-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

समस्त सृष्‍ट‍ि की रचयिता जगत दात्री पूजनीय महिलाओ आप धरती का स्वर्ग हो, इसको आप नशे के सेवन से नर्क मत बनायें। मर्द तो प्राचीन काल से ही नशे की लत से संलिप्‍त है। सतयुग हो या त्रेता, द्वापर हो या कलयुग मर्द ने मदिरा को खूब चूमा है। देवता हो या दानव, गन्धर्व हो या राक्षस सभी ने सुरा-सुन्दरी का खुलकर प्रयोग किया है। एक भारत की नारी ऐसी है जिसने इस घृणित द्रव्य को हाथ नहीं लगाया। यह नारियों के हृदय की विशालता है कि भारत की साख को बचाये रखा है। देश की गरिमा को चार-चांद लगाये हैं।

परन्तु अफसोस की बात यह है कि आधुनिक नारी अपने स्वाभिमान को गंवाती जा रही है। आज के लोकतन्त्र में पुरुष, नारी को समानता के अधिकार प्राप्‍त हैं। आधुनिक नारी इस सन्दर्भ में खुलकर जीने का अधिकार रखती है। वह पुरुष की ज़्यादतियों और मनमानी को स्वीकार नहीं करती। पुरुष के मुक़ाबले नारी हर क्षेत्र में श्रेष्‍ठ है, परन्तु यह श्रेष्‍ठता नशे या शराब के सेवन से उनके अपने लिए और समाज के लिए घातक है। आज निम्नवर्ग की महिलायें, दूध बेचने वाली गुजरियां, घर-घर मांगने वाली बंजारिनें और मज़दूरिनें तम्बाकू, सिगरेट और बीड़ी का इस्तेमाल करके कई रोगों को न्यौता दे रही हैं। मर्दों की गन्दी आदतें इन पर भी हावी हो गई हैं। जो समाज के लिए ख़तरे की घंटी है।

अभिजात्य वर्ग की महिलायें होटलों, क्लबों और बड़े-बड़े पांच सितारा होटलों में जा कर जुआ और शराब का भरपूर लुत्फ़ उठाती हैं। पश्‍चिमी सभ्यता के अन्धानुकरण के कारण रईस घरानों की महिलाओं में व्हिस्की के जाम पार्टी की शान बनते हैं। उनकी देखा-देखी इस रंगीन मिज़ाजी का असर हमारे कॉलेज में और युनिवर्सिटी की बालिकाओं पर भी पड़ा है। सिनेमा-टी.वी., कम्प्यूटर, फेसबुक, इंटरनैट और लैपटाप के माध्यम से विदेशी नग्नता और अश्‍लीलता का रंग उन पर भी चढ़ा है। नशाख़ोरी की चका-चौंध में हमारी योग्य छात्राएं भी इस बीमारी से ग्रस्त हो गई हैं। लड़कों ने अपनी गन्दी आदतों में भोली-भाली लड़कियों को भी फंसा लिया है। कभी यह ख़बर आती है कि एक युवती नशे में धुत्त होकर बेहयाई पर उतर आई। कभी यह समाचार मिलता है कि शराब के नशे में महिला ड्राईवर ने सड़क के किनारे सोये हुए लोगों को कुचल दिया।

दम मारो दम की युरोपीय नशे की बुराई भारत में क्या आई कि भारतीय लड़कियां उसका अनुकरण करने लगी और जीवन का आनन्द नशे में खोजने लगीं। शराब जिसका अर्थ ही शरारत का पानी है भला समाज की भलाई कैसे कर सकती है।

हे देवियो तुम आने वाले भारत का भविष्य हो। तुम कल्पना चावला हो, सोनिया नेहवाल, सानिया मिर्ज़ा, लक्ष्मी बाई, इंदिरा नुई, मदर टेरेसा, प्रतिभा पाटिल, अमृता प्रीतम और महादेवी वर्मा हो। तुम पर भारत को नाज़ है, गर्व है। तुम भारत का गौरव हो। पुरातन संस्कृति की धरोहर हो। तुम सीता हो, सावित्री हो, पार्वती और दुर्गा हो। अनसूईया हो, द्रोपदी और भवानी हो। अपने अस्तित्त्व को पहचानने का कष्‍ट करो तुम्हारी गर्भवती उत्पत्ति का प्रभाव तुम्हारी सन्तान पर भी पड़ेगा। क्योंकि विज्ञान से प्रमाणित हो चुका है कि गर्भावस्था में माता के संस्कारों का प्रभाव शिशु पर अवश्य पड़ता है।

वीर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने की कला गर्भ में ही सीख ली थी। शिवा जी की माता जीजा बाई गर्भ में ही शिवाजी को बहादुरी की कहानियां सुनाया करती थी। इसलिए वे महान योद्धा बने।

हे देवियो तुम्हारे आचार-व्यवहार-खान-पान और चरित्र का असर आपकी सन्तान पर भी पड़ेगा। क्या तुम नशेड़ी सन्तान को उत्पन्न करना चाहोगी? क्या विकलांग बच्चे को जन्म देना चाहोगी? जो धरती पर बोझ बन जाए ऐसी सन्तान पैदा करने का क्या लाभ। तुम तो वीरांगना हो। महाराणा प्रताप, गुरु गोबिन्द सिंह, गुरु नानक, बुद्ध और कबीर जैसे युग अवतारों को आपने जन्म दिया है। तुम्हारी छवि सदा कल्याणकारी रही है। तुम कितनी पूजनीय हो अपनी आत्मा के पट खोलो। मेरा आपसे विनम्र विनय है कि आप समाज और राष्‍ट्र के निर्माण हेतु नशे के व्यसनों को त्याग दें। मेरे देश की देवियो आपका देवी रूप ही बना रहे तो अतिउत्तम है।

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