर क्या है?’

   ‘हमारा क़सूर।’ वह यह कह कर पहले तो कुछ देर के लिए रुका फिर मनु की आँखों में आँखें डालकर कर बोला, ‘हमारा क़सूर है कि हम ग़रीब हैं। हमें हर रोज़ तीनों वक़्त भूख लगती है। हमारा क़सूर यह है कि हमारे टीन-टप्पर से बने झोंपड़े की दीवार किसी पैसे वाले के ऊंचे महल के साथ मिलती है। हमारा क़सूर यह है कि सड़क पर खेलते बच्चे अमीरों की कारों के लिए गति अवरोधक बन जाते हैं।’ उसने कूड़े के ढेर में से आख़िरी रोटी को निकाल, झाड़ा पोंछा और फिर अपने थैले में डाल लिया।

  ‘ये रोटियाँ तुम कहाँ ले जा रहे हो?’ मनु ने पूछा।

  ‘अपने घर।’ वह बोला, ‘ क्या पता यह अफ़रा-तफ़री धर पकड़ का माहौल और कितने दिन यूँ ही चलता रहे। पेट, उसे क्या मालूम कि बाहर की परेशान ज़िन्दगी में झूझते इनसान के पास खाने को कुछ है भी या नहीं मगर ये सूखी रोटियां हमारे पास पड़ी होंगी तो कम से कम हौसला तो रहेगा।’ उस आदमी की बातें सुन कर मनु के भीतर के आदमी को चेतना एकदम से आ गई और वह वास्तविक धरातल पर आ गया। वह स्वत: ही बड़बड़ाया, ‘बच्चे तो मेरे भी भूखे हैं, तुम मुझे भी कुछ खाने को दे दो।’

  ‘ऐ ख़बरदार।’ वह दुबला-पतला व्यक्ति किसी खूंखार शेर की भांति दहाड़ मार कर बोला, ‘अगर बच्चों की भूख की इतनी ही फ़िक्र है तो जा किसी और नुक्कड़ या चौराहे पर ऐसे बहुत से ढेर नज़र आएंगे। तुम भी उनमें से जाकर अपना और अपने बच्चों का नसीब ढूंढ लो।’

‘देखो भाई।’ मनु उसको अपनी बात समझाने के इरादे से दो क़दम ही आगे ही बढ़ा था कि अचानक कूड़े के ढेर में से वह आदमी एक लम्बे तीखे टीन के टुकड़े को उठाकर मनु के सामने हवा में लहराते हुए चिल्लाने लगा, ‘अबे ओ अपनी नीयत को क़ाबू में रख कहीं एक भूखे के हाथों दूसरे भूखे की मौत समाज के लिए तमाशा न बन जाए। जा भाग जा एक टुकड़ा भी नहीं दूंगा।’ इतना कह जैसे ही वह मनु को मारने के लिए दौड़ा। मनु वहाँ से चुपचाप सरक गया। बंद दुकानें और सुनसान बाज़ार की सड़कों पर चलते लोगों के पांव में इतनी तेज़ी थी जैसे सभी ने अपने पाँव में पहिए लगा लिए थे। काफ़ी दूर आने पर उसने एक पल के लिए रुककर थोड़ी सांस लेनी चाही तभी सामने के एक मकान में से लिफ़ाफ़ा बाहर सड़क पर आ गिरा, तो मनु की आँखों में एक चमक-सी आ गई। ‘इसमें ज़रूर खाने की चीज़ होगी।’ यह वेदना भरा अहसास उसके हृदय से निकला और उसके क़दम लिफ़ाफ़े की तरफ़ बढ़ने लगे थे कि गली के नुक्कड़ से एक कुतिया अपने छोटे-छोटे पिल्लों के साथ निकली और उस लिफ़ाफ़े को मुँह में जकड़े कुछ देर अपने सामने खड़े मनु को घूरने लगी। ‘क्यों न मैं इस कुतिया से लिफ़ाफ़ा छीन ही लूँ?’ यह सोचकर मनु ने अपने क़दमों को बढ़ाया ही था कि सामने खड़ी कुतिया ने मानो इरादे को जैसे भांप लिया था। वह गुर्रायी। इस गुर्राने की आवाज़ में माँ की ममता, मजबूरी साफ़ चमक रही थी। उस गुर्राहट में छुपी एक चेतावनी को मनु ने देखा और साफ़ सुना। मनु वहाँ से पलटकर वापिस उस घर की चौखट पर आ कर खड़ा हो गया जहाँ से अभी कुछ देर पहले यह लिफ़ाफ़ा बाहर फेंका गया था। उसने बंद किवाड़ को ज़ोर से पीटना शुरू कर दिया। घर का किवाड़ खुला तो सामने एक छोटी उम्र की लड़की खड़ी थी। मनु की फटेहाली को देखकर वह चिल्लाने लगी, ‘माँ, ओ माँ! बाहर भिखारी आया है।’

‘क्या हुआ मुन्नी क्यों चिल्ला रही हो?’ उसकी माँ बाहर की तरफ़ दौड़ती हुई आयी किन्तु सामने मनु को देखा तो वह बोली, ‘क्या चाहिए?’

  ‘मेरे बच्चे भूखे हैं कुछ खाने को दे दो।’

  ‘ठहरो देखते हैं।’ उसने अपनी बेटी का हाथ पकड़ते हुए अपने रसोइये को आवाज़ दी, ‘महाराज अगर कुछ खाने को बचा हो तो इसके लिए भी परोस दो।’

  ‘मालकिन, थोड़ा खाना बचा तो था लेकिन अभी कुछ देर पहले मैंने लिफ़ाफ़े में डालकर बाहर फेंक दिया।’

   ‘जाओ भाई कोई दूसरा घर ढूँढ लो।’ घर की मालकिन ने कहा।

   ‘अब और कहाँ जाऊं आप ही थोड़ी दया कर दीजिए।’ वह करुणा भरी आवाज़ में बोला।

‘माँ इसको जैकी वाली बची रोटियाँ दे दो।’ छोटी बच्ची ने सुझाया तो माँ फ़ौरन बोली, ‘हाँ याद आया वो हमारे डॉगी जैकी के खाने की तीन रोटियां बची पड़ी हैं कहो तो उन रोटियों पर आचार रखकर दे दूँ।’ मुन्नी की माँ ने मनु से पूछा।

  ‘दे दो मालकिन, भगवान् आपकी और बच्ची की उम्र लम्बी करे।’ मनु की आँखें भूख का अहसास कम होते देख कर चमक उठीं।

‘बाहर कौन है सावित्री? तुम सब बाहर क्या कर रहे हो?’ यह रौबदार आवाज़ घर के मालिक की थी, जिसने सबको चौंका दिया था। कुछ ही पल में भारी-भरकम देह वाला घर का मालिक उन सब के बीच आ खड़ा हो गया जैसे ही उसकी नज़र मनु की फटेहाली पर पड़ी तो वह बिन बादल बरसात की भांति बरस पड़ा, ‘ऐ भिखारी, चल घर की चौखट से नीचे उतर जा वरना धक्के मार कर नीचे फेंक दूंगा।’

  ‘मैं भिखारी नहीं हूँ, बाबू जी।’ वह अपने दोनों हाथ जोड़कर निवेदन भरे स्वर में बोला।

    ‘तो क्या राजा भोज के वंशज हो।’ घर का मालिक पूरी अकड़ के साथ बोला, ‘मैं तुम जैसे निक्कमों, मुफ़्तख़ोरों को अच्छी तरह से जानता हूँ।’

‘ओहो! आप शांत हो जाइए। ये सचमुच भूखा है और खाने की तलाश में मारा-मारा इधर-उधर फिर रहा है।’ उसकी पत्नी ने मनु के प्रति कुछ हमदर्दी व्यक्त की।

  ‘तुम चुप रहो जी। तुम्हें क्या पता इन जैसे हरामख़ोर लोगों ने ही हमारी बिरादरी के दो परिवारों की हत्या की, उनके घरों को लूट लिया। ये दिन में हमारे आगे अपने दोनों हाथ फैलाकर भुखमरी का ढोंग रचाते हैं मगर रात को यही सुअर जात हमारी गर्दन पर अपनी तलवार चलाने का मौक़ा तलाश करते हैं ऐसे कमीनों को तो अभी गोली मार देनी चाहिए।’ इतना कह घर के मालिक ने  उसे घर की चौखट से धक्का देकर दरवाज़ा बंद कर दिया। मनु के सामने एक दरवाज़ा भले ही बंद हो गया था मगर उसके दिमाग़ ने तुरन्त उसके लिए दूसरा दरवाज़ा खोलते हुए कहा, ‘यूँ लोगों के सामने हाथ फैलाकर क्यों स्वयं को मज़ाक का पात्र बना रहे हो। तेरे पास खाना ख़रीदने के लिए पैसे भी हैं।’

      ‘ओहो! यह तो मैं भूल ही गया था।’ वह अपनी भुलक्कड़ याद्दाशत को कोसता हुआ बोला, ‘मेरे पास तो पैसे हैं इन से मैं भी अमीरों की तरह बढ़िया खाना ख़रीद सकता हूँ।’ इधर-उधर भागती लोगों की भीड़ के साथ वह तेज़ क़दमों से मुड़ता हुआ सामने की तरफ़ चला गया जहाँ एक दुकानदार अपनी दुकान के अधखुले दरवाज़ों में से सामान बेच रहा था। दुकान के आगे ख़रीदारी करने वालों की भीड़ लगी हुई थी मानों वहां सब कुछ मुफ़्त में बंट रहा था। मनु के क़दम भी उस दुकान की तरफ़ अपने आप मुड़ गए। दुकानदार पैसे वालों को मुँह मांगी क़ीमत पर सामान बेच रहा था। जो दुकान के सामने लम्बी क़तार बांधे ज्यों के त्यों धक्के खा रहे थे।

  मगर दुकानदार का पूरा ध्यान पैसे वालों की तरफ़ कुछ इस कारण भी ज़्यादा जुड़ा हुआ था क्योंकि आज लक्ष्मी जी की कृपा से अफ़रा-तफ़री के ऐसे माहौल में उसकी हर एक चीज़ दोगुने-चौगुने दामों में बेरोकटोक बिक रही थी। दंगा-फ़साद आज उसके लिए कमाई का सबसे बढ़िया साधन साबित हो रहा था। ‘मेरे बच्चे भूखे हैं।’ मनु अपने आप में बड़बड़ाता हुआ जैसे-तैसे करके अपने आगे खड़े लोगों को थोड़ा पीछे की तरफ़ धकेल कर आख़िर दुकानदार के सामने जा पहुँचा। जिस कारण खड़ी भीड़ में काफ़ी हिलजुल हो गई थी। ‘ऐ क्या चाहिए आराम से खड़ा क्यों नहीं होता।’ दुकानदार ने कहा।

    ‘मुझे खाने का सामान दे दो।’

   ‘ला पहले पैसे दे।’ मनु झट से दुकानदार की तरफ़ एक नोट बढ़ाते हुए बोला, ‘पहले मुझको कुछ खाने के लिए दे दो, घर में मेरे बच्चे भूखे हैं।’ दुकानदार उसके नोट को थोड़ा उलटा-पलटा करके जांचने लगा तो, ‘ऐ भिखारी तेरा यह नोट नक़ली है।’ दुकानदार के मुख से ऐसी धमाकेदार बात सुनकर मनु भौचक्का रह गया। ‘त….तुम झूठ बोल रहे हो?’ मनु भी चिल्लाया। उसकी बात सुन दुकानदार ग़ुुस्से से भड़क कर बोला, ‘अबे जा होश की दवा खा अगर सामान चाहिए तो दूसरा नोट दे।’

     ‘लो मेरे पास एक दूसरा नोट भी है।’ इतना कहकर उसने दुकानदार को मुठ्ठी वाला दूसरा अंतिम नोट भी पकड़ा दिया तो उसने इस नोट की भी बारीकी से छानबीन की तो वह मनु के मुँह पर नोट को फेंकते हुए बोला,  ‘जा साले तेरी माँ की, तेरे ये दोनों नोट ही नक़ली हैं।’

    ‘ये कैसे हो सकता है?’ मनु ग़ुस्से से अपनी सफ़ाई पेश करता हुआ बोला  ‘मैंने अपने जिस्म का खून देकर ये नोट हासिल किये थे….मुझको खाना चाहिये मेरे बच्चे भूखे हैं।’

    ‘जा भाग जा, भिखारी वरना अभी पुलिस को बुलाकर सीधे हथकड़ियां लगवा दूँगा।’ दौलत के नशे में डूबे दुकानदार ने मनु का गिरेबान पकड़कर पीछे की तरफ़ धकेल दिया। पुलिस का नाम सुनते ही मनु सूखे पत्ते की तरह कांप गया और वह अपने होश और जोश को क़ाबू में रखकर क़िस्मत को कोसता हुआ भीड़ में सबसे पीछे जाकर खड़ा हो गया। तभी दूर से “बेरोज़गारी दूर करो खाने को रोटी दो” कई कण्ठों से निकलती ज़ोरदार आवाज़ एक भारी भीड़ के रूप में बढ़ती हुई उसी दुकान की तरफ़ चली आ रही थी। इधर अचानक ही दुकान के पास जमा हुई भीड़ के गले में से एकसाथ ये ज़ोरदार आवाज़ निकली ‘भूख दूर करो खाने को रोटी दो।’ तो दुकानदार घबरा गया उसने सामान बेचना बंद कर दिया और अपने इर्द-गिर्द घेरा डालकर खड़े लोगों को धक्के मार कर पीछे की तरफ़ अपने से पीछे हटाते हुए अपनी अधखुली दुकान को बंद करने लगा।

    ‘भूख दूर करो खाने को रोटी दो।’ इस आवाज़ ने एक ज़ोरदार गूंजने वाला स्वर धारण कर लिया। ये आवाज़ वहां खड़े तमाम लोगों का नारा बन चुकी थी। इस आवाज़ में वह सभी लोग शामिल थे जिनके पेट में रोटी की भूख अग्नि की तरह जलती हुई सभी को भीतर से जला रही थी। इस एक आवाज़ में ऐसी स्त्रियां भी शामिल थीं जिन्होंने गोद में उठा रखे अपने मासूम बच्चों की ख़ातिर पैसे वालों के बिस्तर पर अपने तन को चादर की भांति बिछा दिया था। इस आवाज़ में वो सभी लोग शामिल थे जिनको हर जगह सिवाये धक्का-मुक्की, लम्बी क़तारों, काला बाज़ारी के कुछ नहीं मिल पाया था। इस आवाज़ में वो सभी लोग शामिल थे जिनको कड़ी जान तोड़ मेहनत के बाद शाम को काम ख़त्म हो जाने पर उनके हाथ में असल वेतन से बड़ा हिस्सा काट कर केवल चंद रुपये ही रख दिये जाते हैं। इस आवाज़ में वो सभी लोग शामिल थे जो मनु की भांति अपना खून बेचकर आये थे जिनको बदले में धोखे से नक़ली नोट थमा दिये थे।

    भीड़ ने उग्र रूप धारण कर लिया और दुकान के किवाड़ों को तोड़ने लगे तो दुकानदार परिवार सहित दुकान के ऊपर बने मकान की छत पर चढ़ बैठा। भीड़ की इस हरकत पर उसका और उसके परिवार का खून खौल उठा फिर देखते ही देखते उसने और उसके परिवार ने नीचे खड़ी भीड़ पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिये तो चारों तरफ़ भगदड़ मच गई। हर कोई ऊपर से हो रही ईंटों पत्थरों की बरसात से अपने आप को बचाने की कोशिश में इधर-उधर कोई सुरक्षित जगह की तलाश करने लगा। मगर पैसे वाले का निशाना ग़रीब पर अचूक साबित हो रहा था। नतीजा धड़ाधड़ बरस रही ईंट पत्थरों की बौछार में किसी का सिर फट गया, किसी की आंख फूट गई, कोई मुंह से पूरी तरह लहूलुहान हो गया था। अब भूख दूर करो, रोटी दो का नारा हर किसी के शरीर पर किसी न किसी जगह से एक दर्दनाक घाव के रूप में उभर आया था। दूर से पुलिस की जीप हवा में गोलियां चलाती जब इधर को आती हुई दिखाई दी तो हर एक अपने आप को घायल अवस्था में बचाने की कोशिश में इधर-उधर भागने लगा। मौक़े का फ़ायदा मनु ने उठा लिया अपने टूटे हाथ को लेकर लंगड़ाता हुआ किसी न किसी तरीक़े वह सभी की आँखों से बचता-बचाता वहां से निकल कर इलाके के एक खण्डहर में जा छुपा।

    ‘जो दंगा करेगा लूटपाट मचायेगा हम उसको गोली मार देंगे’ पुलिस जीप के आगे लाउडस्पीकर से यह आवाज़ निकलकर सारे इलाके में गूंज रही थी। कुछ देर में शहर का सारा इलाका पुलिस की गश्त के सुपुर्द हो गया। पुलिस की गाड़ियों केे आगमन व सायरन की आवाज़ से सारा माहौल गूंजने लग गया था। कुछ देर बाद पुलिस का एक ट्रक उन सभी लोगों से भरा हुआ उस खण्डहर के सामने से निकल गया जहां मनु बचने के लिये छुपा बैठा था। ट्रक में वो सभी लोग थे जो थोड़ी देर पहले नारे लगाते हुए घायल हो गये थे। जिनको पुलिस ने शहर में दंगा और दुकानों में लूटपाट की साज़िश में गिरफ़्तार कर लिया था। गिरफ़्तार हुए लोगों के चेहरों पर कुछ हल्की-सी खुशी साफ़ झलक रही थी जो शायद इस बात का द्योतक थी कि रोटी नाम की जो चीज़ उनको गलियों सड़कों पर गला फाड़ने से हासिल नहीं हो सकी वो रोटी अपने जैसे लोगों के हाथों मार खाने के बाद अब जेल में आराम से मिल जायेगी।

उधर मनु भी अपनी टूटी बांह की तरफ़ देख दर्द में डूबा सिर्फ़ एक बात ही सोच रहा था कि यहां से निकल कर वह दुबारा जा कर अपने जिस्म का खून बेचेगा और इस बार वह खून बेचने से पहले नोटों की अच्छी तरह से परख करके ही तसल्ली करेगा कि कहीं ये भी नक़ली तो नहीं हैं?

    उधर शहर में काला बाज़ारी, जाली नोट चलाने वालों तथा ग़रीबों को लूट कर उनके हक़ को छीन कर ऐशो-आराम की ज़िंदगी से जीने वाले ऊँचे लोगों की अच्छी सेहत के लिये पुलिस ने पूरे इलाके में कर्फ़्यूू लगाकर उनकी जान माल की हिफ़ाज़त शुरू कर दी तथा अपनी वर्दी पर लगने वाले तमगों की बढ़ोतरी की फ़िक़्र में चुस्ती से गश्त करने लगे।

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