-एस. मोहन

वृद्ध पिता की गम्भीर हालत देखकर सीमा ने शहर में रह रहे अपने डॉक्टर भैया को इसकी सूचना टेलीफ़ोन पर दी। डॉक्टर बेटे ने कुछ हिदायतें देते हुए दो-तीन तरह की दवाओं के नाम बताकर पिता जी को देने के लिए कह अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया। बहन ने मायूस होकर फ़ोन रख दिया।

रात बहन ने डॉक्टर भैया को बताया, ‘तुम्हारी दवाई का ज़रा भी असर नहीं हुआ, पिता जी की हालत पहले से बेहतर नहीं है, तुम आ जाते तो…’ डॉक्टर साहब बीच में बोल उठे, ‘मैं अभी नहीं आ पाऊंगा, अभी तो पूरी तरह चार्ज भी नहीं लिया। मैं दवा बदल देता हूं, इस दवा से पिता जी ज़रूर ठीक हो जायेंगे।’ कहते हुए डॉक्टर साहब ने फिर दवा लिखवा दी और अपनी ड्यूटी पूरी कर दी।

सुबह फ़ोन की घंटी बजी डॉक्टर साहब ने फ़ोन उठाते ही पूछा, ‘क्या हाल है पिता जी का? दवा ने ज़रूर असर किया होगा?’

‘भैया तुम आ जाओ…,’ सीमा का स्वर सुनकर डॉक्टर साहब बोले, ‘घबराओ नहीं सीमा, हिम्मत से काम लो। कल वाली दवाओं से ज़्यादा असर नहीं पड़ा है तो मैं दूसरी…’

सीमा बीच में ही फफक पड़ी।

‘अब दवा की नहीं … मुखाग्नि देने की … क्या वो भी फ़ोन से दे…’ सीमा सिसकने लगी। चोगा हाथ से छूट गया था परन्तु सीमा की सिसकियों का स्वर डॉक्टर साहब के कमरे में गूंज रहा था।

One comment

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