-ज्योति खरे
कहा जाता है कि किशोर मन कच्ची मिट्टी के समान होता है, इसे जिस रूप में ढालना चाहें, ढाल सकते हैं। हाईस्कूल से लेकर इंटर तक के विद्यार्थियों की अवस्था यही होती है। ढेर सारी समस्याएं इस अवस्था में पैदा होती हैं और अगर अभिभावक तथा शिक्षक विद्यार्थियों के साथ मिलकर इन समस्याओं को दूर नहीं कर लेते तो छात्र की पूरी ज़िंदगी तबाह हो जाती है।
स्कूल साइकोलोजिस्ट के अनुसार ये अधिकांश समस्याएं अभिभावकों द्वारा ही पैदा की जाती हैं, अगर अभिभावक थोड़ा संयम बरतें तो अधिकांश समस्याएं पैदा ही न हों। हीनभावना अभिभावकों, शिक्षकों द्वारा ही पैदा की जाती हैं।
परीक्षा में थोड़े कम नंबर आ जायें तो तुरंत कह दिया जाता है कि तुम बुद्धू हो, तुम कुछ नहीं कर सकती। अब यही छोटी-सी बात किशोर मन में घर बना लेती है तथा उस छात्रा को यह हमेशा सोचने पर मजबूर कर देती है कि वास्तव में वह बेवकूफ़ है तथा कुछ नहीं कर सकती। इस समस्या से ग्रसित लड़कियां हर समय शांत रहती हैं, सोचती रहती हैं तथा अगर जल्द इसका समाधान नहीं होता तो सचमुच ‘बेवकूफ़’ हो जाती हैं। परीक्षा में कम नम्बर आने के पीछे सिर्फ़ मंद बुद्धि ही एक कारण नहीं है, इसके पीछे पढ़ाई ढंग से न हो पाना, तबीयत ख़राब होना तथा अन्य कारण भी हो सकते हैं। इस कारण अभिभावक को इस मामले में बेहद सावधानी के साथ चलना चाहिए।
लड़कियों के साथ एक और समस्या है कि पढ़ने का समय न मिलना। घर में अगर लड़का हो तो लड़के को जितनी सुविधा दी जाती है, उतनी लड़की को नहीं मिलती। जिस लड़की के भाई नहीं हैं, उसको भी बार-बार कोसा जाता है। साइकोलोजिस्ट को एक लड़की बार-बार यह कहती मिलती है कि ‘भाई नहीं है तो हम क्या करें ?’
एक सबसे ख़तरनाक समस्या इन लड़कियों के सामने आती है वह है खुद को असुरक्षित महसूस करना। कई बार ऐसा होता है कि घर में आने वाले कोई महाशय उस पर कुदृष्टि रखते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह बात वह अपने माता-पिता से कह नहीं पाती और अगर कह भी देती है तो वह आदमी इनके माता-पिता का इतना प्यारा होता है कि उल्टे इनको ही डांट पड़ती है। इस मामले में लड़कियों के मन में बदले की भावना जागती है।
लड़कियों को यह भी शिकायत होती है कि न तो इनको बड़ा समझा जाता है और न छोटा। कई मामलों में मां-बाप यह कह कर इनकी बात टाल देते हैं कि तुम अभी छोटी हो या तुम अभी इतने बड़े नहीं हो गये हो। कई बार कोई क़दम उठाने पर इन्हें यह कहा जाता है कि तुम इतने बड़े हो गये हो, फिर भी ऐसा करते हो? इन लड़कियों को शिकायत रहती है कि आख़िर हम हैं क्या छोटे या बड़े ?
इन लड़कियों की एक और शिकायत होती है कि इनको पढ़ने का समय नहीं दिया जाता या इनको भाई के समान सुविधा नहीं दी जाती। मम्मी घर में न हों तो घर के सारे काम-काज की ज़िम्मेदारी इनकी तो होती ही है और अगर हों तब भी मम्मी के कामों में हाथ बंटाना पड़ता है।
जो परिवार कुछ ज़्यादा आधुनिक हैं उनमें माता-पिता को क्लब तथा मीटिंग से समय ही नहीं मिलता कि वे अपने बच्चे पर पूरा ध्यान दें। ऐसे परिवारों की लड़कियों की शिकायत रहती है कि कभी उनके दु:ख-दर्द को पूछा ही नहीं जाता तथा उन्हें बाहर घूमने का मौक़ा नहीं मिलता। माता-पिता कभी घुमाने ले जाते ही नहीं। घर में इतना प्रतिबन्ध होता है कि खुद कहीं घूम भी नहीं सकते। ऐसी ही कुछ लड़कियां स्कूलों में खुद ही ग्रुप बनाकर घूम आती हैं। साइकोलोजिस्ट का कहना था कि कुछ परिवार तो घूमने का ख़र्च वहन नहीं कर सकते लेकिन जो परिवार सक्षम हैं, उनको अपने बच्चों को घुमाना चाहिए। इन्होंने अपने अनुभव से बताया कि कई बार ऐसा देखा गया है कि दसवीं की छात्राएं भी स्थानीय पर्यटन स्थलों को भी नहीं देख पाती हैं।
साइकोलोजिस्ट का कहना है कि ब्वायफ्रेंड रखने वाली लड़कियों में उन लड़कियों की संख्या अधिक होती है जिनके माता-पिता बहुत अधिक सामाजिक होते हैं या क्लब आदि में जाते हैं। जबकि मध्यम दर्जे की लड़कियां बहुत कम ही ऐसा करती हैं।
इस उम्र की लड़कियां शौक़ीन तो होती ही हैं। परिधान आदि भी अच्छे चाहती हैं। इनकी यह भी शिकायत रहती है कि इनके माता-पिता इनकी इच्छानुसार ड्रेस नहीं सिलवाते। आधुनिक परिवार की लड़कियां तो अपनी इच्छा पूरी कर लेती हैं लेकिन मध्यम दर्जे की लड़की ऐसा नहीं कर पाती। मेंहदी, चूड़ी आदि का शौक़ भी इस उम्र तक हो ही जाता है।
कुछ ऐसे भी मामले मिले हैं जिनमें अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु ये लड़कियां चोरी भी करती हैं। इसके पीछे इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ही काम करती है। जिन परिवारों की आमदनी कम होती है लेकिन दिखावा ज़्यादा किया जाता है, वैसे परिवार की लड़कियां अपनी दूसरी सहेलियों की तरह दिखने के लिए ग़लत ढंग से पैसा प्राप्त करना चाहती हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि 12वीं कक्षा की लड़कियां आत्मनिर्भर बनने पर ज़्यादा ध्यान देती हैं। 12वीं के बाद ही कौन-सा ऐसा कोर्स किया जाये, जिससे वह नौकरी करने लगे। ऐसे सवाल वे अपने शिक्षकों, अभिभावकों से पूछती रहती हैं। इसके पीछे एक कारण यह हो सकता है कि अभिभावक की तरफ़ से आगे की पढ़ाई बंद हो जाने का डर होता है।
ऐसी समस्याओं से घिरी इन लड़कियों की सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वे अपनी बात किससे कहें? इनका दु:ख तो अभिभावक ही दूर कर सकते हैं। वे कम ही सुनते हैं।