-डॉ. इन्द्रा गुप्ता

केवल भारत में ही नहीं कमोवेश सभी देशों में बुढ़िया पुराण अस्तित्त्व में है। बहू-बेटियों को मर्यादा की सीमा में रहने अथवा स्वास्थ्य संतुलित रखने हेतु कुछ करने व न करने की सलाह घर की या आस-पड़ोस की बुढ़ियाएं देने को सदैव तत्पर रहती हैं। अब तो बूढ़े-बुढ़ियों की बातों का उपहास करने का फ़ैशन-सा चल गया है। उनकी सलाह को दक़ियानूसी मानकर अवहेलना की जाती है, उनको पहले जैसा महत्त्व नहीं दिया जाता। वास्तव में ‘बुढ़िया पुराण’ की सारी बातें हमेशा सही न निकलती हों, फिर भी उनको एकदम ग़लत भी नहीं कहा जा सकता। वास्तविकता यह है कि ‘बुढ़िया पुराण’ जानकार वृद्ध महिलाओं के अनुभवों का भण्डार है।

यहाँ हम गर्भवती महिलाओं के बारे में इस पुराण की कुछ नसीहतों के बारे में चर्चा करेंगे।

एक बुढ़िया सास ने अपनी बहू को ग्रहण देखने से मना किया, पर आधुनिका बहू ने इसे निरा अंधविश्वास मानकर ग्रहण देखा। बच्चा अंधा पैदा हुआ, जिसके मुँह पर अनेक काले धब्बे थे। इसी प्रकार एक सास ने बहू को चेताया कि गर्भावस्था में कमर में साड़ी बहुत कस कर न बाँधे। पर बहू कब मानने वाली। उसने सात महीने तक कस कर साड़ी बाँधी। उसकी जो लड़की पैदा हुई, उसकी नाक एक-दम बैठी हुई थी।

हम अकसर सुनते रहते हैं कि अमुक महिला के पशु की आकृति का या विकृत अंग वाला शिशु पैदा हुआ। ‘बुढ़िया पुराण’ कहता है कि गर्भवती को अपने शयनकक्ष अथवा जिस कमरे में उसका अधिकतर आना-जाना हो, उसमें बिलाव, उल्लू, गिद्ध, सियार आदि के चित्र या मुखौटे नहीं रखने चाहिये, न ही उनकी आवाज़ें सुननी चाहिये। एक सास ने बहू को अपने शयनकक्ष में शेर व अन्य जानवरों के मुखौटे लगाने से मना किया। क्योंकि उसका नवजात शिशु की शकल पर भी असर पड़ता है।

अच्छी संतान की अभिलाषी महिला को अपने कमरे में धार्मिक व सुरुचिपूर्ण चित्र लगाने चाहिये, जिनमें स्वस्थ बाल-गोपाल प्रदर्शित हों। उसे कामुक, उत्तेजक, जासूसी साहित्य के स्थान पर धार्मिक साहित्य पढ़ना-सुनना चाहिये। गर्भावस्था में उसकी मनोदशा का संतान पर प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है।

‘बुढ़िया पुराण’ गर्भवती महिलाओं को और भी कई निषेध सुझाता है। गर्भवती महिला को अधिक छींक नहीं आनी चाहिये, अन्यथा संभव है कि शिशु के केश ही ग़ायब हो जायें। गर्भवती को मसालों व तीखी गंध से भी बचना चाहिये। उसे मुर्दा देखने की भी मनाही है। ऐसा करने पर शिशु के विकृत अथवा मृत पैदा होने का भय है। गर्भवती महिला को अचानक नहीं पुकारना चाहिए कि वह हड़बड़ी में लड़खड़ा कर गिर जाये। उसे भारी वज़न भी नहीं उठाना चाहिये, इससे गर्भपात भी हो सकता है। गर्भवती महिला केे सिरहाने कोई धातु या चाकू जैसी चीज़ नहीं रखनी चाहिये, इससे भयानक सपने आ सकते हैं और उनका भावी शिशु पर दुष्प्रभाव का भय रहता है।                                                                                                                                                       

‘बुढ़िया पुराण’ केवल गर्भवती महिला को ही नसीहत नहीं देता, यह परिवार के अन्य सदस्यों को भी नेक सलाह देता है। इसका कहना है कि गर्भवती को हर प्रकार संतुष्ट व प्रसन्न रखने का प्रयास करना चाहिये। उनके खान-पान की इच्छा का दमन नहीं होना चाहिये, अन्यथा संतान के दब्बू और हीन भावना युक्त होने की आशंका रहती है। अकसर देखा गया है कि बहू के गर्भवती होने की जानकारी होने पर परिवारजनों का व्यवहार एकदम बदल जाता है और बहू भी इस परिर्वतन को देख कर चकित रह जाती है, सब इसका अधिक ध्यान रखना प्रारम्भ कर देते हैं।

बुढ़िया पुराण गर्भवती को मनचाही वस्तु को खाने की छूट देता है, यह पौष्टिक एवं लाभदायक आहार की भी सलाह देता है। गर्भवती को न तो अधिक श्रम करना चाहिये और न ही दिन भर निष्क्रिय खाट पर पड़ेे रहना चाहिये, अन्यथा सामान्य प्रसव भी कष्टदायक बन जाता है। ज़्यादा नाज़ुक बनने के कारण ऑपरेशन द्वारा प्रसव की संख्या बढ़ती जा रही है। यह तो निर्विवाद सच है कि गर्भवती की जैसी सामाजिक, शारीरिक व मानसिक स्थिति होगी, उसका उसकी आने वाली संतान पर निश्चित प्रभाव पड़ेगा।

‘बुढ़िया पुराण’ में अनेक उपयोगी सुझाव भरे पड़े हैं, यदि बहू उनका लाभ उठाना चाहती है तो उसे कुछ देर आधुनिकता का आवरण उतार कर वृद्धाओं के सम्मुख आदरपूर्वक प्रस्तुत होना पड़ेगा, ताकि उनके परामर्श का विवेकपूर्ण तरीक़े से लाभ उठा सकें।

अत: कभी-कभी ‘बुढ़िया पुराण’ भी सुनिये।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*