कहानियां

भारद्वाज गुरू जी

वह कुछ सकपकाया, 'आप अकेली.... और मेरा रुकना....। कुछ अच्छा नहीं लगता। हम चले जाएंगे।' चम्पा अधीर हो उठी। अपनी पहचान को पुख़्ता करने के लिए इतना समय और बात काफ़ी थी।

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अनचाही बेटी

"कहो! क्या कहना चाहते हो?" मालती दीप की आंखों में पढ़ चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है लेकिन कई बार सुुनना भी कानों को प्रिय सा लगता है। यही मालती चाहती थी।

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अन्तिम पुकार

तेगा तो लड़की को क़त्ल करने के लिए तैयार हो गया था। तलवार म्यान से बाहर निकाल ली। बोहड़ का बापू टहल सिंह संयोगवश मौक़े पर पहुंच गया। उसने कहा बेवकूफ़ आदमी, क्यों गऊ हत्या कर रहे हो? .... लड़की की ओर देख।

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बनक्कशे के फूल

गीत.... ! वह कुछ चौंका था। कौन से गीत भला। वो फ़िल्म वाले या पहाड़ी। मैं उसका जवाब सुनकर ज़ोर से हंसी थी, “फ़िल्म वाले नहीं ओए, अपने पहाड़ के गीत। चंचलो कुंजू वाला। वो गंगी। वो मेले जाने वाला और वो....।”

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उपहार

मां! तुम भी एक बात ध्यान से सुन लो। तुम उसकी मार सह सकती हो.... परन्तु मैं नहीं। उन्हें यह बात अच्छे ढंग से समझा देना कि मेरे ऊपर हाथ न उठाएं। नहीं तो अच्छा नहीं होगा। तुम अपने बापू के लिए ऐसा कह रही हो! क्या कर लोगी तुम?

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डूबते सूरज के साथ

मां के हाथों का बना एक सफ़ेद मेज़पोश है जिस पर मां ने हरे रंग के धागे से कश्मीरी कढ़ाई की थी। मैंने झुक कर उसे उठा लिया और शिव पार्वती वाली तसवीर उसमें लपेट ली। तभी डोंगे का ध्यान आया। रसोईघर में पहुंची और डोंगे को वहीं पड़ा देख मेरी जान में जान आई।

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पलायन

अम्मी जान तुम ही बताओ- दहशतर्गदों की वजह से कारखानेदार अपने कारखाने बंद कर घाटी से पलायन कर गए हैं। रोज़गार के जो छोटे-छोटे मौक़े मिल जाते थे, वे भी ख़त्म हो चले हैं। अब तो यही ठीक रहेगा कि हम भी घाटी को छोड़कर कहीं और चले जाएं।

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निर्निमेष

मैं छत की मुंडेर तक जा पहुंचा। वह युवती तक़रीबन तीन मीटर की दूरी पर थी। अभी-अभी मेरे शरीर के अंदर किसी वस्तु ने प्रवेश किया। मैं रंगे हाथ पकड़ा गया था। उस युवती ने देखा ... तब मैं। लगा जैसे कुछ उतरता चला गया है। अनंत से ... अनंत तक।

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आधुनिक सीता

मुझे ज़रूरत भी नहीं है मालूम करने की क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं ऐसे लोगों को, जो टाइम पास करते हैं और फिर उनकी भी क्या ग़लती, जब कोई खुद ही अपना सब कुछ सौंपने को तैयार हो।

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पारो खुश है

मैं कुछ क़दम पीछे लौट उन आवाज़ों को सुनने लगी जिन्होंने मुझे हिलाकर रख दिया था।'हमारे खानदान पर कलंक है यह पारो।' 'पैदा होते ही मर क्यों न गई।' उसके मायके के आंगन में गूंजती ये आवाज़ें अब पारो के मन से टकराती होंगी तो उसे कैसा-कैसा लगता होगा।

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