-रिपुदमन जीत ‘दमन’

बाथरूम में जाने से पहले हमने बहादुर को हिदायत दी कि यदि कोई फ़ोन आए तो नाम व नंबर नोट कर ले और कोई मिलने आये तो उसे बिठाए और हम तौलिया और कपड़े उठाए चल दिए बाथरूम की ओर।

रविवार को वैसे भी बहुत हैक्टिक-शिड्यूल होता है। अगर बाल भी धोने हों तो मानों प्रोजैक्ट ही बन जाता है। दो घंटे पहले सिर में तेल डलवाओ, फिर शैम्पू लगाओ और फिर कंडीशनर, लाख झमेले करने पड़ते हैं। खुदा न खास्ता अगर बालों में हिना लगा ली तो जुलूस ही निकल जाता है। जिसे नहीं भी आना होता वह भी आ टपकता है उस रोज़। सच में बहुत कोफ़्त होती है।

अभी बालों में शैम्पू डाला ही था कि बहादुर की घबराई हुई-सी आवाज़ सुनाई दी। वह बेतहाशा बाथरूम का दरवाज़ा पीट रहा था। पूछने पर बोला, ‘जल्दी बाहर आइए, न जाने जैकी को क्या हो गया है?’ ‘क्या हो गया जैकी को?’ हमने लगभग चीखते हुए पूछा। जैकी हमारा प्यारा-सा लाडला कुत्ता है। ‘मालूम नहीं, अभी-अभी तो ठीक था, अब देखा कि बुरी तरह से मुंह से झाग उगल रहा है और ज़मीन पर लोट रहा है। पानी के प्याले में मुंह डालता है तो वहां भी झाग ही झाग हो जाती है।’ वह रुआंसे स्वर में बोला। हमारे तो पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई। हमने घबरा कर पूछाः 

‘डॉक्टर को फ़ोन लगाया?’

‘जी मेरे पास डॉक्टर साहिब का फ़ोन नंबर नहीं है।’ उसने उत्तर दिया।

‘हमारी डायरी में से ले लो।’

‘डायरी मिल नहीं रही है।’

‘तो भैया के अॉफ़िस में फ़ोन लगाओ और सारा हाल बताकर फ़ौरन् घर आने को कहो।’

हम शैम्पू समेत ही किसी प्रकार बालों को तौलिए में लपेट बाथरूम से बाहर आए। देखा जैकी मुंह से झाग उगलते हुए छलांगे लगा रहा था। ‘हाय! मेरे रब्बा कहीं इसे रेबीज़ तो नहीं हो गई?’ परन्तु ऐसे तो कोई आसार नहीं थे। तब तक भैया भी डॉक्टर तथा उसके दो सहयोगियों संग बौखलाए हुए घर पहुंच गए थे। भैया, बहादुर, डॉक्टर तथा उसके सहयोगी जैकी को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और वह इतनी उछल-कूद मचा रहा था कि किसी प्रकार भी क़ाबू में नहीं आ रहा था।

डॉक्टर ने बहादुर को कहा कि वह जैकी के मुंह पर कपड़ा डाल कर पकड़े ताकि झाग किसी के लग न जाए। घर भर में जैसे भुकम्प आया हुआ था। आगे-आगे जैकी और पीछे-पीछे हम सब लोग। किसी के हाथ में उसका पट्टा तो किसी के चेन और किसी के कपड़ा। साथ ही डॉक्टर भांति-भांति के प्रश्न भी पूछे जा रहा था।

‘क्या पहले भी कभी ऐसे इसके मुंह से झाग आई है?’

‘जी नहीं, डॉक्टर साहब, कभी भी नहीं।’ बहादुर ने बताया।

‘आप लोगों में से इसने किसी को चाटा तो नहीं?’

‘वह तो यह रोज़ ही चाटता है। आज सुबह भी सब के बिस्तर पर जाकर चाट कर ही जगाया था।’

‘अकेला रहना पसंद नहीं करता?’

‘जी नहीं, अकेला तो यह एक क्षण के लिए भी नहीं रहता।’

‘सब के साथ बैठता है। बहुत सोशल है हमारा जैकी।’ इस बार उत्तर भैया ने दिया।

‘खाने-पीने की आदतों में कुछ अन्तर?’

‘बिल्कुल भी नहीं। आज सवेरे भी रोज़ की तरह ब्रेड और आमलेट का नाश्ता बड़े मज़े से खाया।’

‘आपने नोट किया, वह पानी से तो नहीं डरने लगा है?’

‘जी नहीं डॉक्टर साहब, पानी तो खूब पीता है। सवेरे से ही कई बार पी चुका है। पानी से तो खेलता भी है और नहाने का इतना शौक़ीन है कि स्वयं ही नल के नीचे जा खड़ा होता है।’ हमने रुआंसी आवाज़ में बताया।

डॉक्टर के चेहरे से भी परेशानी झलक रही थी। जैकी का पूरा चेकअॅप करने के पश्चात् साथ ही अनगिनत हिदायतें देकर बोला, ‘मेरा तो मश्वरा है कि इसे अस्पताल में दाख़िल करा दें। दस दिन तक इसे अंडर-ऑबज़र्वेशन रखना होगा। यदि दस दिन तक जीवित रहा तो समझिए कि रेबीज़ नहीं है और यदि मर गया तो समझो रेबीज़ थी और सब लोगों को भी इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे क्योंकि यह आप सब को चाटता रहा है। ध्यान रहे कि अब वह किसी को चाटे नहीं।’

अस्पताल और रेबीज़ के नाम पर हमारी आंखों में आंसू आ गए। हाय! हमारा जैकी, इतना प्यारा, कितना क्यूट। कॉफ़ी के रंग की चमकीली मखमली फ़र, वैसी ही आंखें जिसे देख कर भाई ने उसका नाम चन्द्र मोहन रखा हुआ था (चन्द्र मोहन पुरानी फ़िल्मों का हीरो जिसकी आंखों का रंग जैकी जैसा था) भाई आते ही कहते, ‘कहां है तुम्हारा चन्द्र मोहन?’ और वह उछलता-कूदता भाई के पैरों पर लोटने लगता। जैकी का भोला, मासूम चेहरा देखकर दिल डूबता जा रहा था। क्या हमारा लाडला जैकी मर जाएगा? भावुकतावश हम रोने लगे। अपने कुत्तों से हमें कुछ अधिक ही लगाव रहता है। हमने डॉक्टर से कहा कि आज का दिन तो हम उसे घर पर ही रखेंगे। यदि कल तक उसने झाग उगलना बंद नहीं किया तो अस्पताल में दाख़िल करा देंगे।

डॉक्टर के जाने के बाद मैंने किसी प्रकार बाल धोये, फिर बहादुर को दस्ताने पहनने को दिए क्योंकि जैकी के प्याले का पानी बार-बार बदलना पड़ रहा था। घर में तो जैसे मातम-सा छा गया था। तमाम दिन किसी ने कुछ नहीं खाया। बार-बार प्याले का पानी बदला जाता पर झाग थी कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी। सारी रात आंखों में ही कट गई। भोर समय देखा कि झाग आनी बन्द हो गई है। हृदय को कुछ ढाढ़स बंधा। सोचा भूख लगी होगी बेचारे ने कल से कुछ नहीं खाया था। फिर भी डॉक्टर से पूछे बिना कुछ देना उचित नहीं समझा। डॉक्टर को फ़ोन लगा विस्तार-पूर्वक उसका हाल बताया। उसने आकर दोबारा जैकी का मुआयना किया और तमाम डिटेल पूछने के बाद कहा कि लक्षण तो रेबीज़ के नहीं लगते, फिर भी हम लोगों को सावधान रहना चाहिए क्योंकि शिक्षित होने के नाते हमें विदित होना चाहिए कि रेबीज़ से मनुष्यों में हाईड्रोफ़ोबिया हो जाता है जो जानलेवा बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है।

जैकी हमारा है भी बहुत नटखट तथा चंचल। एक पल के लिए भी किसी एक स्थान पर नहीं टिक सकता। लालची इतना कि जो भी वस्तु उसकी पहुंच के भीतर हो उसे कभी नहीं छोड़ता। उसकी छोटी-छोटी प्यारी हरकतें याद आ रही थीं। जब हमारे पास आया तो एक महीने से भी कम आयु थी उसकी। हमने फ़्रिज में से दूध निकाला और उसे पिलाया। कुछ समय बाद जब दोबारा फ़्रिज खोला तो झट से अपना प्याला मुंह से पकड़ फ़्रिज के पास आ खड़ा हुआ। सच बहुत प्यार आया उसकी इस मासूम अदा पर। इतना छोटा और इतना समझदार? जब क़रीब दो महीने का था तो खाने की मेज़ पर से पपीता उठा कर खा गया जिसका वज़न कम-से-कम दो किलोग्राम तो रहा ही होगा। हम लोग घबरा गए कि अब नहीं बचता, लेकिन जनाब ने डकार तक नहीं लिया। सब हज़म कर गया। उस दिन से पपीता देख ऐसे उछलता है कि कुछ पूछिए मत। हर फल और सब्ज़ी उसकी कमज़ोरी है। यदि कुछ नहीं पसंद तो वह है अदरक। एक दिन शीशे की बोतल उठा लाया। बड़ी कठिनता से मुंह से छुड़वाई, बावजूद इसके बोतल तोड़ उसका कुछ भाग चबा गया। सोचा आज तो मृत्यु निश्चित है परन्तु नहीं जनाब शीशा तक भी हज़म कर गए। ऐसा है हमारा जैकी।

सोचते-सोचते जैसे हमें बिजली का करंट-सा लगा। हमने बदहवासी में बहादुर को आवाज़ लगाई और पूछा, ‘सुनो, हमने उस दिन शैम्पू के कितने सैशे मंगवाए थे?’

‘जी चार।’ उसका उत्तर था।

‘तुम्हें याद होगा, बाथरूम जाने से पूर्व हमने तुमसे कहा था कि एक सैशे हमने ड्रेसिंग-टेबल पर रखा था लेकिन मिल नहीं रहा था।’

‘जी हां, बराबर याद है। मैंने हर जगह ढूंढ़ा था लेकिन नहीं मिल रहा था। शायद आप लाना भूल गए थे। फिर आपने मुझे दूसरा लाने को कहा और फिर नहाने चले गए।’

‘जाओ जाकर देखो कि दराज़ में कितने सैशे बाक़ी हैं?’ हमारा मस्तिष्क बिजली की तेज़ी से चल रहा था। वह भाग कर गया और लौट कर बताया कि वहां केवल दो बाक़ी थे।’ 

‘इस हिसाब से तो वहां तीन होने चाहिए थे। इसका अर्थ है कि हम पहले भी एक लेकर आये थे। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे जैकी खा गया हो और यह झाग…?’ मारे प्रसन्नता के हम लगभग चीखते हुए बोले।

बहादुर का मुंह भी आश्चर्य के मारे खुले का खुला रह गया। अब रहस्य से पर्दा उठ चुका था। कहां तो सभी के चेहरे बुझे-बुझे थे और अब सब की खुशी संभले नहीं संभल रही थी। फ़ौरन् फ़ोन लगा कर डॉक्टर को बुलाया। पूरी दास्तान सुनने के पश्चात् डॉक्टर का भी हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया।

‘अच्छा हुआ आपको याद आ गया, मैं तो आज उसे अस्पताल मे भर्ती करने वाला था।’ डॉक्टर जैकी की पीठ थपथपाते हुए बोला।

‘डॉक्टर साहब अब तो जैकी ठीक है न? अब तो हम लोगों को एंटीरेबीज़ के इन्जेक्शन लगाने की आवश्यकता नहीं है न?’

‘अरे पहले आप उसे कुछ खाने को तो दीजिए। बेचारा कल का भूखा है और हां उसे हर वर्ष इन्जेक्शन अवश्य लगवाते रहिएगा।’

बहादुर ने उसके सामने खाने का प्याला ला कर रखा तो वह खाने पर ऐसे टूटा जैसे जन्म-जन्मांतर से भूखा हो। हम पास बैठे उसे अश्रुपूर्ण नेत्रों से देख रहे थे लेकिन वह आंसू खुशी के थे।          

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*