व्यंग्य

जल्वे फ़िल्मी गीतों के

जब अन्तिम दर्शनों के हेतु चेहरे से कपड़ा हटाया गया तो अकस्मात् किसी का सेल फ़ोन बज उठा, “तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे चश्मे बद्दूर।”

Read More »

हे पद तुझे सलाम

दरवाज़े के आगे तो बहुत कुछ है उल्लू! धेले में बिकता कानून है, दुराचार में डूबी राजनीति है, हर जगह मरता सच है, खून के प्यासे रिश्ते हैं।

Read More »

सुविधाशुल्क चालीसा

ऐसे शब्दों को अब अपने शब्दकोष से बाहर फेंक दिया जाए। इन्हीं शब्दों का पर्यायवाची लेकिन मर्यादित और सुसभ्य शब्द सुविधाशुल्क (रिश्वत, घूस) आजकल प्रचलन में है।

Read More »

इम्तिहान कैसे-कैसे

इतिहास का स्वर्णकाल उन्नीस सौ पचहत्तर का दशक था जब 'शोले' फ़िल्म हिट हुई थी। हम उनके इस आश्चर्यजनक शोध का लोहा मान गए। हमें बस एक ही दुःख था कि शायद परीक्षक इस खोज से सहमत न हो।

Read More »

सिसकता हथियार- बेलन

लेकिन दुर्भाग्य! बेलन आज सिसकता नज़र आ रहा है और हसबैण्डों का समाज ठहाके लगाता हुआ साफ़ नज़र आता है। यह स्थिति पत्नियों के लिए शर्मनाक है,

Read More »

हाय मेरा जैकी

डॉक्टर ने बहादुर को कहा कि वह जैकी के मुंह पर कपड़ा डाल कर पकड़े ताकि झाग किसी के लग न जाए। घर भर में जैसे भुकम्प आया हुआ था। आगे-आगे जैकी और पीछे-पीछे हम सब लोग। किसी के हाथ में उसका पट्टा तो किसी के चेन और किसी के कपड़ा।

Read More »

आओ चुनाव-चुनाव खेलें

-विद्युत प्रकाश मौर्य बचपन में आईस-पाईस खेलते थे पर अब उनका महत्वपूर्ण शगल बन गया है चुनाव-चुनाव। जल्दी-जल्दी चुनाव न हो तो नेता जी का मन नहीं लगता है। उनका बस चले तो वे हर साल चुनाव करवाते रहें। इससे क्या होगा जनता वोट देने में ही उलझी रहेगी फिर रोटी कैसे मांगेगी। लिहाज़ा उन्होंने पांच साल पूरे करने का ...

Read More »

साक्षात्कार सन् 2017 का

-बलदेव राज ‘भारतीय’ 22 दिसम्बर की रात। सर्दी अपने पूरे यौवन पर थी। श्रीमती जी एवं बच्चे सो चुके थे। चूंकि आज मेरा जन्मदिन था और इस अवसर पर मैंने अपने कुछ साहित्यकार मित्रों को आमंत्रित किया हुआ था। उन सब के खान पान का रूखा सूखा इंतज़ाम श्रीमती जी के ज़िम्मे था। एक अच्छे पति की भांति मैं भी ...

Read More »

रचनाकार हूं भाई

क्या देश में सिनेमाघरों, होटलों, टी.वी. चैनलों, मयख़ानों और क्रिकेटरों की कमी है कि लोग रचनाएं पढ़कर सुकून प्राप्त करना चाहेंगे? रही दिलो-दिमाग़ की शान्ति की बात तो गीता, रामायण, वेद पुराण आदि पुस्तकें शो-केस में स्थापित करने के लिए हैं?

Read More »

लेखक की पत्नी होने का सुख

सुहागरात के समय ही मुझे अपनी फूटी क़िस्मत का पता चल गया था। जब ये मेरा घूंघट उठा कर बोले थे, 'प्रियतमे आज की यामिनी भी उज्जवल है। तुम्हारे शुभ आगमन से मेरे हृदय की कालिमा दूर भाग गई है।'

Read More »