-विजय रानी बंसल

याद कीजिए वो पल जब आपकी लाडली ने हौले से आपकी अंगुली को अपनी मुट्ठी में दबा लिया था। वो नन्हा, कोमल स्पर्श जो खुद को आश्‍वस्त-सा करता था जैसे-हां मम्मी-पापा मेरे पास हैं। आपसे बेहतर कौन है जो उसे सही-ग़लत में फ़र्क़ करना सिखाएगा, जो उसे विश्‍वास में ले उसके हित की बातें बताएगा और जो उसकी सुरक्षा के लिए हमेशा फ़िक्रमन्द रहेगा। तो अब फिर से समय है उसी जादुई स्पर्श के प्रयोग का। उसके बढ़ते क़द, उलझनों से जूझते दिमाग़ और तेज़ी से बदलती दुनिया जैसी चीज़ों के सामने आप बढ़ाइए दोस्ती का हाथ, उसके साथ।

सीमा जब भी अपने पड़ोसी मयंक से बातें करती थी तो उसके माता-पिता अक्सर उसे डांट देते थे – इतनी बड़ी हो गयी, मगर इस बात की तमीज़ नहीं कि लड़कों से कैसे बात की जाती है। उसे समझ में नहीं आता था कि लड़कों से बात करने का कौन-सा अलग ढंग होता है। इतना ही नहीं, अगर वह बच्चों के साथ खेलती थी तो भी उसे डांट खानी पड़ती थी कि इतनी बड़ी हो गयी है पर हरकतें अभी भी बच्चों वाली हैं।

सिर्फ़ सीमा ही नहीं, हमारे समाज में अधिकांश युवा होती लड़कियों के साथ ऐसा ही होता है। किसी को ऊंची आवाज़ में बात करने के लिए टोका जाता है तो किसी को ज्‍़यादा टी.वी देखने के लिए। किसी को ज्‍़यादा सजने-संवरने से मना किया जाता है तो किसी को लड़कों से बात करने के लिए। यहां तक कि खुलकर हंस देना भी कई बार गुनाह की श्रेणी में आ जाता है। पर यह सब क्या सही है?

अक्सर माता-पिता को यह बुरा लगता है कि कल तक जो लड़‍की उनका हर कहना मानती थी, बड़ी होने पर वह ऐसा नहीं करती है। इधर बेटी को भी लगता है कि जो माता-पिता उसे बचपन में इतना प्यार करते थे, उसकी एक-एक बात मानते थे, अब बात-बात पर उसे टोकते क्यूं है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि दोनों ही एक दूसरे को समझें। यह सही है कि माता-पिता अपनी बेटियों का भला चाहते हैं और इसी कारण अपनी युवा बेटियों पर कुछ बंधन लगाने को मजबूर होते हैं। पर अब ज़माना बदलने लगा है। इसलिए बेटी की नज़र से भी दुनिया को देखो। उस पर बंदिशें लगाने की बजाए उसकी समस्याओं को सुनें और धैर्य व प्यार से उनका समाधान करें। आज के परिवेश में ज़रूरत इस बात की है कि अपनी युवा बेटी के साथ दोस्त की तरह व्यवहार करें। इस बात का ध्यान रखें कि अब आपकी बेटी कल की गुड़िया नहीं है बल्कि एक ऐसी उम्र में पहुंच गयी है जब वह अपना अच्छा-बुरा समझ सकती है। वह अपना जीवन अपने ढंग से जीना चाहती है और छोटी-छोटी बातों के लिए वह आप पर निर्भर नहीं रहना चाहती। वहीं युवावस्था में पहुंचते ही शारीरिक व मानसिक रूप से जो बदलाव आते हैं उसका ही परिणाम होता है कि लड़कियों में अल्हड़ता, लज्जा, घबराहट, क्रोध आदि भाव ज्‍़यादा नज़र आने लगते हैं। कभी तो वह बहुत सुस्त नज़र आती है तो कभी क्रोध से तूफ़ान मचाने लगती है। जब आप उससे कुछ पूछते हैं तो वह रूखा-सूखा सा जवाब पकड़ा देती है। ऐसे में आपकी ज़रा-सी भी उपेक्षा उसे हताशा व कुंठा से भर देगी। फिर लाख चाहने पर भी उसके व्यक्‍तित्व का सन्तुलित विकास नहीं हो पाएगा।

इसीलिए उसके साथ दोस्ताना व्यवहार अपनाएं और अपने विश्‍वास में लेकर उसकी मानसिक अवस्था और व्यवहार से तालमेल बैठाने की कोशिश करें। चाहे कैरियर का मामला हो या कहीं जाने आने का, ख़रीदारी का मामला हो या सजने-संवरने का या दोस्ती का मामला हो बेवजह की रोक-टोक आपकी बेटी से आपको दूर ही ले जाती है। अगर आप अपनी बेटी पर विश्‍वास करेंगे, उसे समझेंगे और आज़ादी देंगे तो वह भी आपके मनोभावों को इज्‍़ज़त देगी और आपके अरमानों को ठेस नहीं पहुंचाएगी। इन बातों का यह भी मतलब नहीं है कि आप अपनी बेटी पर ध्यान देना ही छोड़ दें। आप उसके रहन-सहन, खान-पान व मित्रों पर नज़र रखें और समय-समय पर उसे उचित सलाह दें। आप माता-पिता हैं और आपके हर आदेश का उसे पालन करना ही है, ऐसी विचारधारा अपने मन से निकाल दें। आप अपने अतीत में झांक कर देखें और याद करें आप जब इस उम्र में थे और आपको बार-बार हिदायतें दी जाती थी तो आप कितने आक्रामक हो उठते थे। इसलिए बेटी पर शासन करने की कोशिश न करें। आप उसके साथ सन्तुलित व्यवहार रखें यानी थोड़ा प्यार भी थोड़ी डांट भी। फिर देखिए, सवाल ही नहीं उठता कि वह कोई ग़लत क़दम उठाए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*