व्यंग्य

जब हमने भी खाया बूफे

कवि-गोष्ठी का सुनकर मन कसैला हो उठा। पर क्लब जाने की कल्पना से रोम-रोम खिल उठा। मेरे पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। चाय पीकर मैं क्लब जाने की धुआंदार तैयारी में जुट गई और जो तैयारी मैंने तब की उसे याद करके अपनी बेवकूफ़ी पर आज भी हंसी आ जाती है।

Read More »

चुप रहने की सज़ा

-मीरा हिंगोरानी कभी-कभी इंसान हालात के हाथों मजबूर हो जाता है। हालात उस पर इस क़दर हावी होने लगते हैं कि वो बस पिंजरे में क़ैद परिन्दे-सा फड़फड़ा कर रह जाता है। हमने बहुत चाहा पत्‍नी हमारे विचारों से सहमत हो। हमारी हर बात में हां में हां मिलाकर चले। क्या है कि हमें लिखने की बेहद बुरी बीमारी है। ...

Read More »

श्रीमान नायक

-अरविंद कौन नायक बनना नहीं चाहता? यह दबी-सी इच्छा तो सब की होती है। ऐसी इच्छा मुझ में भी जागी थी जब मुझे शुरू-शुरू में नायक की परिभाषा का पता चला था। “श्रीमान नायक” मैं अभी सातवीं–आठवीं का ही छात्र था। पंकज और प्रताप दोनों मेरे दोस्त थे। हम तीनों साथ घूमते–फिरते और एक बैंच पर ही बैठते। हम में ...

Read More »

यह दुनिया एक सर्कस है

-प्रो. शामलाल कौशल अंग्रेज़ी के प्रख्यात लेखक शेक्सपीयर ने अपने एक नाटक ‘As you like it’ में यह कहा है कि यह दुनिया एक रंगमंच है जहां सभी लोग बचपन से मृत्यु तक अपना अपना रोल प्ले करके चले जाते हैं। लेकिन प्रसिद्ध अभिनेता राजकपूर ने अपनी एक फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में एक गाने में कहा है कि “यह ...

Read More »

महिलाओं का प्रवेश वर्जित है

‘माते! हूं तो उल्लू, पर मेरी बात मानो और पांच सात सौ दे इनसे पीछा छुड़वा लो । यमराज से बचा जा सकता है पर इनसे नहीं । ड्यूटी टाइम में तो ये अपने बापू को भी नहीं बख्शते,

Read More »