जसबीर भुल्लर

नम शब्दों की आबशार-दलीप कौर टिवाणा

मुझे अंदेशा-सा हुआ, जिसे मैं मिलकर आया था, शायद यह कोई दूसरी दलीप कौर थी। वहां दीवारों पर लटकती हुई पेंटिंगज़ नहीं थी। वहां पर न तो कोई काग़ज़ था और न ही कोई पैॅन।

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