सिमरन

मुक़म्मल होने के लिए

मैं मुक़म्मल हूं, संपूर्ण हूं हर लिहाज़ से हर परवाज़ पे हर दिशा में हर दशा में अपने आप में कोई व्यक्‍ति संपूर्ण नहीं होता। लेकिन औरतों की संपूर्णता को कई बातों में ढूंढ़ा जाता है। मदर टेरेसा और लता मंगेशकर दो ऐसी महिलाओं के नाम हैं जिनसे अधिक संपूर्णता मुझे कभी किसी महिला में नज़र नहीं आई। औरत पत्नी ...

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नहीं अब और नहीं

चलना है इसलिए चल दिए हैं, उठना है इसलिए उठ पड़े हैं। यूं बेमक़सद-सा चलते जाना क्‍यूं ज़िन्दगी का दस्तूर हुआ। आशा से भरी निगाहें लिए मन में ढेरों सपने सजाए कब से चल रहे हैं पल भर पलट कर देखें, सोचें क्या बदला, क्या पाया। उम्मीद के उस छोर से हम कितनी दूर। आशा थी हमें कि औरत को ...

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हादसों की खुशबू

जो हम पाना चाहें वही मिल जाए ये ज़रूरी तो नहीं और जो हमें मिल जाए उसे हम चाहने लगें ऐसा होता ही नहीं। जिसे हम चाहते हों उसे पा लें यह ज़रूरी तो नहीं और जिसे हम पा सकें उसे ही अपना लें ऐसा होता ही नहीं । फिर भी हम जी तो पाते हैं। तब भी चाहतें दिलों ...

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अहसास दर अहसास

अहसासों को अंजुली में भरकर रखा नहीं जाता ये तो पल-प्रतिपल बदल जाते हैं। ये अहसास, ये भावनाएं हाथ से रेत की मानिंद फिसलते हैं तो रोक लेने होते हैं यह सदा के लिए। क़ैद करना होता है इनको इन कोरे काग़ज़ों पर। लेकिन हर बार शब्द साथ नहीं देते। कई बार जाने शब्द क्यूं नहीं मिल पाते कहां खो ...

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रज़ा में राज़ी कब तक

‘हमेशा बहार-सी हो ये ज़िन्दगी’ ये दुआ करते हैं सभी। पर पतझड़ के बिना बहार के मायने कौन समझ पाता। कहते हैं जिसने दु:ख न देखे हों वो खुशी की तीव्रता, सुखों के आनंद के एहसास से वंचित रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो तो ये एहसास तक ख़त्म हो जाए ...

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मुक्‍ति नहीं अधिकार

बदले समय, बदले परिवेश में बदली है पुरुष मानसिकता भी। पुरुष की शिकायत पर यदि ग़ौर करें तो-समय की नब्ज़ को पहचानते हुए अपने क़दम उठाने के बावजूद, औरत के लिए सहयोगी रवैया अपनाने के बावजूद आज भी उसे शंका से देखा जाता है। दुविधा में है समाज आज। समय-समय पर स्त्री -पुरुष संबंधों पर विचार मंथन होता आया है। ...

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चिड़ियां-कुड़ियां

वाक़ई में आजकल चिड़ियों की चहचहाहट कभी सुनी नहीं। जब किसी से सुना तो ध्यान आया। पता करने पे मालूम हुआ कि आसपास के गांवों में भी इक्का-दुक्का चिड़ियां ही रह गई हैं। मन विचलित-सा हुआ। न जाने क्यूं रह-रह कर कुड़ियों (लड़कियों) और चिड़ियों को एक जैसे बताने वाले गीत-कविताएं याद आती चली गईं। हमेशा इन्हें एक-सा माना जाता ...

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ज़िंदगी चलने का नाम

नहीं चलना चाहती लगातार। कभी-कभी रुकना चाहती हूं। ठहरना चाहती हूं। कहते हैं कि यदि आप अच्छा सोचते हैं अच्छा करते हैं या अच्छा करने की ओर क़दम बढ़ता है तो कभी थकते नहीं। लगातार चलते हैं। कभी भी मन खिन्न नहीं होता सदा प्रसन्न चित्त रहता है। लेकिन मैं तो थक भी जाती हूं मन भारी भी होता है। ...

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राहें पुकारती हैं

नारी सशक्तितकरण व महिला दिवस की बातें, वुमन्स लिब की बातें सुनते-सुनते जैसे एक युग बीतने को है। ऐसा भी नहीं कि ये खोखली बातें हैं नारी की उपलब्धियां, उसके नए आयामों का विस्तार, हर क्षेत्र में पुरुष के समक्ष डट कर खड़ी होने के उदाहरण हमारे सामने हैं। लेकिन फिर भी कुछ बातें ग़ौरतलब हैं। क्या ये उपलब्धियां उसको ...

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जीवन और संघर्ष

ज़िन्दगानी, ये जवानी यूं ही गुज़र जाने का नाम नहीं हादसों का नाम है ये, एक रवानी-सी है। ज़िंदगी का मतलब यह नहीं कि जो हो रहा है उसे वैसे ही होता रहने दो। जो गल-सड़ चुका है उसे बदल दो। कुछ नया करो, कुछ बढ़िया करो। हमने अपनी ज़िंदगी का बहुत-सा वक़्त तो सीखने में और सीखी हुई ज़िंदगी ...

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