साहित्य सागर

नये अशआर

लांघ कर जिस दम रिवायत की हदों को आएगी देख लेना फिर वो बस्ती भर में पत्थर खाएगी चांद तारे मुंह छिपा लेंगे घटा की ओट में कोई गोरी अपनी छत पर ज़ुल्फ़ जब लहराएगी

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कौमी एकता

वो तवायफ़ कई मर्दों को पहचानती है शायद इसलिये दुनिया को ज़्यादा जानती है उसके कमरे में हर मज़हब के भगवान् की एक-एक तस्वीर लटकी है

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जोंक

सता की कुर्सी के पैरों में जनता का लहू बहता है उस पर सवार नेता उसे जोंक की तरह चूसता रहता है छुटभैये भी मच्छर की तरह भिनभिनाते रहते हैं मौक़ा लगते ही चूस कर उड़ जाते हैं

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थोड़ी ही देर सही

थोड़ी ही देर सही मौसम खुशगवार हुआ तो था। थोड़ी ही देर सही तुझको प्यार हुआ तो था। कहां गया वह पौधा जिसे लगाने पर बूटा-बूटा चमन का

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पानी से मत बहो

पानी-से मत बहो पूर्व-निर्मित सड़को पर। नई पगडंडियां विकसित करो। आलोचना का गरल तो मिलेगा इस राह में

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आस्था में सेंध

पंडित ने कहा था यजमान आपके भाग्य का सितारा चमकने वाला है कुछ ही देर के बाद आपकी अपनी कोठी होगी और आपके पास अमुल्य धन सम्पदा होगी।

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यंत्र पुरुष

'क्योंकि वह शख़्स आपकी बिरादरी से है आप मेरे साथ चलकर देख लें एक बार’ तभी उसके पीछे एक साथ जनाना लिबास पहने हुए कई हिजड़े चलने लगे थे।

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