रिश्ते, नाते

रिश्तों को संभालना सीखें

  -माधवी रंजना ‘आंसुओं से धुली खुशी की तरह, रिश्ते होते हैं शायरी की तरह।‘ किसी शायर ने रिश्तों के बारे में कुछ इस तरह से बयां किया है। चाहे वह भाई बहन का रिश्ता हो या दोस्तों का, रिश्तों को लम्बे समय तक निभाने के लिए कुछ कायदे आवश्यक हैं। भारत में व विदेशों में रिश्तों की अहमियत को ...

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बहू की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना कितना ज़रूरी

-ज्योति खरे “बहू, तुम अपनी तैयारी कर लो। राजीव के कपड़े भी रख लेना, सुबह की गाड़ी से तुम दोनों चले जाओ।” बुख़ार से कराहती शोभा ने अपनी बहू राखी से कहा तो सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। थोड़ी देर ख़ामोशी छायी रही। राखी के ससुर ने अपनी ही पत्नी शोभा से कुछ सोच-विचार के बाद कहा, “तुम्हें इतने ...

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आत्मीय रिश्तों के अभाव में भटकती भावी पीढ़ी

-खेमराज शर्मा इक्कीसवीं सदी की भावी पीढ़ी आज एक ऐसे दौर से गुज़र रही है जहां उसे अपनों से अपेक्षित अपनापन नहीं मिल रहा है। परिणामस्वरूप वर्तमान पीढ़ी व भावी पीढ़ी के बीच भावनात्मक सोच का अन्तर निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इस अंतर को आज ‘जनरेशन गैप’ के नाम से जाना जाता है। यह जेनरेशन गैप न तो ...

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विवाह से पहले आपसी परख

-संदीप कपूर विवाह भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पुरुष और नारी के उस रिश्ते का नाम है, जो उन्हें जीवनपर्यंत निभाना होता है और इस रिश्ते में यदि मामूली-सी दरार भी पड़ जाए तो दाम्पत्य के छिन्न-भिन्न हो जाने में कोई कसर नहीं रह जाती। पति-पत्नी के आपसी विचारों की एकता पर ही दाम्पत्य की नींव सुदृढ़ ...

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पति पत्‍नी के बीच में

  -दीप ज़ीरवी कहते हैं कि शादी बूर का लड्डू है, जो खाय वो भी पछताए, जो न खाए वो भी पछताए। सुकरात ने कहा था कि शादी करवाने वाला तो दु:खी होता ही है किन्तु शादी न करवाने वाले भी सुखी नहीं कहे जा सकते। किसी के विचार में शादी एक आवश्यक ग़लती है जो हर व्यक्‍ति को करनी ...

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हमारी संस्कृति और प्रेम भावना

  -बलबीर बाली आज के इस भौतिकवादी युग में समाज मात्र एक वस्तु सी बन कर रह गया है। कुछ समय पहले की बात है कि हम अमरीका जैसे राष्ट्र को भौतिकवादी राष्ट्र समझते थे, जहां मानवीय मूल्यों की कोई महत्ता नहीं, प्रत्येक व्यक्‍ति को अपनी पड़ी होती है, दूसरा अन्य चाहे वह जिये या मरे, किसी को उससे कोई ...

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रिश्तों का भंवर : बदलते परिवेश में रिश्ते

-शैलेन्द्र सहगल वैसे तो सृष्‍ट‍ि का प्रथम सम्बन्ध अपने रचयिता से ही माना जाना चाहिए मगर इन्सान अपनी ज़िन्दगी की स्लेट पर रिश्तों की इबारत लिखते समय जो प्रथम शब्द मुंह से उच्चारित करता है वह उसका अपनी मां से मातृत्व का वो अमर रिश्ता स्थापित करता है जिसके लिए उसकी मां उस पर सदैव अपना सर्वस्व न्योछावर करने के ...

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