-कुलदीप सलूजा

भारत सदियों से छोटे-छोटे राज्यों में ही विभाजित रहा है। यदि किसी सम्राट ने अपनी ताक़त के ज़ोर पर इसे एक कर भी लिया तो एकीकरण के कुछ समय पश्‍चात् ही पुन: विभाजन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई। जो कि वर्तमान में भी निरंतर जारी है और आगे भी जारी रहेगी यह तय है। क्योंकि भारत की भौगोलिक स्थिति ही कुछ ऐसी है कि विभाजन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी।

जब कभी किसी देश का विभाजन होता है तो उस देश के नागरिक भी विभाजित हो जाते हैं। सामान्यत: विभाजन दो तरह के होते हैं। हम इसको इस प्रकार समझ सकते हैं कि दो भाइयों के एक संयुक्‍त परिवार में स्त्रियों के आपसी तालमेल की कमी के कारण विभाजन हुआ। दोनों ही एक ही मकान में रहते हैं। विभाजन के दौरान आपस में तय हुआ कि कारोबार तो संयुक्‍त ही रहेगा किंतु घर में दो हिस्से कर खाना और रहना अलग-अलग होगा। मकान के हिस्से हो गए। दूसरा विभाजन इस प्रकार होता है कि मकान के साथ-साथ कारोबार का भी विभाजन हो जाता है। उसी प्रकार देश के विभाजन दो प्रकार के होते हैं। एक दोनों देशों की अपनी-अपनी सीमाएं तय हो जाती है और अलग-अलग होकर दोनों देशों को स्वतंत्र रूप से चलाया जाता है जैसे भारत और पाकिस्तान। दूसरा वह विभाजन है जो ऊपर बताया जा चुका है। वह विभाजन इस प्रकार है कि देश के अंदर ही राज्य कई भागों में विभाजित होते जाते हैं परंतु केंद्र में शासन एक ही होता है। जैसे मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश उत्तरांचल इत्यादि। जिस तरह घर के विभाजन में आपसी मतभेद कारण बनते हैं उसी प्रकार देश के विभाजन में उनकी भौगोलिक स्थिति मुख्य कारण होती है।

विश्‍व में जिन-जिन देशों में विभाजन हुए उन देशों की सीमाओं के मध्य उत्तर से ईशान कोण होते हुए मध्य पूर्व वाले भाग में ऊंचाई है और देश की बाक़ी अन्य दिशाएं नीचाई लिए हुए हैं। क्योंकि वास्तु सिद्घांत है कि अगर उत्तर ईशान और पूर्व ऊंचे हों, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्‍चिम और वायव्य निचले हों तो धन और संतान के साथ-साथ परिवार का नाश होगा। अर्थात् देश के मामले में धन हानि के साथ-साथ देश के टुकड़े होंगे और विभाजन के दौरान जनसंहार भी होगा। जैसे कि भारत के विभाजन के दौरान हुआ।

विभाजन के पूर्व भी भारत की उत्तर दिशा में हिमालय, ईशान के साथ मिलकर पूर्व दिशा में भी पहाड़ी थी जहां असम, मिज़ोरम इत्यादि थे जो अभी भी हैं और वायव्य कोण में हिंदकुश पर्वत था।

वास्तु सिद्घांत के अनुसार आग्नेय, दक्षिण और नैऋत्य निचले होकर पश्‍चिम और वायव्य उत्तर ईशान और पूर्व से ऊंचे हों तो प्‍लाट का स्वामी तरह-तरह की व्यथायों, कष्‍टों, धन के नष्‍ट तथा पारिवारिक क्षय से पी‍ड़ित होगा।

अगर आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य और पश्‍चिम निचले होकर वायव्य उत्तर, ईशान और पूर्व ऊंचे हों तो उस प्लाट के स्वामी की पत्‍नी का निधन हो जाएगा, संतान का नष्‍ट होगा, ऋणों के कारण होने वाले कष्‍टों से पीड़ित हो जाएगा।

विभाजन के पूर्व भारत की इन्हीं भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत और पाकिस्तान के निवासियों को उपरोक्‍त कठिनाइयों से विभाजन के वक्‍़त गुज़रना पड़ा।

विभाजन के पूर्व एक तरफ़ पूर्व आग्नेय मिलकर दक्षिण बढ़ा हुआ था जबकि दूसरी ओर पश्‍चिम नैऋत्य से मिलकर दक्षिण घटा हुआ था। नेपाल और भूटान के कारण उत्तर दिशा का भाग कटा हुआ था।

वास्तु सिद्घांत के अनुसार आग्नेय के कोने मात्र में बढ़ाव होता तो आर्थिक लाभ तो होगा लेकिन दुबारा ख़र्च का संकेत भी मिलता है। बीमारियों और अदालती परेशानियों की पीड़ा भी मिलेगी।

नैऋत्य में अगर बहुत बड़ा बढ़ाव होता है तो प्लाट का स्वामी अकसर बीमारियों से, शत्रुओं के द्वारा मिलने वाले कष्‍टों और धन नष्‍ट से पीड़ित होगा।

दक्षिण के साथ मिलकर अगर नैऋत्य में बढ़ाव होता है तो मालिक रोगों, प्राण-भय और अकाल मृत्यु के भय से पीड़ित होगा।

पश्‍चिम के साथ मिलकर नैऋत्य में बढ़ाव होता है तो धन का भारी नष्‍ट होगा, इसके अतिरिक्‍त प्लाट का मालिक कुसंगति और कुकर्मों के लिये बहुत पैसा ख़र्च करेगा, व्यसनों का दास बनेगा, जिद्दी बनेगा और समय-स्फूर्ति के अभाव में अधिक धन व्यर्थ करेगा।

अगर वायव्य में अधिक बढ़ाव होता है तो प्लाट का स्वामी अनेक बाधाओं, नष्टों, अधिक ख़र्च दु:ख, अशान्ति, निर्धनता तथा पुत्रों के निधन आदि का सामना करेगा।

उपरोक्‍त विभाजन के पूर्व भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण ही देश का विभाजन हुआ है सदियों तक देश पराधीन रहा, ग़रीबी रही। जिन भौगोलिक स्थिति से निर्मित वास्तुदोषों के कारण यह विभाजन हुआ वह इस प्रकार हुआ कि आज भी विभाजन के लिए आवश्यक वास्तुदोष भारत और पाकिस्तान में अभी भी विद्यमान् है। क्योंकि पाकिस्तान में ईशान कोण की तरफ़ हिंदूकुश पर्वत नाॅर्थ वेस्ट फ्रंटियर की पहाड़ियाें की ऊंचाई सबसे ज्‍़यादा हैं और पूरे पाकिस्तान की भूमि का झुकाव दक्षिण दिशा की ओर है।

पाकिस्तान की इन्हीं भौगोलिक स्थितियों के कारण इसका एक विभाजन हुआ जिससे बंग्लादेश बना और यही भौगोलिक स्थिति आगे भी विभाजित कराती रहेगी यह तय है।

इसी प्रकार भारत की भी वास्तु स्थिति अच्छी नहीं है। भारत के उत्तर दिशा एवं ईशान कोण जहां अरूणाचल प्रदेश वाला भाग ऊंचाई लिए हुए है के साथ ही पूर्व दिशा में ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं जहां इम्फाल, मिज़ोरम, नागालैण्ड, मेघालय स्थित है। यही ऊंचाई देश के विभाजन का कारण बनी। देश के वर्तमान वास्तुदोषों के कारण देश में और भी विभाजन होंगे और गंभीरता से सोचा जाए तो आज़ादी के बाद देश के कई प्रदेशों का विभाजन हुआ। विशेष तौर पर देश का ईशान कोण वाला भाग सात भागों में बंट गया। मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल, पंजाब से हरियाणा, बिहार से झारखंड अलग हुआ और मौक़ा आने पर आपस में दुश्मनों की तरह व्यवहार करते हैं। जिसका ज्वलंत उदाहरण कावेरी जल विवाद, मराठी-गैरमराठी मामला है।

1947 में भारत के विभाजन के साथ-साथ दो राष्‍ट्र और स्वतंत्र हुए थे म्यांमार और श्रीलंका। म्यांमार की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य में कभी भी इसमें विभाजन के आसार हैं। क्योंकि इसकी उत्तर दिशा, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा ऊंची एवं मध्य पश्‍चिम से लेकर नैऋत्य कोण तक नीचाई है। आग्नेय कोण का भाग पूंछ की तरह लंबा हो गया है। देश की इस भूमि का ढलान भी दक्षिण दिशा की ओर है। इस कारण देश में हमेशा विवाद रहेंगे और आर्थिक रूप से यह देश कभी भी विकसित नहीं हो पाएगा।

श्रीलंका के चारों ओर पानी है। इस देश के मध्य भाग से दक्षिण दिशा की तरफ ऊंचाई है और भूमि का ढलान पश्‍चिम वायव्य, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण की तरफ़ है। पूर्व के साथ मिलकर ईशान कोण इतना दब गया है कि उत्तरी सीमा लगभग लुप्‍त सी हो गई है और पूर्व आग्नेय बढ़ गया है। पूर्व आग्नेय के बढ़ाव के कारण हमेशा देश में अशांति रहेगी किंतु विभाजन नहीं हो सकता क्योंकि इसके मध्य उत्तर, ईशान कोण एवं मध्य पूर्व में ऊंचाई नहीं है। इसी कारण लिट्टे इतना लंबा गृहयुद्घ असफल हुए।

ऐसी ही भौगोलिक स्थिति के कारण ही कोरिया का विभाजन हुआ और वह दक्षिण और उत्तर कोरिया में बंट गया। आज दोनों एक दूसरे के भारत पाकिस्तान की तरह कट्टर दुश्मन बने हुए है क्योंकि कोरिया में भी मध्य उत्तर से लेकर ईशान कोण एवं मध्य पूर्व तक ऊंची-ऊंची पहाड़ियां है जबकि इसके मुक़ाबले दक्षिण पश्‍चिम दिशा में नीचाई है। यह वाला भाग अब उत्तर कोरिया का हिस्सा है।

रिपब्लिक ऑफ युगोस्लाविया के पश्‍चिम दिशा से लेकर नैऋत्य तक समुद्र है और बाकी भू-भाग पर पहाड़ियां हैं। देश की भूमि का पश्‍चिम और दक्षिण दिशा का भाग समतल है और पूरे देश का ढलान भी इन्हीं दिशाओं की तरफ़ था। जहां एडरिएटीक सागर है। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण यह देश आज सात भागों में बंट चुका है।

इसी प्रकार रशिया का भी विभाजन हुआ। क्योंकि रशिया की भी भौगोलिक स्थिति इसी प्रकार है। इसके ईशान कोण और पूर्व में पहाड़ियां हैं।

यमन भी दो हिस्सों में आज़ाद हुआ एक दक्षिणी यमन और दूसरा उत्तरी यमन। आज यह दोनों संयुक्‍त होकर रिपब्लिक ऑफ यमन कहलाते हैं। क्योंकि इसके उत्तर दिशा एवं ईशान कोण में नीचाई है। देश के मध्य से पश्‍चिम की ओर ऊंचाई बढ़ती गई है और उत्तर वायव्य में सबसे ज्‍़यादा ऊंचाई है। बाक़ी पश्‍चिम एवं दक्षिण दिशा का भाग नीचा है जिसके आगे समुद्र है।

सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ वियतनाम में उत्तरी वियतनाम एवं दक्षिण वियतनाम है। जो कि आज संयुक्‍त है। क्योंकि इनके पूर्व एवं ईशान कोण में ज़मीन में नीचाई है। देश के उत्तरी भाग एवं पश्‍चिम भाग में थोड़ी ऊंचाई है।

इसी प्रकार यूएई (यूनाईटेड अरब अमीरात) की पूर्व दिशा के थोड़े से भाग में छोटी पहाड़ियाें की ऊंचाई है। पूर्व दिशा के बड़े भाग में गल्फ ऑफ ओमान है और पूर्वी उत्तर दिशा में परशीयन गल्फ है। इसलिए इन दिशाओं के बीच तालमेल बना हुआ है और यूनाईटेड हैं।

एक विभाजन द्वितीय विश्‍व युद्घ के दौरान जर्मनी में भी हुआ किंतु जर्मनी की भौगोलिक स्थिति वास्तुनुकुल थी। इसके दक्षिण भाग में पहाड़ियों के कारण ऊंचाई है इसी कारण यह देश पुन: एक हो गया।

अत: यह तय है कि, विश्‍व में जितने भी देशों के आपस में विभाजन हुए हैं या होंगे इसका कारण उन देशों  की भौगोलिक वास्तु स्थिति ही है।

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