महिला समस्याएं

प्रथाओं की ज़ंजीर लोक लाज की ओट में चल रहा रिश्तों का कारोबार

उसके आश्‍चर्य की उस वक्‍़त कोई सीमा नहीं रहती जब संबंधियों के लालची न होने पर भी उसका बजट रस्मों-रिवाज़ों के हाथों ही लम्बा खिंचता चला जाता है।

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दो पाटन के बीच में

-दीप ज़ीरवी सदियों से नारी के पांव में परतन्त्रता की बेड़ियां खनकती रही हैं। चार दीवारी में सीमित मातृ शक्‍ति का कार्य मात्र बच्चों को जन्म देने का माना जाता रहा है। भारत आज आज़ाद है, 68 बरस हो गए आज़ादी की दुल्हन को ब्याह कर आए हुए। भारत की आज़ादी सम्पूर्ण आज़ादी नहीं, 50 प्रतिशत भारत आज भी परतंत्र ...

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अश्‍लीलता के विरुद्ध जीतना है एक और महाभारत

–मुनीष भाटिया आज यदि समाज पर दृष्टि डाली जाए तो यहां ऐसी वृत्तियां पनप रही हैं जिसमें नैतिक शिक्षा, सदाचार की अपेक्षा अनैतिकता व भ्रष्ट आचरण को महत्त्व दिया जा रहा है। इन सबका खामियाजा दुर्भाग्य से नारी समाज को भुगतना पड़ रहा है। समाज की भ्रष्ट प्रवृत्ति के कारण नारी को वस्तु बनाकर उपयोग किया जा रहा है। सौंदर्य ...

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अधिकारों से वंचित आधी दुनियां

–श्री गोपाल नारसन जहां भी नारी का नाम सामने आता है, वहीं एक कोमल, कमज़ोर, लाचार अबला की तस्वीर सामने आ जाती है। कहने को हम 21 वीं सदी में पहुंच गए हैं, लेकिन आज भी नारी को दुनिया में आने से रोकने के लिए उसकी गर्भ में ही हत्या करने का घिनौना अपराध प्राय:शहर, कस्बे व गांव में हो ...

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लड़कियों के प्रति मानसिकता बदलनी होगी

–गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी युग बदला इतिहास बदला मगर आधुनिक संसार में सभ्य समाज आज भी पुरानी परिपाटी का परित्याग नहीं कर पाया। जन्म-जन्मांतरों से हमारी मानसिकता अभी भी उसी पड़ाव पर खड़ी है जहां सदियों पहले खड़ी थी। परिवार, जिससे मिलकर समाज का निर्माण होता है तथा जिस समाज से विकसित राष्ट्र का निर्माण होता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में ...

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महिला की असली स्वतंत्रता ‘महिलापन’ में है

-विभा प्रकाश श्रीवास्तव प्रात: स्मरणीय अहिल्याबाई का मूल वाक्य था, ‘मैं अपने प्रत्येक कार्य के लिए ज़िम्मेदार हूं।’ इसी प्रकार महिला की तथाकथित ग़ुलामी, बेबसी, परतंत्रता, दोयम दर्जा इन सबके लिए कहीं न कहीं महिला स्‍वयं भी ज़िम्मेदार है, क्योंकि पारंपरिक रूप से उसे कोमलांगी, सुकुमारी, घर की रानी आदि कहा गया और उसने बड़े प्रसन्न होकर इन क़ैद करने वाले ...

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