-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

धरती तीन तरफ़ से सागरों के पानी से घिरी है फिर भी धरती पर पानी का अभाव है। प्राकृतिक तौर पर हमें जल मानसून से मिलता है जिससे हमारे जल स्त्रोत भर जाते हैं और धरती के नीचे पानी जमा हो जाता है जिससे कुएं और वाटर सप्लाई के नल हमें जल देते हैं। सर्दी के मौसम में पर्वतों पर बर्फ़ जम जाती है और गर्मियों के मौसम में बर्फ़ पिघल कर पानी के रूप में हमें नदियों की जल धारायें मिलती हैं। नदियों-नालों और झरनों का पानी हम कृषि के लिए उपयोग में लाते हैं। हम कुछ पानी जलाशयों जैसे तालाबों, झीलों के रूप में भी प्राप्त करते हैं, वो हमारी दिनचर्या के काम आता है।

 अब इतने साधन होते हुए भी हम पानी के लिए तरस रहे हैं, प्यास बुझाने को बिलख रहे हैं तो इसके पीछे मानव की अपनी नादानियां हैं, कुछ प्रशासन की गल्तियां हैं जिसको नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। मनुष्य ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है। वृक्षों की अन्धाधुंध कटाई करके वर्षा के मानसून में रुकावट पैदा कर दी है। मानसून बहुत कम वर्षा देती है जिससे धरती की प्यास ही नहीं बुझती, खेतीबाड़ी के लिए ही समर्थ नहीं होती तो लोगों की प्यास बुझाने को पानी कहां मिलेगा।

वृक्षों के कटाव के कारण एक तो हम मीठे फल खाने से वंचित हो गये हैं दूसरे पशु-पक्षी वृक्षों की छाया का आनन्द नहीं ले सकते और तीसरे सूर्य की तेज़ धूप जो वृक्ष रोकते थे वह नुक़सान कभी पूरा नहीं होगा, पृथ्वी का तामक्रम 48डिगरी सेंटीग्रेट तक पहुंच गया है, जिससे सभी जीवों पर गहरा असर पड़ा है और जल के सारे संसाधन सूख गये हैं। धरती के अन्दर का पानी बहुत निम्न स्तर पर चला गया है। मनुष्य की वनों से छेड़छाड़ बहुत महंगी पड़ी है। वनों का जीवन छीनने से हमारा अपना जीवन भी संकटमयी हो गया है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पहले गांव-गांव में तालाब, छप्पड़, कुएं, बावड़ियां विद्यमान थी।

कृषि योग्य भूमि बनाने के चक्कर में हमने तालाबों को बुल्डोज़र की सहायता से समतल धरातल बनाकर तालाबों को ख़त्म कर दिया है। इन तालाबों में हम नहाते, कपड़े धोते और पशुओं को पानी पिलाते थे। जो बचे खुुचे तालाब हैं वे कूड़े-कर्कट के ढेर बन चुके हैं अब उनमें पानी की जगह गन्दगी के अम्बार हैं जिनसे दुर्गन्ध आती है और मक्खियां मच्छर रोगों को बढ़ावा देते हैं।

 हमने नदियों को प्रदूषित कर दिया है। नदियों के पवित्र जल को शहर के गन्दे-नाले का पानी डालकर कूड़ा-कर्कट फेंक कर इतना गन्दा कर दिया है कि उनमें कुल्ला करने और स्नान करने को जी नहीं चाहता। गंगा को ही देखें तो वह इतनी दूषित हो चुकी है। फिर लोग उसमें अस्थियां प्रवाह करते हैं। हवन सामग्री फेंक कर और दूषित बना रहे हैं। किसी नदी का पानी पीने लायक़ नहीं रह गया। पशुओं को गोबर सने उसमें नहाने के लिये ले जाना। गन्दे कपड़ों को धोना। अपनी मोटर गाड़ियों को धोना सभी नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा हैै। गन्दा पानी पीने को लोग मजबूर हैं और बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। बरसात का पानी न लोग इक्ट्ठा करते हैं और न उनका सदुपयोग करते हैं। यदि वर्षा का पानी बचा कर रखा जाए और उसे प्रयोग में लाया जाए तो पानी व्यर्थ नहीं बहेगा।

कुछ वोटों की ख़ातिर सरकार की कुछ स्कीमें ऐसी हैं जो लोगों को पानी व्यर्थ बहाने की खुली छूट देती है, जैसे किसानों को मुफ़्त बिजली, पानी की सहूलत देने से किसान अपनी बम्बियों और वाटर कनेेक्शन से ज़रूरत से ज़्यादा पानी बहाते हैं। और गन्ने आदि की फ़सल के लिये जितने पानी की आवश्यकता होती है उससे अधिक पानी का प्रयोग करते हैं।

अनुसूचित जाति को मुफ़्त पानी की सुविधा क्या मिली कि जो लोग समर्थ भी हैं उन्होंने भी किसी तरह से 5 मरले प्लाट का ब्योरा देकर पानी का मुफ़्त कनेेक्शन लेकर, दिन रात अपने नल खुले छोड़ रखे हैं। उनको पानी का बिल जो नहीं देना पड़ता। ज़रा पानी की क़ीमत चुकानी पड़े तो पता लगे। मुफ़्त की शराब तो काज़ी को भी हलाल होती है। पानी का बेतहाशा प्रयोग सूखा ग्रस्त इलाके को ख़स्ता हाल बनाता है।

एक तरफ़ तो हम डिजिटल इंडिया का सपना देख रहे हैं, न्यू इंडिया की कल्पना कर रहे हैं। मेक इन इंडिया बना रहे हैं, चांद पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ जनता बूंद-बूंद पानी को तरस रही है, प्यास से मर रही है। क्या भारत सही मायने में विकास कर पाएगा? मध्यप्रदेश, राजस्थान का हाल देखा लोग चार-पांच मील से पानी की एक बाल्टी के लिए झख मार रहे हैं। चेन्नई के लोगों का बुरा हाल है। कई-कई दिन नहाने को पानी नहीं मिल रहा भोजन के लिये गन्दे पानी का इस्तेमाल करना पड़ रहा है सूखे का कहर इतना है। नल, कुएं सभी सूख गये हैं। पानी की रेलगाड़ी इतनी जनता को कहां पानी मुहैया करवा सकती है।

हरियाणा का हाल तो सारे देश से बदतर है, यहां गन्दा पानी पीने से लोग अन्धे, काने हो रहे हैं। लोग कह रहे हैं एक गिलास स्वच्छ पानी दो नहीं तो इच्छा मृत्यु की इजाज़त दो। क्या यह प्रशासन के लिए डूब मरने की बात नहीं है कि वह लोगों को शुद्ध पानी नहीं दे सकता।

पंजाब जो पांच पानियों का प्रान्त है। यहां सतलुज, ब्यास और रावी नदी बहती हैं। वह भी सूखे की मार झेल रहा है। पानी के लिये त्राहि-त्राहि मचा रहा है। कई जगह पर पानी के लिये खुदाई हुई तो नीचे से केवल लावा निकला है। यह वास्तविकता यदि पंजाब की है तो मरुस्थल प्रदेशों की क्या दुर्दशा होगी अन्दाज़ा आप खुद लगा सकते हैं। अपने लिये पानी नहीं और पानी हम पाकिस्तान को दे रहे हैं। रावी नदी का पानी पाकिस्तान को क्यूं चला जाता है। इसे रोकने की व्यवस्था क्यूं नहीं की जाती। जेहलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को क्यूं दिया जाता है। जबकि अपने हरियाणा और पंजाब में पानी के लिए झगड़ा हो जाता है। पंजाब कहता है कि वह अपनी नदियों का पानी हरियाणा को नहीं देगा और झगड़ा अदालत तक पहुंच जाता है।

बाज़ार से कोल्ड ड्रिंक की बोतल चाहे पन्द्रह रुपये में मिल जाए परन्तु पानी की बोतल बीस-पच्चीस रुपये की मिलती है। सरकार ने यदि पानी की समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो पानी के लिये हाहाकार ही नहीं मचेगा आन्दोलन होंगे, पानी के लिए रक्तपात होगा। यह भी सम्भव है, विश्व में तीसरा युद्ध पानी के लिये ही होगा। यदि हम रॉकेट बना सकते हैं, मैट्रो चला सकते हैं, तो पानी की समस्या हल क्यूं नहीं कर सकते। नदियों और जलाशयों में शुद्धता क्यूं नहीं ला सकते।

सागर के पानी को किसी रासायनिक विधि द्वारा पीने योग्य क्यूं नहीं बनाया जा सकता। दिल्ली में यमुना के गन्दे पानी को भी रसायनिक विधि द्वारा पीने योग्य बनाया जाए। समुद्र के पानी में पाईप लाइनें बिछाकर मुम्बई-चेन्नई जैसे शहरों में पानी पहुंचाया जाए।

गांवों, शहरों में पानी वेस्टेज को रोका जाए। पानी को ज़रूरत से ज़्यादा बहाने पर जुर्माना लगाया जाए। भारत में हर घर में शौचालय बनाने की योजना का क्या लाभ जब शौचालयों में पानी नहीं मिलेगा। इस विषय में हर नागरिक को गहनता से विचार करना होगा और बूंद-बूंद पानी बचाना होगा। जल है तो कल है नहीं तो पानी के बिना संसार का अस्तित्त्व मिट जाएगा।

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