-डॉ.सन्त कुमार टण्‍डन ‘ रसिक’

प्रेम का एक नशा होता है जो दीवानगी पैदा कर देता है। तभी कहते हैं लव इज़ ब्लाइंड। प्रेम की कोई जाति, धर्म, उम्र नहीं होती। यह कोकीन या किसी भी मादक द्रव या पदार्थ की तरह चढ़ता है। यह बात मनोवैज्ञानिक तो मानते ही थे, अब वैज्ञानिक भी मानते हैं।

ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक ताज़ा शोध किया है प्रेम पर। उसके परिणाम तो यही कहते हैं। यह जीवन में सदैव नशे की तरह एक उत्प्रेरक का काम करता है। प्रेम में पड़ा आदमी उसी तरह छटपटाता है जैसे नशे में डूबा व्यक्‍ति।

माउडस्ले हॉस्पिटल, लंदन के नेशनल एडिक्शन सेंटर के प्रमुख डॉ.जॉन मार्सडेन का कथन है कि जब आदमी नशे के प्रभाव में होता है, उस समय उसके मस्तिष्क में डोपामाइन नामक पदार्थ निकलता है जो नशीला होता है।

शोधकर्त्‍ताओं का कथन है कि जब आदमी प्रेम के वशीभूत होता है तो वह नशा सेवन किए हुए व्यक्ति की तरह हो जाता है। वह अपने को बुलंदियों पर महसूस करता है। उसे लगता है कि वह उड़ रहा है हवा में।

जी हां, प्रेमी को प्रेम का नशा होता है। वह प्रेम का एडिक्शन रखता है। शोधकर्त्ताओं का मानना है कि आकर्षण और कामुकता दोनों ही वास्तव में एक नशीली दवा की भांति हैं। व्‍यक्‍ति जितना ध्यान देता है। इसकी ओर वह उतना ही खिंचा चला आता है।

नशीली दवाओं का असर कुछ ही समय के लिए होता है। कहिए, कुछ घंटों के लिए। उसी तरह प्रेम का नशा भी कुछ समय के लिए होता है। यह बार-बार या लम्बे समय के लिए होता है तब जब कि आकर्षण या कामुकता पैदा करने वाला व्यक्‍ति बार-बार सामने पड़े। शोधकर्त्ताओं ब्रिटिश चिकित्सकों ने पाया कि प्रथम बार प्रेम का शिकार होने पर इसका नशा उसे 7 साल तक रहता है। लेकिन सच तो यह है कि उसकी याद कभी-कभी जीवन भर रहती है। मानते हैं न आप?

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