शबनम शर्मा

अपने अपने दुःख

मैं भी उस बहती नदी के तट पर आकर उनकी पीड़ा में शामिल हो जाना चाहता हूँ परन्तु जैसे ही उन्हें मेरे पुरुष होने का एहसास होता है वे अपनी पीड़ा अपने भीतर छुपा लेतीं हैं

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