काव्य

दास्तान मेरी

मैं क्या सुनाऊं तुम्हें दास्तान मेरी क़िस्मत भी है मुझपे हैरान मेरी मैं एक पत्थर पड़ा था गली में कोई बना गया तराश के शान मेरी वफ़ओं के बदले मिली हैं सज़ायें

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दिल की दास्तान

जिस्म बेजान कोई हो जैसे खुद से अनजान कोई हो जैसे दिल में आहट, न कोई हलचल है राह वीरान कोई हो जैसे हमसे कहते हैं मुस्कुराने को काम आसान कोई हो जैसे

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इक तेरे चले जाने के बाद

हम भी रोये यह दिल भी रोया बुलबुल भी रोई और गुल भी रोया तन्हाई में डूबा हर पल भी रोया इक तेरे चले जाने के बाद... चुपके से चल दिये न ख़बर की हालत देखो तो आकर जिगर की

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वो पल

वो पल जब तुम आये मेरा हाथ मांगने पर निकाल दिये गये घर से ये कहकर, “तुम्हारी जाति हमसे मेल नहीं खाती” टूट गई मैं ब्याह दी गई अपनी जाति में

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गीत

तुम अश्कों के ग़ुंचे पिरोया करोगे हमें याद कर-कर के रोया करोगे बहारों का आयेगा जब-जब भी मौसम

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