महिला विमर्श

भावुकता आपकी कमज़ोरी तो नहीं

उन नाज़ुक क्षणों में रीमा को शर्मा जी की सांत्वना बड़ी भली लगी। उनके चुंबन को भी उसने नज़र अंदाज़ कर दिया। तभी किसी के आने की आहट सुनकर शर्मा जी, रीमा से ऐसे अलग हो गए, जैसे उन्हें करंट लग गया हो।

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ज़माना नहीं बदलेगा हम बदलेंगे

समय बदलता है, सभ्यताएं बदलती हैं, उनके साथ परम्पराएं भी बदलती हैं। सभ्यता के बदलने से मतलब है लोगों के सोच-समझ, रहन-सहन, परिवेश, ज़िन्दगी को सोचने-समझने के अंदाज़ में अंतर आना। एक वो सभ्यता थी, जिसमें नारी का स्थान पुरुष से ऊपर रख कर उसकी तुलना देवी से की जाती थी। उस ज़माने में नारी का स्थान सर्वोपरि था, सभी ...

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शॉपिंग मेनिया महिलाओं में विशेष एक मानसिक रोग

-मिलनी टण्डन नए ज़माने, नए दौर में, तरह-तरह के मानसिक रोगों की संख्या बढ़ती जा रही है- पुरुषों और महिलाओं दोनों में। ख़ास बात यह है कि स्वयं रोगी को अपने रोग का ज्ञान या आभास नहीं होता। ऐसा इस कारण कि वह रोग उसकी आदत या प्रकृति या स्वभाव में शुमार हो जाता है। दूसरा व्यक्ति जो रोगी के ...

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आत्मसम्मान ही सम्मान का पर्याय है

–संजीव चौहान आज की नारी के सामने पुरुष से बराबरी का अधिकार, पुरुष प्रधान समाज द्वारा दमनकारी नीतियों का कार्यान्वयन, सम्मान आदि प्रश्न मुंह उठाए खड़े हैं। क्या समाधान है इनका? क्या नारी बिना किसी वाद-विवाद के अपना उचित स्थान क़ायम कर सकती है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ है तो ……. आज के युग में नारी को स्वयं ...

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नारी कल्याण में भ्रमण की भूमिका

चौका, चूल्हा, चारदीवारी! ‘च’ की इस परिधि में महिला को युगों-युगों से क़ैद रखा गया, जिससे वह ‘कुएं के मेंढक’ की तरह अपने घर को ही सब कुछ मानकर उसके प्रति समर्पित रही है, भले ही उसके इस समर्पण के बदले में उसे दुत्कार, प्रताड़ना और शारीरिक शोषण सहन करना पड़ता हो। इस परिधि में रहते हुए स्त्री की स्थिति ...

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देश व नारी जाति का गौरव बढ़ाया कल्पना ने

-मुकेश विग इतिहास रचने वालों को कब किसी की इजाज़त मिलती है। वक़्त उसके साथ न था, घरवालों का सहयोग भी न था। घरवालों को कहां अंदाज़ा होगा उसकी क़ाबिलीयत का! एक बार अपने सपने पूरे कर कल्पना मंगल ग्रह तक पहुंची तो दुनियां भर को नाज़ हो आया उसकी क़ाबिलीयत पर! कल्पना ने अपना इतिहास खुद लिखा ये बता ...

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नारी पुरुष का पूरक रुप है

-रमेश सोबती इस देश में स्त्रियों के प्रति हिंसा गर्भ से ही आरम्भ होती रही है, जो जीवन भर रहती है। जन्म से पहले ही लिंग चयन और इस के परिणाम स्वरूप बालिका-शिशु भ्रूण की हत्या हिंसात्मक हद तक बढ़ जाती थी, जिस से महिलाओं की स्थिति दिन-ब-दिन दूभर होती गई। लैंगिक आधार पर हिंसा का कोई कृत्य जिस से ...

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कुदरत का अदभुत करिश्मा है औरत

-धर्मपाल साहिल दुनिया भर में औरत शब्द में आज भी उतना ही जादू क़ायम है, जितना सदियों पूर्व था। हज़ारों वर्ष बीत गये। समाज बदले, व्यवस्थाएं बदली, सभ्यताएं बदलीं। धार्मिक जनून हावी हुआ। विज्ञान ने प्रगति के शिखर छुए। राजनैतिक उथल-पुथल हुई। धरती पर आए बड़े-बड़े परिवर्तनों के बावजूद औरत शब्द एक ऐसा अद्भुत करिश्मा बना हुआ है, जो दिन ...

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नारी के हाथ में मोबाइल

-अनू जसरोटिया आज की युवा नारी यानी कॉलेज जाने वाली छात्राएं और ऑफ़िस में कार्यरत महिलाओं के हाथों में मोबाइल फ़ोन होना कहां तक उचित है। क्या ये उनकी आवश्यकता है? या फिर महज़ एक शौक़ या फिर स्टेटस सिम्बल? “नारी तेरी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी” इस बात को पूरी तरह ग़लत साबित कर ...

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कार्यकारी महिलाओं के लिए सुझाव

    -दीपक कुमार गर्ग  सुबह का समय एक सामान्य घरेलू महिला के लिए काफ़ी व्यस्तता भरा होता है। चाय बनाना, नाश्ता तैयार करना, बच्चों को तैयार करना, उन्हें स्कूल भेजना, पति एवं बच्चों के लिए दोपहर के भोजन का टिफ़िन पैक करना आदि। परंतु वह महिला जो जॉब करती है उनके लिए सुबह के समय की यह भागदौड़ एक ...

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