ज़िन्दगी की सांझ में इक राग छेड़कर मुझे चूल्हे के पास अपनी कंबली में बिठा लेना। छोटी-छोटी लकड़ियां मैं लगाती जाऊंगी
Read More »साहित्य सागर
मेरा अस्तित्व
मैं सृष्टि, संतुलन इतिहास निर्मात्री सब कुछ हूं फिर भी चीरहरण और अग्नि परीक्षा
Read More »हौसला
ये क्या बुज़दिली है। आपको बिना क़सूर किए मरने की क्या ज़रूरत है। भाढ़ में जाए समाज और भाढ़ में जाएं रिश्तेदार, हमें धैर्य और हौसले से जंग जीतनी होगी।
Read More »सरकारी नौकरी का करिश्मा
उसके ऑर्डरों पर साफ़ लिखा था दो वर्ष प्रोबेशनरी पीरियड बीत जाने के बाद पूरा वेतन तीस हज़ार मिलेगा। दीक्षा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थी। वह जाॅॅॅइन करे या न करे।
Read More »आसमां पर पांव हम धरते रहे
कब सहर हो और कब दीदार हो, रात सौ-सौ बार हम मरते रहे। रात हो बरसात हो कुछ बात हो, क्या-क्या आरज़ू करते रहे।
Read More »बाकी सवाल
रात के इस पहर के बाद, रात और कितनी बाकी है। वक़्त के इस पड़ाव के बाद, ज़िदगी और कितनी बाकी है।
Read More »वफ़ादार
“नहीं, नहीं सीमा नहीं, तुम्हें मैं कहीं भी लेकर नहीं जा रहा हूूं, तुम तो धोखेबाज़ हो, आज मैंनें तुम्हें अच्छी तरह से परख लिया है।” “क्या कहा, धोखेबाज़। और वो भी मैं?
Read More »पुनर्स्थापना
खुजराहो के किसी मंदिर की भित्ति से चुरा कर एक ऋषि ने मंत्र-सिद्ध कर तुम्हें साकार कर दिया मेरे लिए
Read More »सुबह की बेवफ़ाई
रात भर चांद खड़ा रहा सुबह के इंतज़ार में सुबह आई साथ सूरज लाई मिट गया चांद उसके आने पर
Read More »औरत
बिख़र गई हूं पंक्ति बन कर मैं। अपने-अपने दृष्टिकोण पर, सबने परखा मुझको। मनचाहा अर्थ लगाया मेरा। कौन समझा सही अर्थ को ?
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