थोड़ी ही देर सही मौसम खुशगवार हुआ तो था। थोड़ी ही देर सही तुझको प्यार हुआ तो था। कहां गया वह पौधा जिसे लगाने पर बूटा-बूटा चमन का
Read More »जसबीर चावला
एक संकलन का प्रकाशन उर्फ़ चौथी क़सम
अगर यह मान भी लिया जाए कि तुम्हारा मंगेतर या दोस्त, जिसके बारे में सोचकर तुम अभी तक बेचैन हो, बच गया हो जान बचाने के लिए उसने अपने केश दाढ़ी साफ़ करवा लिए हों तो इतने सालों तक घर क्यों नहीं लौटा?
Read More »रिश्तों के भीतर झांके
-जसबीर चावला इस संसार में हर प्राणी प्रशंसा और प्यार का भूखा है। बचपन में मां-बाप का लाड़-दुलार, शिक्षकों, गुरुजनों का स्नेह, दोस्तों-हमजोलियों का साथ, मनुष्य के व्यक्तित्व (पर्सनैलिटी) के विकास के लिये बहुत ज़रूरी है। जवानी में जीवन-साथी का प्रेम इसीलिए यौन-संतुष्टि से ज़्यादा मायने रखता है और शायद इसीलिए पति-पत्नी का संबंध दोनों से विशेष ध्यान की ...
Read More »आओ विचारें आज मिलकर
-जसबीर चावला सभी हिन्दु एक से नहीं होते, न एक से मुसलमान होते हैं। दरअसल एक जैसी कोई दो मूरतें भगवान् ने नहीं बनाई। एक ही पेड़ पर हर पत्ता अलग है। प्रकृति में सूक्ष्मता से वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर पाया है, एक सा होते भी कुछ न कुछ फ़र्क़ रहता ही है। तभी तो लोकोक्तियां भी है- ‘‘पांचों ...
Read More »विज्ञापन कला की लेखन प्रकृति
काश! विज्ञापन का लेखन इतनी तेज़ सृष्टि कर सके। कोशिश कर रहा है। पर इससे सस्ता तरीक़ा पूंजी के पास है- बारंबार दिखाओ, बार-बार बताओ, बार-बार उसी इच्छा को उकसाओ।
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