कहानियां

विश्वास का खून

‘राहुल...’, शब्द ही निकला था और मुन्नी की रूलाई फूट पड़ी थी। रुकी तो वह भरे स्वर में बोली थी- ‘कहां थे तुम? जानते नहीं तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए हम पल-पल तड़प रहे हैं।

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पोस्ट स्क्रिप्ट

‘वह देश भी इसी देश जैसा है। वहां भी लोग मक़बरे में रहते हैं,’ मित्ती हंसी, उसकी हंसी में बहुत कांटे थे। वह बोली, ‘जानते हो? ... हमारी ही तरह वे लोग भी नहीं जानते कि जहां वे रहते हैं वो घर नहीं। बस अपनी तरह वे भी रह ही लेते हैं।

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एक बार और

इसने कहा कि तुम सिर्फ़ बीवी बनकर रह गई हो इसीलिए सब गड़बड़ है। बस, फिर मैंने अपने आप को तोला तो मुझे लगा कि बात सही है। तब से मैंने अपने आपको बदलना शुरू कर दिया।

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गीले दस्ताने

एक आशंका और बलवती होती गई कि ... कहीं हरेश के साथ ही तो हादसा...? थोड़ी ही देर में मेरा अनुमान वास्तविकता में बदल गया जब परेश के बाऊजी ने हौले से मुझे पूछा

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समुद्र के ओर की खिड़की

मैंने तो उसे साफ़ कह दिया था बाक़ी जो मर्ज़ीं करता रह। यह मेरा पेशा है परन्तु मेरे होंठों पर केवल एक का ही अधिकार है। होंठों को अमर के बिना और कोई नहीं छू सकता।

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हरा समन्दर

मैंने उनका घर कभी नहीं देखा था और आज तक नहीं देखा। फिर भी मन ही मन मैं उनके घर को अपना समझने लगी थी। मुझे लगता कि उनका घर मेरे द्वारा ही संचालित हो रहा है।

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पुस्तक की क़ीमत

"जी, यहां मेरा मायका है।" युवती बिस्कुट खाते हुए बोली।पहली बार सुखनजीत को लगा कि वह धोखे में था क्योंकि उसे कहीं से भी युवती विवाहित नहीं लग रही थी। "आप शादीशुदा हैं?"

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ब्लैंक चैॅक

कुछ दिनों बाद मेरी तक़दीर ने मेरे साथ एक और घिनौना मज़ाक किया। मुझे सीमा से सच्ची मुहब्बत हो गई, मैं मन ही मन में सीमा को सच्चे दिल से अपनी पत्नी स्वीकार करने लगा।

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अंतिम सांझ का दर्द

वह हर दिन निकलने वाले सूर्य के साथ दरवाज़े पर टकटकी लगाए एक आशा भरी निगाह लिए अपने बेटों का इंतज़ार करती। उसे हर आने वाले कल पर भरोसा था। उसे हर आने वाले कल पर भरोसा था।

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