-सोनू आर्य

बेटियां आजकल यौन-उत्पीड़न के ख़तरे तले बड़ी होती हैं। ये ख़तरे अक्सर घर परिवार या जान-पहचान वालों की तरफ़ से आते हैं। माएं अपनी बेटियों को इनसे आगाह करके रखें, तो बहुत सारी समस्याएं तो पैदा नहीं होंगी। अपने और उनके बीच विश्वास का ऐसा पुल बांधे कि वह अपना हर राज़ शेयर कर पाएं। उसे किसी की बात या स्पर्श में कोई अस्वाभाविकता लगे तो वह तुरंत आपको इसके बारे में बताए। उसके महज़ शक को भी सामान्य मत समझें।

मां-बेटी का रिश्ता इतना अलग होता है कि उसकी व्याख्या करना मुश्किल है। कभी यह महुए से भी मीठा तो कभी थोड़ा नमक-सा नमकीन मगर फिर भी इस रिश्ते में हमेशा ताज़गी रहती है।

दूूसरी तरफ़ बड़ी होती लड़कियों के शारीरिक बदलाव भी उन्हें बचपना करने से नहीं रोक पाते। मां अपनी बेटी की मदद एक दोस्त बनकर अच्छी तरह कर सकती है। बच्चे के साथ बोलचाल, उसे ज़िम्मेदारी का एहसास करवाना या सौंपना और उस पर यक़ीन करना, ये तीन बातें आपको अपने बच्चे के क़रीब ला सकती हैं।

बड़ी होती बच्ची का मन सवालों से भरा रहता है। जवाब कोई देता नहीं, उलटे डांट पड़ती रहती है। ऐसे में बच्चा अपनी मम्मी-पापा से दूर और दोस्तों से क़रीब महसूस करता है। इसके समाधान के लिए, अपने बच्चे की भी सुनिए, उसे भी अपनी बात रखने दीजिए।

मां-बच्चे का रिश्ता अपने आप में बहुत अलग है। इस रिश्ते का आनंद तभी लिया जा सकता है, जब आप बच्चे की उम्र में पहुंचकर उसकी भावनाओं को समझेंगे। आप केवल मां बनकर या डांट-डपट कर बच्चे को आज्ञाकारी नहीं बना सकती। दोस्त बनना ज़रूरी है। मां, बेटी को सहेली बनाकर पालेगी तो बच्ची में अच्छे संस्कार पैदा होंगे और उसकी ज़िंदगी में भटकाव नहीं होगा। 

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