-रचना गौड़ भारती

हमारी मनोवृत्तियों का निर्माण काम, क्रोध, मोह आदि मानसिक वेगों द्वारा होता है । सतयुग से कलियुग तक क्रोध की अग्नि मानव का विनाश करती आई है। क्रोध एक मानसिक वेग है जो शरीर का नाश करता है। क्रोध के परिणाम भयंकर से भयंकर तक हो सकते हैं। इसका जन्म हिंसा की भावना से और अंत पश्चाताप से होता है। क्रोध का विवेक से परस्पर विरोधी होना और विवेक का अनुपस्थित होना क्रोध को जन्म देता है। क्रोध या ग़ुस्सा किसी को भी और कभी भी आ सकता है। इससे बचा कैसे जा सकता है यह जानने के लिए हम कुछ बिन्दुओं का अध्ययन करेंगे।

. हमें क्रोध कब आता है? – साधारण तौर पर हमारी इच्छा के विपरीत जब कोई कृत्य होता है तो परिणामस्वरूप हमें क्रोध आता है लेकिन इसका मूल कारण इसकी गहराई में छुपा होता है जो इसे जन्म देता है वह हिंसा की भावना का होना है। हिंसा किसी को मारना या उसका वध करना ही नहीं है बल्कि मन में उठा यह भाव भी हिंसा के समान ही बुरा है।

. स्वयं से हिंसा – हिंसा हम अपने साथ भी करते हैं। हमारे अन्दर उत्पन्न द्वन्द्व, संघर्ष और तनाव हमें मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान करते हैं। वही हमारी स्वयं की स्वयं के प्रति हिंसा है। अपने मन को मारना, क्रोध दबाना या ग़ुस्सा पीना अपने आप के प्रति की गई हिंसा है। जब कोई संघर्ष, कशमकश और हिंसा का भाव हमारे अंदर चरम सीमा पा जाता है उसकी अति हो जाती है तो हमारा खून गर्म हो कर उबलने लगता है जिससे स्नायुओं में खिंचाव पैदा होता है और शरीर में रासायनिक परिवर्तन होने लगते हैं। जब हमारा शरीर इसके दबाव को सहन नहीं कर पाता तो हम ग़ुस्से से कांपने लगते हैं। ग़ुस्सा कंट्रोल करना या दबाना पूर्णतया हमारे स्नायविक संस्थान पर निर्भर करता है।

. ग़ुस्सा जल्दी किन्हें आता है? – जिन लोगों का स्नायविक संस्थान दुर्बल होता है वे ज़्यादा ज़ब्त नहीं कर पाते और जल्दी भड़क जाते हैं इसलिए कमज़ोर को ग़ुस्सा जल्दी और ज़्यादा आता है। इसके विपरीत अधिक शक्तिशाली लोग अपनी शक्तियों के बल पर अपने मन मुताबिक़ काम दूसरों से करवा लेते हैं। दूसरों को डराकर या भयभीत करके और इस दौरान जब कोई उनके मुताबिक़ नहीं चलता या काम नहीं करता है तो वह अपने बल या शक्तियों का इस्तेमाल कर सामने वाले को ग़ुस्सा प्रदर्शित करते हैं। ऐसी स्थिति से गुज़रे लोगों के लिए ही शायद यह मुहावरा बना है- ‘क्रोध से पागल होना’। इस समय व्यक्ति पागलपन के दायरे में आ जाता है और उसका विवेक उसे छोड़ देता है या चला जाता है। विवेक हमें शांत रखता है और नियंत्रित भी करता है मगर उसकी ग़ैर-हाज़िरी में मन का असंतोष, कुंठा, तनाव और कशमकश व्यक्ति के अंदर विस्फोटक स्थिति पैदा करते हैं और विस्फोट हो ही जाता है।

किन्हीं लोगों में ग़ुस्सा सकारात्मक गुण भी दिखाता है। उसका प्रभाव उनमें एक नया जोश व वहशीपन भर देता है जिससे सामान्य स्थिति में न कर पाने वाला काम भी वह कर डालते हैं। मसलन अगर आप ग़ुस्से में हों तो पढ़ाई अच्छी कर सकते हैं क्योंकि इस समय आप दुनियांदारी से स्वयं को अलग कर लेते हैं और स्वयं में ही एकाग्रचित हो जाते हैं। ऐसा ग़ुस्सा आपकी एकाग्रता बढ़ाता है। ग़ुस्सा हर व्यक्ति को आता है और ज़रूरी भी है लेकिन ग़ुस्से को नकारात्मक या सकारात्मक बनाना आपके अपने हाथ में है। ग़ुस्से को भी एक निश्चित दिशा प्रदान करने की आवश्यकता होती है।

. ग़ुस्सा कैसे संतुलित करें? – भगवान् ने मानव को दुनियां की गति की तरह, जीवन की तरह परिवर्तनशील बनाया है। जन्म से मरण तक विभिन्न अवस्थाओं से गुज़रने के साथ-साथ मनुष्य को अपनी कई आदतों को भी बदलना पड़ता है। किसी काम को लगातार करना एक आदत का रूप धारण कर लेता है और आदतें बदलना हमारे अपने हाथ में है। इसी प्रकार जब हम आदत बदल सकते हैं तो अपनी प्रवृत्तियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। जैसेः-

1. अपने ग़ुस्से का कोई पैमाना न निर्धारित करें।

2. अपने ग़ुस्से पर कभी गर्व नहीं करें कि हमारा तो ग़ुस्सा ऐसा ही है।

3. ग़ुस्से को अपने नेचर से न जोड़ें।

4. ग़ुस्से को अपने आप से कभी बड़ा या अधिक न होने दें।

5. ग़ुस्सा नियंत्रित की जाने वाली प्रवृत्ति है, इसे अनियंत्रित रूप में न देखें।

6. ग़ुस्सा आने की स्थिति में कभी स्वयं को कमज़ोर समझकर ग़ुस्से को अपने पर हावी न होने दें।

अपने व्यक्तित्व का निर्माण व्यक्ति स्वयं करता है और ग़ुस्सा व्यक्तित्व में निखार लाने की बजाय कलंक का काम करता है। सूरज भी अपनी निश्चित ऊंचाई के बाद ढलने लगता है। आपको भी ग़ुस्से की ढलान उसकी ऊंचाई से बढ़ानी होगी। ग़ुस्से के दुष्परिणाम वैसे तो सभी जानते हैं। यह हमें रचनात्मक मार्ग से भ्रमित करने वाला, संबंधों में दरार डालने वाला अति विनाशी व हानिकारक होता है। मगर शरीर के लिए व मानसिक संतुष्टि के लिए समय-समय पर इसका प्रदर्शन आवश्यक हो जाता है और होना भी चाहिए। शरीर की गंदगी की तरह ही यह त्याज्य तो है मगर याद रहे इसकी मलिनता कहीं आपके व्यक्तित्व को मैला न कर दे।

. ग़ुस्से का प्रदर्शन – हर व्यक्ति अपना ग़ुस्सा दिखाना चाहता है। जब उसके मन की बात पूरी नहीं होती तो तरह-तरह से वह अपने ग़ुस्से के ज़रिये दूसरों को बताता है कि यह बात उसे नापसंद आयी। बस सबके तरीक़े बदल जाते हैं। कुछ लोग ग़ुस्से में मौन ले लेते हैं, कुछ लोग खाना नहीं खाते, कुछ लोग उस जगह से कुछ देर के लिए दूर चले जाते हैं तो कुछ उस वस्तु या व्यक्ति को ही त्याग देते हैं जो ग़ुस्से का कारण हो। ऐसा ग़ुस्सा दूसरों को हानि पहुंचाने वाला नहीं होता। इसमें आप स्वयं को या आंशिक रूप से अपनों को अपनी प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं। लेकिन ग़ुस्से का भयंकर विकराल रूप आपकी, आपके अपनों की और यहां तक कि दूसरों की जो अनजान हैं परेशानी व दुःख का कारण बन सकता है उन्हें शारीरिक या मानसिक पीड़ा दे सकता है। जब आप ग़ुस्से में घर का सामान तोड़ें, बर्तन पटकें, मारपीट करें ऐसी विध्वंसक स्थिति कितना नुक़सान पहुंचाती है यह ग़ुस्सा शांत होने के बाद ही जाना जाता है। सामान तोड़ने-फोड़ने से कोई बहुत क़ीमती चीज़ का नुक़सान हो सकता है। मारपीट से गहरी चोट आ सकती है। यह तो कुछ उदाहरण हैं जिन्हें हम दृष्टिपात कर रहे हैं।

. ग़ुस्सा आये तो क्या करें? – अब प्रश्न उठता है कि ग़ुस्सा आए तो हम क्या कर सकते हैं? यह कोई उलझने वाली बात नहीं है बल्कि समझने वाली बात है। जैसे-

1. ग़ुस्से की स्थिति का सामना अपने विवेक से करें।

2. एक कमरे से दूसरे कमरे में चले जाएं।

3. अपना मन किसी और काम में लगाएं जो आपको अच्छा लगता हो।

4. किसी से टेलीफ़ोन पर बात करने लगें जिससे आपका ध्यान बंटे।

5. सबसे सरल उपाय वैसे तो टेलीविज़न है जो आपका अवश्य मनोरंजन करेगा। अपनी पसंद का चैनल लगा लें।

. ग़ुस्से में सावधानियां – ग़ुस्से में हमें अपने विवेक का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आत्मीय रिश्तों व संबंधों की डोर चाहे कितना भी ग़ुस्सा आये कभी नहीं तोड़नी चाहिए। रिश्ते बहुत मुश्किल से बनते हैं। हिंसा की बजाय अहिंसा का सिद्धांत अपनाना ज़रूरी है। वरना किसी को मारपीट में शारीरिक नुक़सान उठाना पड़ सकता है ऐसा नुक़सान जो पश्चाताप से भी भर न पाये तो क्या आप अपने आप को माफ़ कर सकेंगे। ग़ुस्से में चीज़ें तोड़ना, आग लगाना, हथियार उठाना बड़ा ही घातक काम है इसकी जगह अपने अंदर की आग आप ग़ुस्से को सही दिशा देकर बुझा सकते हैं। एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जिससे आपको व दूसरों को कोई हानि न पहुंचे। ग़ुस्से का बीज ही न पनपने दें जो बड़ा वृक्ष झंझोड़ना पड़े।

 

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