-तेजप्रीत कंग

3-6 वर्ष की आयु में बच्चे में कई परिवर्तन आते हैं और वे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप में विकसित होते हैं। प्रत्येक बच्चे में यह परिवर्तन अलग-अलग रफ़्तार से आते हैं- किसी में जल्दी तथा किसी में थोड़ी देर से। इसलिये यह जानना अतिआवश्यक है कि किस आयु के बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हैं और वे स्कूल में क़ामयाब हो सकते हैं या नहीं। स्कूल में या पढ़ाई में बच्चे की असफलता के कई कारण हो सकते हैं- जैसेः-

1. सुनने सम्बन्धी समस्या

2. उत्साह की कमी

3. भावनात्मक समस्याएं

4. दिमाग़ी पिछड़ापन

कुछ स्कूलों के बच्चे जिन को उपरोक्त समस्याओं में से कोई भी समस्या नहीं होती है फिर भी वह स्कूल में कई कठिनाइयों का सामना करते हैं। इन बच्चों की बुद्धि साधारण, लगभग साधारण या साधारण से अधिक होती है। अपनी योग्यता का पूरा फ़ायदा उठाने की अयोग्यता को ही हम पढ़ाई का पिछड़ापन या अपूर्णता कहते हैं।

बहुत सारे हालातों में इस पिछड़ेपन के कारण का पता नहीं होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पढ़ाई में पिछड़े हुए बच्चों के दिमाग़ में जानकारी को संभालने के लिए मुश्किल होती है जो कि पढ़ने और लिखने के तरीक़ों में रुकावट पैदा करती है।

पढ़ाई में अपूर्णता प्रायः बच्चे को अपने बारे में अपूर्ण सोचने के लिए बाध्य करती है। इसलिये मां-बाप को इस बारे में समझने की आवश्यकता है और बच्चों को प्यार तथा सहारा देना ज़रूरी है।

इन बच्चों की समस्या एक टेलीविज़न में (तकनीकी ख़राबी के कारण) बिगड़ी हुई तसवीर जैसी होती है। जो कि न तो टी.वी. स्टेशन के कैमरे में किसी ख़राबी के कारण होती है, और न ही आपका टी.वी. सैट ख़राब होता है। परन्तु फिर भी तसवीर साफ़ नहीं आती है। यह टी.वी. स्टेशन के किसी आन्तरिक कारण से ही साफ़ और स्पष्ट तसवीर प्रकट होने में रुकावट डाल रहे होते हैं।

हो सकता है कि पढ़ाई में पिछड़े हुये बच्चे सही ढंग से जानकारी प्राप्त करते हों। उनकी सुनने तथा देखने की शक्तियां ठीक हों। समस्या दिमाग़ में तब पैदा होती है जब आंख और कान अपना कार्य कर चुके होते हैं। उदाहरण के लिएः- पढ़ने सम्बन्धी मुश्किलों को आंखों की ख़राबी पर थोप देना बहुत आसान है। परन्तु नज़र सम्बन्धी तकलीफ़ें पढ़ाई में पिछड़ापन पैदा नहीं करती। पढ़ाई में अपूर्ण बच्चों की आंखों सम्बन्धी तकलीफ़ें आम बच्चों से कोई ज़्यादा नहीं होती।

दिमाग़ के कार्य में यह समस्या साधारण पढ़ने के ढंग में रुकावट डालती है। इस लिए इस तरह के हालातों में पढ़ाई के ख़ास तरीक़ों की आवश्यकता होती है। पढ़ाई में पिछड़ापन कोई साधारण समस्या नहीं है जो बच्चों के बड़े होने पर अपने आप ही समाप्त हो जायेगी, इस समस्या की शीघ्र पहचान करके इस का समाधान करवाना ज़रूरी है। अगर इस तरह हो जाए तो पढ़ाई में पिछड़े हुए बच्चों को अपनी योग्यता के आधार पर योग्य स्थान पर पहुंचने की पूरी उम्मीद होती है। यदि इस तरह न हो तो यह बच्चे में भावनात्मक समस्या का कारण बनती है और उस में उदासी तथा अकेलापन घर कर जाते हैं। यह दो कारण स्कूल में असफलता के साथ जुड़े हुये होते हैं।

पढ़ाई में पिछड़ापन कोई असाधारण बात नहीं है। यह लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है। 10 में से 1 स्कूली बच्चे को विशेष पढ़ाई की आवश्यकता हो सकती है व इनमें से आधे बच्चे पढ़ाई में पिछड़ेपन की किसी न किसी समस्या का शिकार हो सकते हैं।

पढ़ाई में पिछड़ेपन के क्या कारण हो सकते हैं?

कई बच्चों का जन्म एेसे परिवारों में होता है जिनमें पढ़ाई में पिछड़ेपन का इतिहास पाया जाता है। कुछ बच्चों में इनकी उपस्थिति का ख़तरा अधिक होता है, जैसेः- वे बच्चे जिनका जन्म के समय ही भार कम था, जन्म से पहले या बाद में मानसिक बोझ, कैंसर या ब्लॅॅड कैंसर का इलाज, दिमाग़ का कोई रोग, सिर की कठोर चोटें इत्यादि।

इस तरह के बच्चे कई तरह की मुश्किलों का सामना करते हैं। जिनमें से आम हैं कि वे विभिन्न निशानों या चिन्हों को ठीक ढंग से पहचान नहीं सकते। वे जो देखते या सुनते हैं वह उनको समझ में नहीं आता है। कई बच्चों को यह पता नहीं लगता कि किस तरह अलग-अलग अक्षरों को जोड़ कर शब्द बनता है, किस तरह शब्दों से वाक्य बनता है और किस तरह वाक्यों द्वारा ख़्याल बताये जाते हैं। उनको रचनात्मक रचना बिल्कुल समझ नहीं आती है। विशेषज्ञों ने इसको समझ शक्ति की अयोग्यता कहा है। इस तरह के बच्चों को ज़ुुबानी हिदायत समझने में, ब्लैक-बोर्ड से नक़ल मारने में और वह याद करने में जो अध्यापकों या माता-पिता ने कहा था, मुश्किल आती है। इन बच्चों को घर और स्कूल में दिये हुये कार्य को संगठित करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।

पढ़ाई में पिछड़ेपन के शिकार बच्चों की पहचान करना आसान नहीं है। इस तरह की समस्या एक दिन या सप्ताह में सामने नहीं आती है। इसके कई चेतावनी लक्षण होते हैं, जो कि माता-पिता को यह जानने में सहायता कर सकते हैं कि उनका बच्चा पिछड़ेपन का शिकार तो नहीं।

भाषा के विकास में देरः- अढ़ाई वर्ष की आयु तक बच्चा शब्द जोड़ कर वाक्य बनाने के योग्य होना चाहिये।

बोलचाल में तकलीफ़ः- तीन वर्ष की आयु तक बच्चे द्वारा कही आधी से अधिक बातें मां-बाप की समझ में आनी चाहिए।

तालमेल में तकलीफ़ः- स्कूल जाने से पहले बच्चे को जूतों के तस्में बांधना, बटन बंद करना और कूदना आना चाहिए।

ध्यान की कमीः- 3 से 5 वर्ष की आयु वाले बच्चे को एक छोटी कहानी सुनने के लिए चुपचाप बैठना आना चाहिए।

इन लक्षणों की तरफ़ ध्यान देने की आवश्यकता होती है। याद रखें कोई भी दो बच्चे एक ही ढंग से विकसित नहीं होते। ज़रूरी नहीं कि यह लक्षण पढ़ाई में पिछड़ेपन को ही ज़ाहिर करें। परन्तु इन के बारे में बच्चों के डॉक्टर के साथ बातचीत करनी ज़रूरी है।

जितनी जल्दी इस तरह की अयोग्यता का पता चले, उस समय से ही इन बच्चों के इलाज की आवश्यकता की ओर ध्यान देना चाहिये। पुराने समय में इस तरह की अयोग्यताओं को आमतौर पर नहीं पहचाना जाता था। बहुत सारे लोग ज़िंदगी के साथ संघर्ष करते थे और कुछ इन कमियों के साथ समझौता कर लेते थे। जब इस तरह की कमियों को स्वीकार नहीं कर सकते थे तब उनको निराशाओं का सामना करना पड़ता था। यह निराशा पढ़ाई छोड़ने, अपराधी बनने और बेरोज़गारी का कारण बनती थी।

वे बच्चे जिनकी पढ़ाई सम्बन्धित कमियों का पता नहीं लगता वे गुुस्सैल और निराश हो जाते हैं। यह ग़ुस्सा और निराशा भावनात्मक समस्याओं का कारण बनते हैं। वह अपने आप को बुद्धू समझते हैं जबकि उनकी बुद्धि प्रायः आम बच्चों से अधिक होती है। आवश्यकता से अधिक ग़ुस्सा, किसी से बात न करना या बेदिली इसी के ही लक्षण हैं। परिणामस्वरूप बच्चे की पढ़ने, लिखने और गणित में मुश्किलें और भी गहरी हो जाती है।

समय पर इलाज और ख़ास पढ़ाई इस तरह के बच्चों पर अच्छा प्रभाव डालती है। पारिवारिक प्यार और सहारा इन बच्चों को अपनी योग्यताएं स्वीकार करने में और उनके साथ जीवन व्यतीत करने में सहायता करते हैं। मां-बाप की ओर से प्यार और देखभाल बच्चों को अपने बारे में अच्छा सोचने में मदद करती है। यह बच्चों में आन्तरिक शक्ति और विश्वास की भावना पैदा करती है। बच्चों को प्यार और देखभाल की ज़रूरत अब भी और बाक़ी सारी ज़िंदगी में भी होती है।

किन व्यक्तियों को बच्चों की पढ़ाई सम्बन्धी कमियों के बारे में पता लग सकता है?

वे लोग जिन का बच्चों के साथ अधिक वास्ता पड़ता है वे माता-पिता, अध्यापक और उसका डॉक्टर हो। अध्यापक या डॉक्टर टेस्टों के ज़रिये बता सकते हैं कि क्या बच्चे को कोई तकलीफ़ है या नहीं? डॉक्टर बता सकता है कि आगे अन्य टेस्टों की आवश्यकता है या नहीं। जैसे कि आंखों का टेस्ट या सुनने की शक्ति सम्बन्धी टेस्ट। बच्चों का मनोवैज्ञानिक टेस्ट कराया जा सकता है। इसके अलावा कान, नाक या गले का चैॅकअप या बच्चे की भाषा विकास की पड़ताल इत्यादि की जा सकती है।

क्या पढ़ाई सम्बन्धी इस पिछड़ेपन का इलाज हो सकता है?

किसी भी अयोग्यता का पूर्णरूपेण ठीक हो जाना मुश्किल है, परन्तु अलग-अलग विशेषज्ञों की सलाह बहुत मदद कर सकती है। इन अयोग्यताओं के बावजूद कुछ बच्चे कुछ प्राप्त करने पर भरी-पूरी ज़िंदगी व्यतीत करना सीख सकते हैं।

बहुत सारे लोग और संस्थायें इन बच्चों का इलाज करने के लिए सरल तरीक़े बताते हैं। इन से सावधान रहने की ज़रूरत है। कई विशेषज्ञों के अनुसार नज़र के इलाज से लाभ हो सकता है। कुछ ख़ास खुराक और वर्जिश बताते हैं। कई विशेषज्ञों द्वारा बच्चों की शारीरिक ताक़त बनाए रखने के लिए और इलाज करने में विटामिनों का योगदान भी बताया जाता है। यह याद रखें कि इन इलाजों के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। पढ़ाई में अयोग्यता का कोई प्रत्यक्ष इलाज नहीं है। यह समस्या कठिन है परन्तु आमतौर पर ज़िंदगी भर की लड़ाई है।

इन अयोग्यताओं से पीड़ित बच्चों का क्या भविष्य है?

समय पर तथा शीघ्र अयोग्यता की पहचान और इलाज सबसे ज़रूरी है। सही मदद के सहारे यह बच्चे अपनी भावी ज़िंदगी में क़ामयाब हो सकते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलर्बट आईनसटाईन भी इस तरह की अयोग्यता से पीड़ित था। यह वैज्ञानिक तथा इस तरह के अन्य कई व्यक्ति अपनी इन अयोग्यताओं से ऊपर उठे और उन्होंने अपने लिये, राष्ट्र के लिए कई मुक़ाम हासिल किए।

वह व्यक्ति जो इस तरह की अयोग्यताओं से ऊपर उठना सीख लेते हैं वे ज़िंदगी में बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह की अयोग्यताओं से पीड़ित बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा वाला प्रोग्राम और सही डॉक्टरी सहायता आवश्यक है और उतना ही ज़रूरी मां-बाप, परिवार और मित्रों का प्यार तथा सहारा है।

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