संपादकीय

रज़ा में राज़ी कब तक

‘हमेशा बहार-सी हो ये ज़िन्दगी’ ये दुआ करते हैं सभी। पर पतझड़ के बिना बहार के मायने कौन समझ पाता। कहते हैं जिसने दु:ख न देखे हों वो खुशी की तीव्रता, सुखों के आनंद के एहसास से वंचित रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो तो ये एहसास तक ख़त्म हो जाए ...

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मुक्‍ति नहीं अधिकार

बदले समय, बदले परिवेश में बदली है पुरुष मानसिकता भी। पुरुष की शिकायत पर यदि ग़ौर करें तो-समय की नब्ज़ को पहचानते हुए अपने क़दम उठाने के बावजूद, औरत के लिए सहयोगी रवैया अपनाने के बावजूद आज भी उसे शंका से देखा जाता है। दुविधा में है समाज आज। समय-समय पर स्त्री -पुरुष संबंधों पर विचार मंथन होता आया है। ...

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चिड़ियां-कुड़ियां

वाक़ई में आजकल चिड़ियों की चहचहाहट कभी सुनी नहीं। जब किसी से सुना तो ध्यान आया। पता करने पे मालूम हुआ कि आसपास के गांवों में भी इक्का-दुक्का चिड़ियां ही रह गई हैं। मन विचलित-सा हुआ। न जाने क्यूं रह-रह कर कुड़ियों (लड़कियों) और चिड़ियों को एक जैसे बताने वाले गीत-कविताएं याद आती चली गईं। हमेशा इन्हें एक-सा माना जाता ...

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ज़िंदगी चलने का नाम

नहीं चलना चाहती लगातार। कभी-कभी रुकना चाहती हूं। ठहरना चाहती हूं। कहते हैं कि यदि आप अच्छा सोचते हैं अच्छा करते हैं या अच्छा करने की ओर क़दम बढ़ता है तो कभी थकते नहीं। लगातार चलते हैं। कभी भी मन खिन्न नहीं होता सदा प्रसन्न चित्त रहता है। लेकिन मैं तो थक भी जाती हूं मन भारी भी होता है। ...

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राहें पुकारती हैं

नारी सशक्तितकरण व महिला दिवस की बातें, वुमन्स लिब की बातें सुनते-सुनते जैसे एक युग बीतने को है। ऐसा भी नहीं कि ये खोखली बातें हैं नारी की उपलब्धियां, उसके नए आयामों का विस्तार, हर क्षेत्र में पुरुष के समक्ष डट कर खड़ी होने के उदाहरण हमारे सामने हैं। लेकिन फिर भी कुछ बातें ग़ौरतलब हैं। क्या ये उपलब्धियां उसको ...

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जीवन और संघर्ष

ज़िन्दगानी, ये जवानी यूं ही गुज़र जाने का नाम नहीं हादसों का नाम है ये, एक रवानी-सी है। ज़िंदगी का मतलब यह नहीं कि जो हो रहा है उसे वैसे ही होता रहने दो। जो गल-सड़ चुका है उसे बदल दो। कुछ नया करो, कुछ बढ़िया करो। हमने अपनी ज़िंदगी का बहुत-सा वक़्त तो सीखने में और सीखी हुई ज़िंदगी ...

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दोस्ती के दीप

हम तो चले थे घर से दर्द को कम करने। कुछ इस क़दर बिखरे थे ग़म राहों में कि खुद दिल बोझिल हो चला। कुछ वीरान आंखें देखी, कुछ उदास सपने, कुछ बिखरे हुए कारवां। ऐसे ज़ख़्म जिनको सहलाने के लिए दोस्ती की, मुहब्बत की ज़रूरत है। आंसुओं को पोंछने के लिए प्यार भरे हाथों की ज़रूरत है। दोस्ती एक ...

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करवट लेते समय में

कब कोई थाम सका समय की सूइयों को। अपने साथ कई परिवर्तन लाता समय अनवर्त गति से बढ़ता जाता है। देखते ही देखते समय कहां से कहां पहुंच चला। तारीख़ें बदली, युग बदले और इन्सान के विकास की दास्तान दर्ज होती गई। लेकिन विकास अपने साथ लाया नई समस्याएं, नई दुविधाएं, नए ख़तरे, नई चुनौतियां। कुछ समय में बदलाव कुछ ...

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उड़ान के लिए फड़फड़ाते पंख

   अरमां मचले तो थे तड़प कर रह गए।    होंठ हिले तो थे पर  शब्द दम तोड़ गए। वो तड़पती हुई मुसकराती गई पर उफ़ न की –    वह औरत थी। इज़्ज़त का सवाल है।  दोनों कुलों की लाज है वो। बदनामी होगी…. श……..श……… ये फ़र्ज़ हैं तेरे, ये कर्त्तव्य हैं तेरे। औरत मां है, बेटी है, बीवी है। ...

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समय का सच

जो आज हमारे लिए सत्य है वो कल भी सत्य माना जाए, यह आवश्य‍क नहीं। सत्य को जानना, पहचानना और उसकी पहचान करवाना इतना आसान नहीं होता है। किसी सत्य को पहचान कर उसकी पहचान करवाने में एक लम्बा संघर्ष होता है। इसी संघर्ष का प्रयत्न किया है सरोपमा ने। एक सदी से दूसरी सदी में प्रवेश करते हुए सरोपमा ...

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