धर्म एवं संस्कृति

धर्म और राजनीति

धर्म को अगर राजनीति से जोड़ कर देखा जाए तो चहूं ओर राजनीति का बोलबाला ही नज़र आता है और आज की राजनीति का कोई धर्म नज़र नहीं आता।

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श्ब्द की शक्ति

शब्दों के बग़ैर मनुष्य की ज़िंदगी गूंगे की ज़ुबान की तरह है। आध्यात्मिक लोग शब्दों की शक्ति समझने में समर्थ होते हैं। शब्द कभी मरते नहीं। इन के अर्थों का संदेश दिमाग़ में कीटाणुओं की तरह प्रवेश करके असर करता है।

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खुले मन से मनाएं दीपावली!

संसार के विशाल इतिहास में भारतवर्ष के समान विपुल जनसंख्या वाला कोई भी बड़ा देश अल्पसंख्यक आक्रमणकारियों से पराजित होकर इतने ज़्यादा समय तक ग़ुलाम नहीं रहा। दीपावली के इस अवसर पर ज्ञान के असंख्य दीपक भी हमें जलाने चाहिए और निर्भीक होकर यह अनुसंधान करना चाहिए

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विजय दशमी के दिन

रावण का पुतला जलाते समय लाखों, करोड़ों लोगों का केवल एक ही मत यह होता है कि रावण को माता सीता के अपहरण की सज़ा युगों के बाद भी मिल रही है। किन्तु आज के सभ्य कहे जाने वाले समाज में तो एक-दो नहीं बल्कि लाखों रावण मौजूद हैं।

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राष्ट्र निर्माण या चरित्र निर्माण

हम अपनी जड़ से कोसों दूर जा निकले हैं। आज नैतिक मूल्यों को बुद्धू बक्सा (टी.वी.) ही चबा निगल रहा है। क्या ड्रामे और क्या धारावाहिक सब में विवाहेत्तर संबंधों में उन्मुक्तता रखने, बरतने वाले बोल्ड एवं ब्यूटीफुल चरित्रों का बोल-बाला दिखाया जा रहा है।

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बहता पानी

समाज का बहुत बड़ा हिस्सा इस तरह के मॉडल की प्रतीक्षा में होता है, और ऐसे आदर्श को वह अपने इष्ट के बराबर मानने को तैयार भी हो सकता हैं, पर ऐसा मॉडल उनको कोई दिखाई देता ही नहीं और वो दुःखी होकर प्रचलित रिवायत पर ज़िंदगी जीने के इन्कारी हो जाते हैं।

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भरपूर जीएं सही दृष्टिकोण अपनाकर

महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस के अनुसार ‘किसी के द्वारा धोखा दिया जाना, ठगा जाना, अपमानित होना उतना पीड़ादायक नहीं होता जितना उस घटना को मन में बराबर घोटते रहना।’

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हिस्टीरियाः कमज़ोरी का दमन

एक महिला को मेरे पास लाया गया। युनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर है। पति की मृत्यु हो गई तो वह रोई नहीं। लोगों ने कहा बड़ी सबल है। सुशिक्षित है, सुसंस्कृत है। जैसे-जैसे लोगों ने उसकी तारीफ़ की वैसे-वैसे वह अकड़ कर पत्थर हो गई। आँसुओं को उसने रोक लिया। जो बिलकुल स्वाभाविक था, आँसू बहने चाहिएं। जब प्रेम किया है और ...

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