जीवन दर्शन

पलना छोड़ कर जीना सीखें

  -दीप ज़ीरवी सुबह उठना, नित्य क्रम निपटाने, खाना-पीना, बच्चे पैदा करना और सो जाना यह सब क्रियाएं करना ही आज पर्याप्‍त मान लिया गया है। मोटी-ठाड़ी भाषा में इसे ही जीना कह दिया जाता है। यदि यह जीना है तो यह कार्य तो जानवर भी करते हैं फिर उनमें और हम में, हम इन्सानों में क्या भेद रह जाता ...

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स्वयं के विश्वास से पैदा करें आत्मविश्वास

  -आकाश पाठक सफलता की सर्वश्रेष्‍ठ कुंजी है आत्मविश्‍वास। आत्मा यानि कि मन। मन में स्फुटित रंग से आंशिक विश्‍वास को आत्मविश्‍वास में बदला जा सकता है, बस आवश्यकता है तो संकल्प की। ज़िन्दगी में संकल्प और विकल्प हर समय मौजूद रहते हैं ज़रूरत है सिर्फ़ आत्मविश्‍वास की, इच्छा शक्‍ति की। अक्सर देखा जाता है कि आत्मविश्‍वास के अभाव के ...

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मीठा मीठा बोल

-धर्मपाल साहिल बेचारा कौआ, न किसी से कुछ लेता है, न देता है। फिर भी हम उसे मुंडेर पर भी बैठने नहीं देते। हमें उसके बोल अच्छे नहीं लगते। कई बार तो हम उसके मुंह पर भी यह कहने से गुरेज़ नहीं करते, ‘क्या कौए की भांति कांव-कांव लगा रखी है।’ इसके विपरीत कोयल हमें क्या देती है ? पर ...

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आत्म विश्‍वास

जब व्यक्‍ति को चारों तरफ़ से दु:ख और विपत्तियों का सामना करना पड़े, सब तरफ़ से असफलता ही प्राप्‍ति हो, अपनों से सम्बंध टूट जाएं या व्यक्‍ति जीवन के अंधकारमय पथ पर अकेला ही रह जाये, सब तरफ़ से अंधकार भरे कुएं उसे निगलने को तैयार नज़र आने लगें, तो व्यक्‍ति क्या करे ? क्या वह फिर कुछ कर सकता ...

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बहता पानी

यदि भगवान् हमारा महबूब है तो महबूब से डरना प्यार नहीं। वास्तव में डराने वाली कोई ऐजंसी भगवान् और मनुष्य के बीच में विचरन कर रही है।

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