लघुकथा

इन्तज़ार

कितना दर्द बर्दाश्त किया था हमने तब...मगर...मगर...क्या अब मेरे माँ-बाप यह सहन कर लेंगे कि मैं...। नहीं...नहीं...कभी नहीं...

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ज़िंदगी

मैं रसोई गैस खुली छोड़कर रसोई के दरवाज़े-खिड़कियां और बत्ती वग़ैरह सब बन्द कर दूंगी। कुछ देर के बाद शीला को कह दूंगी कि खाना-वाना बना रखे और

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सीमाएं किसने लांघी

"आधुनिक तो होना चाहिए लेकिन अपनी सीमाएं नहीं लांघनी चाहिए। तुम्हें नहीं लगता कि सोमा आधुनिक दिखने की इच्छा में सारी सीमाएं लांघ देती है।"

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जल-समाधि

क्या कहा जल-समाधि उन्हें चूल्लू भर पानी नहीं मिला क्या? इतनी बड़ी नदी को अपवित्र करेंगे। यह जल समाधि नहीं आत्महत्या है। मैं अभी पुलिस को फ़ोन करती हूं।

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हार

एक दिन उसके नन्हें बेटे अमित ने पूछ ही लिया, मां! जिनके पापा देश के लिए मर जाते हैं उन सब की मां, क्या दूसरों के घरों में बर्तन मांजती हैं?

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बेवफ़ा कौन

उसके आंसुओं को देखकर दिल के दूर किसी कोने में जैसे किसी जीत के अनुभव की खुशी की आवाज़ आ रही थी।"मैं बहुत बुरी हूं सागर".... लेकिन तुम भी कम बुरे नहीं हो। मेरी नासमझी की सज़ा देने के लिए तुमने

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क़िस्तों में दहेज़

अपने बेटे के विवाह के लिए दहेज़ मांगने पर जब प्रशांत की सामाजिक प्रतिष्ठा गिरने लगी। तब उसने यह मांग छोड़कर नयी शर्त रखी कि लड़की सरकारी नौकरी करती हो।

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भरपाई

मैं दहेज़ के ख़िलाफ़ हूं बेटी। बेटे की शादी में मैं दहेज़ नहीं लूंगा और दहेज़ आया भी तो उसका उपयोग तुम्हारी शादी में करने की सोच ही नहीं सकता। सोचो, जो तुम्हारी भाभी आयेगी उसके मन पर क्या गुज़रेगी? मैं ऐसी भरपाई की बात सोच ही नहीं सकता।

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दान

मैं बचपन से पढ़ाई में अच्छा था लेकिन घर की परिस्थितियां अनुकूल न थीं। मेरी 2 बहनें, दादा-दादी और एक बुआ भी हमारे साथ थी। पिताजी अकेले कमाने वाले थे। रात-दिन काम करते। मैं भी समय मिलते ही उनकी मदद करता।

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मिट्टी के दीये

बूढ़ा कुम्हार बोला, "बेटी ये दीये हमने अपने लिए पूजा के लिए पानी में भिगो कर रखे थे। 21 दीयों में से 11 दीये मैं तुम लोगों के लिए ले आया हूं। अरे पूजा ही करनी है तो हम 21 की जगह 7 दीयों से कर लेंगे। 11 दीयों से तुम पूजा कर लेना।

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