महिला समस्याएं

हमें भी तो चाहिए एक मुट्ठी आसमान

जिन परिस्थितियों से निकलने के लिए वह विवाह न करने का संकल्प लेती है, यह समाज उसके समक्ष उन परिस्थितियों से भी कहीं बदतर स्थितियां उत्पन्न कर देता है।

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बेटा-बेटी में असमानता कहां तक उचित

-मुकेश अग्रवाल रमेश के यहां लड़की होने का समाचार पाकर मैं उसके घर बधाई देने चला गया। उसके घर जाकर देखा तो वहां एक अजीब-सी खामोशी छाई हुई थी। रमेश की मां एक कोने में बैठी आंसू बहा रही थी तो स्वयं रमेश भी किसी गहरी चिंता में डूबा हुआ था। औपचारिकता की रस्म निभाने के बाद मैंने उदासी भरे ...

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औरत-कल, आज और कल

बड़े बड़े कवियों ने भी उसे त्याग की देवी का नाम दिया व उस से सिर्फ त्याग की ही अपेक्षा की। वे भूल गए कि यदि त्याग की देवी सीता वह है, तो चंडी भी वही है व झांसी की रानी भी वही है।

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अपनों ने जिन को लूटा

  -मंजुला दिनेश दुनिया कहां की कहां पहुंच गई। हम अपने आप को अति आधुनिक समझने लगे हैं। जहां एक तरफ़ हम स्वतंत्र सुरक्षित समाज का निर्माण कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ अभी भी आमतौर पर महिलाएं अपनी आबरू के कभी भी लुट जाने के भय से सदैव असुरक्षित महसूस करती दिखाई देती हैं। भले ही आज महिलाओं ने ...

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खूंटी से बंधी नारी

यदि कहीं प्रेम-क्रीड़ा में असफलता मिली तो झट प्रेमिका का गला घोंट कर हत्‍या कर डाली। ये इकीसवीं सदी के कायर प्रेमी संकल्प और संघर्ष की नदी पार क्यों नहीं कर सकते। जिस समाज में इतने बुज़दिल युवा पुरुष, पल-बढ़ रहे हों, वह समाज यक़ीनन भीतर से जर्जर व खोखला होगा।

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स्त्री का जीवन एक कसौटी

  –शैलेन्द्र सहगल अकसर यह कहा जाता है कि दुनिया के सारे मर्द जोरू के गु़लाम होते हैं। क्या वास्‍तव में ऐसा है ? विवाह पूर्व जिसे मर्द दिल की रानी समझता है, उसके घर में अवतरित होते ही वह रानी से नौकरानी में कैसे तबदील हो जाती है ? ऐसा उन औरतों के साथ होता है जो भारतीय नारी ...

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कन्यादान उचित या अनुचित

     –गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जो लोग भूतकाल और वर्तमान में डूबे रहते हैं सम्भवत: भविष्य को खो देते हैं। समय की आवश्यकताओं के अन्तर्गत परिस्थितियों के अनुकूल मानव प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। पुरातत्व से नया अनुसंधान करना यश और कीर्ति को सूचित करता है-पुरानी परम्पराओं को जीवित रखना जहां आवश्यक है वहां ...

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नारी पर नग्नता के आरोपों से आख़िर क्या साबित होगा

-गोपाल शर्मा ‘फिरोज़पुरी’ प्रकृति ने अपनी रचना में स्त्री-पुरुष को बराबर बनाया है, परन्तु सदियों से पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की बराबरी उसे असहनीय है। सदियों से पर्दे में लिपटी नारी ने उस प्रथा के विरोध में चुनौती दी है तो पुरुष तिलमिला उठा है। अश्‍लीलता और नग्नता जैसे आरोप नारी पर लगने लगे हैं। शिक्षा के विकास के ...

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वेश्यावृत्ति नारी जाति पर कलंक है

– शैलेन्द्र सहगल औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया। अबला नारी तेरी अजब कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। वक्‍़त बदल गया दुनिया बदल गई। नहीं बदली तो औरत के वजूद से जुड़ी यह स्थितियां नहीं बदली। वो देवदासी भी बनी तो भी देह उसे परोसनी पड़ी, देह व्यापार का कलंक मानव सभ्यता ...

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औरत को इंसान होने का अहसास जगे तो

   -शैलेन्‍द्र सहगल हमारे बुज़ुर्ग अक्सर यह कहते आए हैं कि बेटियां तो राजे महाराजे भी अपने घर नहीं रख पाए, शादी तो बेटी करनी ही पड़ेगी! गोया बेटियां बहू बनने के लिए ही पैदा होती हैं। जिस मां की कोख से वो जन्म लेती है उसके लिए भी अगर वो पराया धन ही रह जाएं तो इस जहां में ...

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