-मनप्रीत कौर भाटिया

अपना प्यार पाने के लिए सीमा पूरे समाज का सामना करने के लिए तैयार थी। अरुण ने जैसे कहा बिल्कुल वैसे ही सीमा अपना घर छोड़, सारा सामान लेकर उसकी बताई हुई जगह पर पहुंच गई।

“अरुण, आज मैं तुम्हारे लिए सब कुछ पीछे छोड़ आई हूं, अब तुम जहां कहोगे मैंं चलने के लिए तैयार हूं, “सीमा ने अरुण को बाहों में लेकर अथाह प्रेम प्रकट करते हुए कहा।

“नहीं, नहीं सीमा नहीं, तुम्हें मैं कहीं भी लेकर नहीं जा रहा हूूं, तुम तो धोखेबाज़ हो, आज मैंनें तुम्हें अच्छी तरह से परख लिया है।”

“क्या कहा, धोखेबाज़। और वो भी मैं? अरुण क्या तुम मज़ाक के मूड में हो।” सीमा चौंकते हुए बोली।

“नहीं सीमा, मैं मज़ाक नहीं कर रहा।”

“क्या?” सीमा हैरत से अरुण को देखने लगी। “क्या….?  क्या कह रहे हो तुम?”

“हां, मैं ठीक कह रहा हूं, तुुमने धोखा किया है अपने उन मां-बाप से जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया, तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हें पढ़ा लिखा कर अच्छी नौकरी के क़ाबिल बनाया। मैं तो तुम्हें कुछ देर पहले ही मिला हूं। और तुम मेरी ख़ातिर अपने उन मां-बाप को छोड़ने के लिए तैयार हो गई, जिन्होंने आज तक तुम्हारे लिए न जाने कितनी कुर्बानियां दी होंगी। तुमने धोखा ही तो किया है उनसे। अगर तुम अपने जन्म देने वालों की न हो सकी तो मेरी क्या होगी?” कहते हुए अरुण जा चुका था।

सुन्न खड़ी सीमा जिसने कभी सोचा भी न था कि अरुण–अरुण ऐसा कहेगा.. अब अपनी ग़ल्ती को महसूस करने की कोशिश कर रही थी।

One comment

  1. Touche. Outstanding arguments. Keep up the great effort.

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