-मनप्रीत कौर भाटिया   

      मां की मौत की वजह से सारे घर में मातम छाया हुआ था। संस्कार की रस्म के तीन चार दिन बाद ही ख़र्चे के नाम पर दोनों भाइयों में बहस हो गई। मगर लोक लज्जा का उन्हें फिर भी ध्यान था। कोई तीसरा यह सब सुन न ले इसीलिए वह घर के कोने वाले कमरे में जा बैठे।

     बहुत देर उनमें बहस चलती रही। आख़िर छोटे भाई ने यह कह कर अंतिम फ़ैसला कर दिया कि, “तुम बड़े हो इस बार सारा ख़र्च तुम कर दो, पिता जी की बार मैं कर दूंगा।”

      उनका बाप जो कि बाहर खड़ा यह सब सुन रहा था, सुनते ही सुन्न पड़ गया। हाय रब्बा! इन्हें अपनी मां की मौत का ज़रा भी ग़म नहीं, यह तो मेरी मौत के लिए भी…. और सदमे से बूढ़ा उसी वक़्त प्राण त्याग गया।

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