aap aapke bache aur kush satye heading

-प्रमोद कुमार टण्डन

अधिकतर अभिभावकों को एक शिकायत रहती है कि “बच्चों की शिक्षा पर मैं इतना ध्यान देता हूं, इतना पैसा व्यय करता हूं, उनकी हर आवश्यकता पूरी करता हूं, किसी भी चीज़ की कमी नहीं होने देता, फिर भी मेरा बच्चा पढ़ने में कमज़ोर है। मैं क्या करूं कि वह अच्छा करने लगे।” ये ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनका हल तो है परन्तु इसके लिए अभिभावक या तो जागरूक नहीं होते और यदि होते भी हैं तो बच्चे के लिए उनका अतार्किक स्नेह हमेशा आड़े आ जाता है। इस क्षेत्र में सलाह के लिए कई अभिभावक मेरे पास आते हैं परन्तु इस समस्या का निदान जानने के बाद वे असहाय से दिखाई देते हैं। उनका कहना होता है, “ठीक है, हम मानते हैं कि हमने शुरू से ही ग़लती की है परन्तु अब इस समस्या का क्या हल हो सकता है?” हल तो हर समस्या का निकल सकता है। परंतु पहले आप स्वयं आश्वस्त हो लें कि आप हल के क्रियान्वयन के लिये कितने गंभीर हैं।

बच्चों के बारे में कुछ ऐसे सत्य हैं जिन्हें जान कर आपको आश्चर्य होगा जैसे कि-

. बुद्धि के मामले में प्रकृति लड़के या लड़की में भेदभाव नहीं करती।

कुछ अपवादों को छोड़ कर, अधिकतर बच्चों की बुद्धि जन्म से औसत स्तर की होती है। समय के साथ यदि बच्चों को उचित वातावरण एवं मां-बाप का कुशल निर्देशन मिलता है तो यही बच्चे अपनी बुद्धि का विकास स्वयं कर लेते हैं। यहां यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि बच्चे की बुद्धि के विकास में आप अपने विवेक का प्रयोग कर उसकी सहायता तो कर सकते हैं परंतु बुद्धि को विकसित करना या न करना पूर्ण रूप से बच्चे की इच्छा पर ही निर्भर करता है। अतः आपका काम इस इच्छा को निरंतर जीवित बनाए रखना है। परंतु ध्यान रखिए कि इस मामले में आपका अत्यधिक उत्साह ख़तरनाक हो सकता है।

. बच्चों में एक सीमा तक प्रतिस्पर्धा पैदा करना उनकी उन्नति में सहायक होता है। परंतु सीमा से अधिक उकसाना बहुत ख़तरनाक होता है क्योंकि इस दशा में मिली एक भी असफलता उनके मनोबल को तोड़ देती है तथा वे हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।

किसी भी बच्चे को किसी अन्य बच्चे का उदाहरण देकर कभी भी प्रताड़ित न करें तथा कभी भी यह न कहें कि “तुम्हारी/मेरी तो क़िस्मत ही ख़राब है।” मेरे विचार से बच्चे के जीवन से खिलवाड़ करने का शायद इससे ख़तरनाक कोई भी कारण नहीं हो सकता।

. आपने देखा होगा कि जिन बच्चों के जीवन में वस्तुओं का अभाव रहता है वे बहुधा पढ़ाई-लिखाई में अच्छे निकलते हैं। परंतु इससे किसी भी हालत में यह सिद्ध नहीं होता कि बच्चों का रुझान पढ़ाई की तरफ़ मोड़ने के लिए हम एक जल्लाद की भूमिका निभाएं। अपितु इस उदाहरण से हम कुछ सीख अवश्य सकते हैं।

यदि आप वास्तव में चाहते हैं कि आपका बच्चा अध्ययन में मेधावी निकले तो यथासंभव निम्नलिखित सुनहरे नियमों का पालन करेंः-

. बच्चे को कभी भी उग्र होने के लिए प्रेरित न करें।

. पढ़ाई में स्वस्थ स्पर्धा को एक उचित सीमा तक बढ़ावा दें।

. बच्चे को किसी भी हालत में व्यक्तिगत ट्यूशन न लेने दें। स्वाध्याय ही सफलता का गुरूमंत्र है। प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाने वाले अधिकतर बच्चे स्वाध्यायी ही होते हैं।

aap aapke bache aur kush satye image. स्वयं पर नियंत्रण रखें और घर में ‘केबल कनेक्शन’ हटवा दें।

. बच्चों को कक्षा 12 तक किसी भी हालत में मोबाइल फ़ोन तथा बाइक न दें।

. बच्चे के किसी भी अच्छे काम के लिए उसकी उचित प्रशंसा अवश्य करें। परंतु अत्यधिक प्रशंसा से बचें।

. बच्चे की किसी भी ग़लती को नज़र अंदाज़ न करें। इसका यह अर्थ नहीं है कि उसको ग़लती के लिए प्रताड़ित करें। परंतु उसको यह एहसास अवश्य कराएं कि उसकी ग़लती आपकी नज़र में है।

. मां-बाप दोनों ही बच्चे को कुछ समय नियमित रूप से अवश्य दें।

. बच्चे की अध्ययन सामग्री की आवश्यकता पूर्ति बहुत सोच समझ कर ही करें। पहले यह अनुमान अवश्य लगा लें कि जिन चीज़ों की मांग बच्चे ने की है, क्या उतने की आवश्यकता है? यह कभी न करें कि यदि बच्चे को चार कॉपियों की आवश्यकता है तो आप 10 कॉपियां केवल इसलिए लाकर रख दें कि बार-बार दौड़ना नहीं पड़ेगा। या इसलिए कि कहीं बच्चा कॉपियों के लिए न तरसे।

. बच्चे से यह कभी न कहें कि मैं तुम्हारी पढ़ाई पर इतना ख़र्च करता हूं फिर भी तुम्हारे अंक इतने ख़राब हैं। मैंने कोई कमी की हो तो बताओ।

. यह सर्वविदित है कि श्रद्धा एवं आदर ऐसी भावनाएं हैं जिनको आप अर्जित तो कर सकते हैं परंतु जबरन मांग कर नहीं पा सकते। आपकी यह चाहत चाहे अपने बच्चे से ही क्यों न हो। अतः अपने बच्चे के सामने कभी यह न कहें कि- आजकल के बच्चे अपने मां-बाप को ग़लत ही मानते हैं। एक हम लोग थे कि अपने मां-बाप के सामने सिर उठाने की भी हिम्मत नहीं कर पाते थे। इत्यादि…

. इन सभी नियमों को केवल एक नियम में भी बांध सकते हैं- “बच्चे की पढ़ाई में आपकी संपन्नता की नुमाइश नहीं होनी चाहिए।”

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