बच्चों की स्थिति आज जैसी है, उसमें थोड़ा-बहुत हाथ भले ही संस्कारों का हो लेकिन अधिकांशतः उसके चरित्र पर माता-पिता, परिवार और समाज द्वारा डाला गया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव प्रमुख होता है। बच्चा हमेशा वही सीखता है जो उसके घर या परिवार अथवा उसके आस-पड़ोस में घटित होता है। परिवार बच्चे का प्रथम सामाजिक वातावरण होता है। परिवार शांतिप्रिय और सभी को उचित सम्मान देने वाला होना चाहिए। केवल परिवार ही अनुकूल वातावरण पैदा करके बच्चे को यथार्थ रूप में शिक्षित कर सकता है।

परिवार को चाहिए कि बच्चे का संरक्षण तो करें, पर अति न करें। उसे मेहनत व कार्य स्वयं करने दें। वह कोई वस्तु निकालना या उठाना चाहता है तो उसे तरीक़ा बतायें कि कैसे निकाले? किंतु निकालने स्वयं दें। इससे बच्चे का ज्ञान भी बढ़ेगा और स्वयं कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। बच्चे हर चीज़ देखकर और सुनकर सीखते हैं। उन्हें बड़ों से हर वक़्त दूसरों की चीज़ बिना इजाज़त के न उठाने, हमेशा सच बोलने, बड़ों का आदर करना के उपदेश हर समय मिलते रहते हैं। पर जब उन्हें घर या आस-पास चोरी या झूठ का माहौल मिलता है तो इस विरोधाभास के चलते वे इन आदर्शों से विमुख हो जाते हैं।

इस स्थिति से बचने के लिए आवश्यक है कि माता-पिता बच्चों के सामने झूठ न बोलें। साथ ही बच्चे शुरू-शुरू में छोटी-छोटी बातों को लेकर झूठ बोलने का प्रयास करें तो उसे मज़ाक में न लें। उनके इस छोटे से झूठ को गौरवान्वित न कर उन्हें इसके प्रति आगाह करायें। कई बार बच्चों को ग़लती से रोकते समय मां-बाप चिड़ जाते हैं और उन्हें डांटने या पीटने लगते हैं। लेकिन अगर देखा जाए तो यह समस्या का वास्तविक हल नहीं है। इन सभी बुरी आदतों को सुधारने के लिए हमें बहुत छोटे से बच्चे को ही प्रशिक्षित करना चाहिए। प्रायः माता-पिता सोचते हैं कि अभी बच्चा बहुत छोटा है, अभी से उसे क्या सिखाएं? लेकिन ऐसी बातें करके हम बच्चे के मन में यही ग़लत संदेश पहुंचाते हैं कि वह जो भी कर रहा है, सही कर रहा है। हमें ऐसी ग़लती से बचना चाहिए।

परिवार के सदस्यों को चाहिए कि समय-समय पर बच्चों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते रहें। बच्चों को व्यवहार कुशल बनाने के लिए उनमें उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना बहुत ज़रूरी है। प्रत्येक बालक में जन्म से ही प्रतिभा होती है। बच्चों की उस स्थिति को देखते हुए ही उसे आगे बढ़ाना चाहिए। बच्चों की इच्छाओं को दबाने का प्रयास कदापि नहीं करना चाहिए।

बच्चों को बड़ों का आदर करना चाहिए। उन्हें यह बात बड़ों द्वारा ही सिखाई जाए। अतिथियों के आने पर ‘प्रणाम’ आदि शब्द सिखाएं ताकि आने वालों को भी खुशी हो और वे बच्चों की तारीफ़ करें, जिससे उनका उत्साह बढ़ेगा। बच्चों को पारिवारिक अनुशासन में रखें। उनकी हर ज़िद्द को पूरा न करें। उन्हें प्यार से समझायें। परिवार को बच्चे की प्रथम पाठशाला माना गया है। अतः इन सब बातों को देखते हुए परिवार का यह कर्त्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा, उनके प्रति ऐसा व्यवहार करें कि उनका भविष्य सफल और सुखद बन सके।     

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