दीप ज़ीरवी

ख़ुदगर्ज़

“सिस्टर जल्दी करो पेशेंट को ऑपरेशन थियेटर पहुंचाओ, फौरन ऑपरेशन करना पड़ेगा।” बदहवास से डॉक्टर रवि नर्स से कह रहे थे। उनके सहकर्मी देख रहे थे कि सदैव संयत रहने वाले डॉक्टर रवि इस पेशेंट के आने से काफ़ी परेशान थे। “विमल, देख यार इस पेशेंट का ऑपरेशन पूरे ध्यान से करना।” डॉक्टर रवि अपने मित्र व सहकर्मी विमल से ...

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ये कहां आ गए हम

-दीप ज़ीरवी अबाध निःशब्द निरंतर गतिमान समय सरिता की धारा के संग बहते-बहते कई संवत्सर निकले, कई युग बीते, कई जन, जन-नायक बनकर उभरे और विलीन हो गए। समय सरिता का एक और मोड़ आया 2015 का जाना एवं 2016 का आना। 2015 को जाना था वह गया एवं 2016 आना था, 2016 के शैशव काल में काल के कराल में ...

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घर, घरवाला, घरवाले

-दीप ज़ीरवी घ + र = घर। मात्र शब्द जोड़ नहीं है घर। मकान बनाने में, कोठी-बंगला बनाने में तो मात्र कुछ माह अथवा कुछ बरस लगते हैं। घर बनाने में पुश्तें लग जाती हैं। स्नेह + सामंजस्य + संस्कार = संस्कृति, संस्कृति + संस्कारित सदस्य = घर परिवार। इनमें से एक भी तत्त्व के अभाव में घर अपूर्ण है अर्थहीन है। घर पीढ़ी दर ...

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मेरे तुम्हारे हमारे मां-बाप

-दीप ज़ीरवी मानव सामाजिक जीव है। परिवार की सबसे छोटी इकाई है मानव। परिवार, जो समाज की सब से छोटी इकाई है। इस समाज को अनेक संस्थाएं संचालित करती हैं इन अनेक संस्थाओं में से एक संस्था है ‘शादी’। जब शबनमी यौवन की पुरवाई, अल्हड़ता को झंकृत करने को आतुर होती है, ऐसे मौसमों में शहनाइयां मनों को बाग-बाग कर ...

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दो पाटन के बीच में

-दीप ज़ीरवी सदियों से नारी के पांव में परतन्त्रता की बेड़ियां खनकती रही हैं। चार दीवारी में सीमित मातृ शक्‍ति का कार्य मात्र बच्चों को जन्म देने का माना जाता रहा है। भारत आज आज़ाद है, 68 बरस हो गए आज़ादी की दुल्हन को ब्याह कर आए हुए। भारत की आज़ादी सम्पूर्ण आज़ादी नहीं, 50 प्रतिशत भारत आज भी परतंत्र ...

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ज़िन्दगी जीने के लिए है बेशक़

–दीप ज़ीरवी जब बात ज़िंदगी की आती है तो ज़िन्दगी से जुड़े अनेक ‘दर्शन’ अपना दर्शन देते हैं। दार्शनिकों के ‘दर्शन’ का दर्शन करें तो पाएंगे कि ज़िन्दगी को अनेक सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है। ज़िन्दगी को जिसने जिस दृष्टिकोण से देखा ज़िन्दगी का वैसा रंग उसने पाया। नेत्रहीन मित्रों के हाथी-दर्शन करने के सदृश्य ज़िंदगी रूपी विशाल ...

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पलना छोड़ कर जीना सीखें

  -दीप ज़ीरवी सुबह उठना, नित्य क्रम निपटाने, खाना-पीना, बच्चे पैदा करना और सो जाना यह सब क्रियाएं करना ही आज पर्याप्‍त मान लिया गया है। मोटी-ठाड़ी भाषा में इसे ही जीना कह दिया जाता है। यदि यह जीना है तो यह कार्य तो जानवर भी करते हैं फिर उनमें और हम में, हम इन्सानों में क्या भेद रह जाता ...

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सहज प्रीत की सहज (साखी) कहानी

-दीप ज़ीरवी भारत भूमि की विराट कैनवस है जिस पर समय के चित्रकार ने अपनी तूलिका से समय-समय पर विभिन्न रंग बिखेरे हैं। कहीं महाभारत का समरांगण तो कहीं गोकुल, कहीं वृन्दावन। कहीं दक्षिण के पठार, कहीं हिमालय को छेड़ कर निकलती शीतल बयार, समय के चित्रकार की यह अनुपम कला कृतियां ही तो हैं। मेरे भारत के कण-कण में ...

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मां-बाप, बच्चे और जनरेशन गैप

-दीप ज़ीरवी ईश्‍वर के चरण, भगवद्प्रसाद इत्यादि अलंकारों से सुसज्जित माता-पिता जिन के कारण औलाद संसार में आती है, दुनियां देखती है, दुनियादारी सीखती है। वह मां-बाप जिन की दुनियां उनके बच्चे होते हैं उनके बच्चों से दुनियां होती है उनकी। बहुतेरे मां-बाप बेटा हो अथवा बेटी वो अपने प्रत्येक बच्चे को अनूठा प्यार और दुलार देकर पालते पोसते हैं ...

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