-धर्मपाल साहिल

कौन है जो सुन्दर नहीं दिखना चाहता। औरत हो या मर्द, जवान हो या प्रौढ़ सुन्दरता को मापने का कोई पैमाना नहीं होता। हो भी नहीं सकता। देश और दुनियां के अलग-अलग क्षेत्रों में सुन्दरता के अर्थ बदल जाते हैं। किसी को एक चेहरा चांद-सा लगता है तो दूसरे को उस चांद में दाग़ नज़र आता है। लैला लोगों की नज़रों में बदसूरत थी लेकिन मजनूं के लिए जन्नत की हूर। खूबसूरती तो देखने वालों की आंख में होती है। भारत ही नहीं विश्व भर में कहीं गोरा रंग सुन्दरता का पैमाना है तो कहीं काला रंग। कहीं तीखे नैन-नक़्श क़ातिल हैं तो कहीं मोटे नैन-नक़्श। कहीं काले लम्बे बालों में घटाएं छिपी हैं तो कहीं भूरे छोटे बाल स्मार्टनेस की निशानी। कहीं भरी हुई गालों वाला गोल-मटोल पूनम का चांद तो कहीं चीक बोन अर्थात् गालों की उभरी हुई हड्डियों वाला। कहीं हिरनी-सी चंचल काली आंखें हीरे की कनी तो कहीं नीली भूरी आंखें झील। कहीं पतला छरहरा बदन, सरू का बूटा तो कहीं भरा-पूरा गदराया बदन। उभरे वक्ष और भारी नितम्ब सैक्स सिंबल। आख़िर कौन-सा है सर्वमान्य सुन्दरता का पैमाना।

आज सुन्दरता के अर्थ ही बदल गये हैं। सुन्दरता अब अन्य बिकाऊ वस्तुओं की तरह बाज़ारी वस्तु बनकर रह गई है, सौंदर्य का व्यापारीकरण हो गया है। प्राकृतिक सुन्दरता वाली बातें अब बीते ज़माने के क़िस्से बनकर रह गए हैं। अब आप सुन्दर न भी हों तो भी मनचाही सुन्दरता प्राप्त कर सकते हैं। बस आप की जेब में पैसे होने चाहिए। उधर सौन्दर्य प्रतियोगिताओं ने प्रत्येक औरत-मर्द के मन में सुन्दर दिखने की चाह पैदा कर दी है। इसी चाहत ने गली-गली खुलवा दिए हैं ब्यूटी पार्लर और दुनियां भर में सौन्दर्य प्रसाधन का उद्योग। सौंदर्य प्रतियोगिताओं, मॉडलिंग, फ़ैशन शो तथा फ़िल्मों से जहां अनगिनत औरतों को रोज़गार मिला है वहीं औरत अब हर हाल और हर उम्र में सुन्दर दिखने लगी है। जैसे हर कोई कह रहा हो – ‘बड़ी सुन्दर लगती हो।’

बात अब यहां तक ही सीमित नहीं रह गई है। अब विशेषज्ञों का ज़माना है। सुन्दरता अर्जित वस्तु बनकर रह गई है। अब इच्छा अनुसार सुन्दरता प्राप्त करना सम्भव ही नहीं आसान भी हो गया है। इस कार्य हेतु सुन्दरता उद्योग की शरण में जाइये। इनका आधार आज के सुन्दरता के स्थापित मॉडलस हैं। सुन्दरता के इस बदले हुए दृष्टिकोण में आप किसी भी हीरो या हीरोइन या मॉडल को अपना आदर्श चुनकर उसके जैसा दिखने की इच्छा मन में रख कर इस बाज़ार में प्रवेश कर जाओ। वे ज़माने लद गये जब किसी ऐसी सुन्दरता के प्रतीक हीरो-हीरोइन जैसे बालों का स्टाइल, मेकअॅप तथा कपड़ों की नक़ल करके खुद को सुन्दर कहलवा लिया जाता है। अब तो आप पूरी क़ीमत दीजिए। हैल्थ क्लब या जिम जाकर ‘संजय’ या ‘सलमान’ की सी मांसपेशियां प्राप्त कीजिए।

छरहरे रहने के लिए डाइटिशियंस से शुल्क देकर सलाह लें। त्वचा को कोमल चमकदार बनाने के लिए स्किन स्पैशलिस्ट से सम्पर्क कर सकते हैं। मसाज माहिर से बांहों, पिंडलियों और चेहरे की सुडौलता प्राप्त कर सकते हैं। विशेष प्रकार के क्रीम, लोशन बाज़ार में उपलब्ध कराए गए हैं। चेहरे अथवा शरीर के अन्य भागों से अनचाहे बालों की पक्की छुट्टी करा सकते हैं। चेहरे की फेशियल, पैडिक्योर, मैनीक्योर, आइब्रो का मनचाहा स्टाइल। ड्रैस अनुसार कमर व कंधों की मालिश। यही नहीं मनपसंद नाक, होंठ, पलकें, स्तन प्राप्त करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी हाज़िर है। फेस लिफ़्टिंग करा कर उम्र को छिपा सकते हैं। झुर्रियां और दाग़ आदि साफ़ करा के आप हुस्न की मलिका या मालिक कहलाने का रुतबा हासिल कर सकते हैं। कॉस्मैटिक्स सर्जरी के बलबूते पर मोटी नाक, मोटे होंठ, दोहरी ठोडी, लम्बे कान, भारी पलकें पतली और हल्की करवाई जा सकती हैं।

दांत बाहर झांकते हैं तो डेंटिस्ट से तार बंधवा कर भीतर किए जा सकते हैं। रंग बदला चुके या ख़राब हो चुके दांतों को बदला जा सकता है। मैमोप्लास्टी ऑगेमेन्टेशन द्वारा लटके और ढीले-ढाले वक्षों को युवतियों जैसे उभार वाले बना सकते हैं। कई बच्चों की मां होकर भी, कुंवारी लड़कियों जैसी कमर से सटे पेट, टमीटक, गंजे सिर पर ग्राफ्टिंग करवाई जा सकती है। बस इन सब के लिए आप को अदा करनी पड़ेगी इन विशेषज्ञों की मुंह मांगी फ़ीस। फिर देखिए आप इस बात को झुठला सकते हैं कि सुन्दरता जन्मजात वरदान होती है, अर्थात् आनुवंशिक रूप से माता-पिता से प्राप्त। अब आप बदसूरती के लिए भगवान को नहीं कोस सकते।

वास्तव में सुन्दर दिखने की मांग और होड़ पैदा करके इसकी पूर्ति हेतु ही सुन्दरता उद्योग स्थापित किया गया है। हरेक व्यक्ति में हर हाल में सुन्दर दिखने और सुन्दर कहलाने की कमज़ोरी का लाभ उठाने के लिए उसे मीडिया द्वारा चकाचौंध कर देने वाला ग्लैमर दिखाया जाता है। फिर पसंदीदा सुन्दरता प्राप्त करने के लिए लाखों-करोड़ों ख़र्च करने पड़ते हैं। जो उच्च वर्ग के लोग ही कर सकते हैं। सुन्दर दिखना और शोपीस बन कर रहना उन घरों की औरतों का स्टेट्स सिम्बल है, उनके अस्तित्त्व का आधार ही सुन्दरता है, चाहे क़ुदरती हो या ग़ैर क़ुदरती। ढलती उम्र में तो अपनी खूबसूरती क़ायम रखने के लिए वे इस उद्योग का बढ़-चढ़ कर सहारा लेती हैं। निम्न मध्य वर्ग तो रवायती ढंगों से गुज़ारा चला लेता है, क्योंकि सुन्दर दिखने, कहलाने की उन के मन की चाह तो ज़रूर होती है मगर ज़िंदगी की अन्य आवश्यकताओं के समक्ष उतनी अहम नहीं। उनके लिए तो ‘और भी ग़म हैं ज़माने में, मोहब्बत के सिवा’ वाली बात चरितार्थ होती है।

हाई क्लास सोसायटी की तो ये कमज़ोरी और मजबूरी है, लेकिन आम साधारण लोगों के मनों में आध्यात्मिक शास्त्रों और प्रवचनों द्वारा यह बात कूट-कूट कर भर दी गई है कि असली सुन्दरता तो व्यक्ति की आन्तरिक सुन्दरता होती है। इसे आन्तरिक गुणों का विकास करके ही प्राप्त किया जा सकता है। बाह्य सुन्दरता तो अस्थाई है। कितनी देर सहारा देकर इस इमारत को गिरने से बचाएंगे, आख़िर इसे ढहना ही होगा। आप सौ माधुरी, ऐश्वर्या, सलमान या संजय नज़र आएं, समाज में आख़िर मूल्य तो भीतरी गुणों का ही पड़ेगा।

इस भीतरी सुन्दरता को बढ़ाने वाला उद्योग भी बहुत बढ़ फूल रहा है। जगह-जगह सत्संग प्रवचन हो रहे हैं। बस आप के मन में इच्छा और श्रद्धा होनी चाहिए। मुफ़्त में सत्संग सुनिए, टी.वी. पर विभिन्न चैनलों के माध्यम से घर बैठे ‘योगा’ सीखिए। आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त कीजिए और कर लीजिए भीतरी सुन्दरता का विकास। इतना ही नहीं इनकी नक़ल करके धारा प्रवाह और आकर्षक शैली में प्रवचन करके सोसाइटी में नाम कमाइए। सद्पुरुष अथवा पहुंचे हुए व्यक्ति कहलाइये श्रेष्ठ बनकर मुंह मांगी मुराद पूरी कीजिए अपनी भी और दूसरों की भी। अपना तीसरा नेत्र खोलकर, कुंडलििनी जगाकर, अनहद नाद सुनें और उसके स्वर्गिक सुख आनंद का एहसास लच्छेदार भाषा मेंं कराइये और समाज में विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी बनकर नाम कमाइये। यह ढंग सबसे सस्ता और उपजाऊ-टिकाऊ है। तो जनाब जड़ से उखाड़ फेंकिये अपने दिल-दिमाग़ से इस हीन भावना को कि आप सुन्दर नहीं हैं। सुन्दरता आपकी प्रतीक्षा कर रही है। ज़रा जेब हल्की करके ज़माने से कह दीजिए कि हम भी किसी से कम नहीं हैं।

 

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