शबनम शर्मा
अपने अपने दुःख
मैं भी उस बहती नदी के तट पर आकर उनकी पीड़ा में शामिल हो जाना चाहता हूँ परन्तु जैसे ही उन्हें मेरे पुरुष होने का एहसास होता है वे अपनी पीड़ा अपने भीतर छुपा लेतीं हैं
Read More »June 5, 2015 Leave a comment
June 3, 2015 1 Comment
मैं भी उस बहती नदी के तट पर आकर उनकी पीड़ा में शामिल हो जाना चाहता हूँ परन्तु जैसे ही उन्हें मेरे पुरुष होने का एहसास होता है वे अपनी पीड़ा अपने भीतर छुपा लेतीं हैं
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