-सिमरन

जाट आरक्षण के लिए आंदोलन के बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह से उसका विरोध हुआ उससे कई बातें मन में उठीं। आख़िर जाट आरक्षण का विरोध इस तरीक़े से क्यूं किया गया।

यह जाट आरक्षण का विरोध है:- यहां पहले मैं यह बात स्पष्ट करना चाहती हूं कि जिस प्रकार उग्र तरीक़े से आजकल आरक्षण का विरोध हुआ है वो केवल जाट आरक्षण का ही विरोध है। अगर आपके मैसेज या पोस्ट पर आप जाट नाम नहीं डालते तो भी इसको अन्डर्स्टुड मान लिया जाता है। यदि आरक्षण के विरोधी होते तो इतने पुरज़ोर तरीक़े से पहले भी विरोध कर रहे होते। अगर आप आरक्षण के विरोधी हैं तो पोस्ट डालते वक़्त कृपया स्पष्ट करें कि पहले से चले आ रहे आरक्षण के भी विरोधी हैं। वर्ना आप पहले से चली आ रही आरक्षित कैटिगरी के हितैषी होंगे जो कि स्वयं इस आंदोलन के ख़िलाफ़ है।

यह मांग ग़लत नहीं:- जब तक दूसरी किन्हीं जातियों का आरक्षण है तब तक किसी भी जाती के लिए अपने लिए ऐसी मांग करना ग़लत नहीं है। हालांकि मैं भी पूरी तरह आरक्षण के हक़ में नहीं। लेकिन उसके लिए पहले से चली आ रही ऐसी सुविधाएं बंद होनी चाहिएं। वर्ना जाटों को आरक्षण मिलने से आपके पहले से मरे हुए हक़ों में बढ़ौतरी नहीं होने वाली। जितनी जातियों को आरक्षण मिलेगा उतनी सामान्य वर्ग की जनसंख्या में कमी होगी। यानी एक तरह से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को आरक्षण मिलने से इस समस्या से उबरना आसान होगा। हां यदि अपने हक़ों के प्रति चिंतित जातियों को कोई बात करनी है तो वे यह सुनिश्चित करने की बात कर सकते हैं कि इनको आरक्षण देने के बाद आरक्षित सीटों में बढ़ावा नहीं कर दिया जाएगा। उसी 50% में ही इनको रखा जाएगा। मेरे हिसाब से मौजूदा स्थिति में यानी आरक्षण की नीति के चलते हर जाति के लिए अपने लिए आरक्षण की मांग करने पर कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए।

आरक्षण का आधार आर्थिक:- एक बात जो उठ रही है वो यह कि जाट ज़्यादातर सम्पन्न लोग हैं उनको आरक्षण की आवश्यकता नहीं है। तो मैं जाटों की तरफ़ से आपसे प्रश्न पूछती हूं कि क्या हमारे देश में आरक्षण के लिए ऐसा कोई प्रावधान है? क्या पहले से चले आ रहे आरक्षण का आधार आर्थिक है। पहले भी जाति के आधार पर आरक्षण हो रहा है और वे भी जाति के आधार पर आरक्षण मांग रहे हैं। तो ग़लत क्या हुआ? जब बाक़ी जातियों पर आर्थिक आधार लागू होगा तो इन पर भी हो जाएगा। क्या पूर्व आरक्षित जातियों में से सम्पन्न लोगों को इस सुविधा से दूर नहीं हटाया जाना चाहिए?

जाट आंदोलन में उग्र तत्व:- यहां अब मैं उस बात का ज़िक्र करना चाहती हूं जिस का हवाला देकर सारी बातों को ख़ारिज किया जाता है। जाट आंदोलन के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिनके कारण इनका प्रभाव धूमिल हुआ। लेकिन मेरा मानना यह है कि इस आंदोलन के दौरान या तो कुछ उग्र तत्व या ग़लत तत्व मिल गए जिनके कारण यह घटनाएं अंजाम हुई। कुछ हद तक उग्र होना तो आंदोलनों में तय माना जाता है लेकिन कुछ घटनाएं उस दौरान ऐसी हुईं जो हर्गिज़ क़ाबिले बर्दाशत नहीं थी। हालांकि इस आंदोलन की शुरूआत को ही साज़िश के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन मैं यहां किसी राजनीतिक बहस में उलझना नहीं चाहती। क्यूंकि किसी ने भी उकसाया, भड़काया या समझाया हो, सभी जाटों की भावनाएं तो इस आंदोलन के साथ जुड़ी ही थी। हम बाक़ी घटनाओं की बात यहां नहीं करते लेकिन औरतों के साथ होने वाली घटनाएं बेहद निंदनीय हैं। और यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां जब जब भी आंदोलन हुए हैं महिलाओं को भुगतना पड़ा है। पर हम आंखें मूंद कर इसका ज़िम्मा आंदोलनकारियों पर तो नहीं लगा सकते। जब कुछ वर्ष पहले पंजाब में आंदोलन चले थे तो महिलाओं के साथ दुर्घटनाएं तब भी हुई थी। बहुत से ऐसे लोगों को मैंने जाट आंदोलन का विरोध करते देखा जिनकी भावनाएं आज भी पंजाब में हुए आंदोलन के साथ जुड़ी हैं। यह सत्य है कि उन घटनाओं के ज़िम्मेदार हम उस आंदोलन को चलाने वाले नेताओं को नहीं मानते। पर क्या वो महिलाएं महिलाएं न थी? उन घटनाओं का ज़िम्मेदार कभी पुलिस को तो कभी विरोधी तत्वों को या शरारती अंसरों को मान लिया जाता रहा। अब हमारा संदेह क्यूं दूसरी तरफ़ नहीं जाता।

यहां मैं बहुत ही नाज़ुक मसले पर आपका ध्यान दिलाना चाहती हूं। आज़ादी की लड़ाई के लिए कितने आंदोलन हुए, कितनी शहादतें हुई, कितनी लम्बी लड़ाई लड़ी हमने। जिन लोगों के साथ मिलकर हमने इतनी लम्बी लड़ाई लड़ी आज़ादी मिलते ही हमारी और उनकी मां बहनों का जो हश्र हुआ वो क़ाबिले ज़िक्र नहीं। यहां मैं आपको पूछना चाहती हूं क्या आज़ादी की मांग जायज़ थी? क्या आप आंदोलनकारियों पर उंगली उठा पाएंगे?

इस घटना की निंदा बनती है। पर आंखें मूंद कर नहीं, सोच समझ कर। आप उन पर संदेह कर सकते हैं, उन पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते। चिन्तन इस बात पर होना चाहिए कि वास्तव अपराधी कौन हैं। आंदोलन को लांद्दित करने के चक्कर में असल अपराधी छूटने न पाएं।

आरक्षण नीति में मुख्य कमियां:- हालांकि आरक्षण की सुविधा अपने आप में एक सही प्रावधान नहीं है लेकिन जैसे कि स्पष्टतः इसके समाप्त होने की कोई संभावना नज़र नहीं आती तो कम से कम इसमें होने वाली कमियों की ओर अवश्य ध्यान जाना चाहिए।

सबसे पहली कमी तो है जाति की परख में ढुलमुल रवैया। यदि यह माना जा रहा है कि कुछ जातियां आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हैं तो जाति की सत्यता की परख में तो कम से कम सख़्ती बरती जाए। ताकि अन्य कोई बेईमानी से आरक्षण की सुविधा न ले सके। यहां मैं 1986 के बैच के आई. पी. एस ऑफ़िसर संजय भाटिया का उदाहरण देना चाहूंगी। SC के झूठे सर्टीफिकेट के कारण जहां उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा वहीं इससे कमिशन की भी आंखें खुली। इसके अलावा अन्य भी कई बार ऐसी धोखाधड़ी के केस लगातार सामने आते रहे हैं। केवल अनुसूचित जातियां ही नहीं अनुसूचित जनजातियों के झूठे केस भी सामने आए हैं। 1995 और 2000 के समय के दौरान जब सभी तरह के कोटे की चैकिंग हुई। इस दौरान तकरीबन 30% सर्टीफिकेट झूठे पाए गए।

दूसरी कमी आर्थिक तौर पर सम्पन्न लोगों को दिए जाने वाली सुविधा है जिसका ज़िक्र हम पहले भी कर चुके हैं। पिछड़ी जातियों के वे लोग जो इन सुविधाओं के चलते सम्पन्न हो चुके हैं उनको पीढ़ियों तक यह सुविधा दिया जाना बेहद अनुचित है।

तीसरी कमी है पद्दोन्नति में आरक्षण। जो लोग पहले से ही क़ाबिलीयत के बिना ही नौकरी पा जाते हैं कम से कम उनको पद्दोन्नति के लिए तो विशेष हक़ न मिलें। पहले नौकरी में, फिर पद्दोन्नति में उसके बाद दोबारा पद्दोन्नति में और फिर शायद अगली पद्दोन्नति में भी रियायत। यह कहां का इंसाफ़ है?

चौथी कमी है सामान्य वर्ग के हक़ में सेंध। इनमें से जो लोग सामान्य जातियों के साथ मुक़ाबला कर सकते हैं वे बाक़ी के 50% में से सीट पाने के हक़दार माने जाते हैं। पहले से ही हक़ों से वंचित जातियों के हक़ मारने का अधिकार उनको कदाचित् नहीं होना चाहिए। उनको 50% के अंदर ही आरक्षण मिलना चाहिए।

यहां मैं आरक्षण के विरोध में दलील देने वालों की बात रखना चाहती हूं जो कि अवश्य ध्यान देने योग्य है।

50% अनआरक्षित सीटें हैं- यानी सामान्य वर्ग के लिए 50% अवसरों पर प्रतिस्पर्धा के अवसर हैं।

OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के पास 27% आरक्षण है। यानी 50% अनआरक्षित सीटें + 27% उनका कोटा = 77% अवसर

SC (अनुसूचित जातियां) के पास 15% आरक्षित सीटें हैं। यानी 50% अनआरक्षित सीटें + 15% उनका कोटा= 65% अवसर

ST (अनुसूचित जनजातियां) के पास 7.5 आरक्षित सीटें हैं। यानी 50% अनआरक्षित सीटें + 7.5% उनका कोटा= 57.5% अवसर

यह है आरक्षण के वास्तविक अर्थ।

50% अनआरक्षित कोई कोटा नहीं है। यह अनआरक्षित सीटें सभी द्वारा भरी जाती हैं।

आज की वास्तविक स्थिति:-

OC की 50% सीटें सभी द्वारा भरी जाती हैं। OC का अर्थ Open Competition (खुली प्रतिस्पर्धा) है Other Caste (अन्य जातियां) नहीं। OC कोई कोटा नहीं है। OC / Unreserved (अनआरक्षित) / General (सामान्य वर्ग) का कोटा प्रत्येक जाति द्वारा भरा जाता है।

यहां मैं तमिलनाडु सरकार की तरफ़ से होने वाले रवैये का ज़िक्र भी ज़रूर करना चाहूंगी। 50% सीटों के आरक्षण के प्रावधान के बावजूद तमिलनाडु सरकार ने अपने तौर पर आरक्षित सीटों में बढ़ौतरी कर दी। सरकार की तरफ़ से आरक्षण बढ़ा कर 69% कर दिया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति उठाई है। कोर्ट की बात को दरकिनार कर सरकार अपने कोटे पर अडिग है। हालांकि अब कोर्ट ने हिदायत दी है कि यदि वे उनको ये सीटें देना ही चाहते हैं तो सीटें बढ़ा कर 100 की बजाए 119 करनी होंगी। 100 में से 50% सामान्य जातियों की रहनी चाहिएं उसमें कमी न हो। सीटें अतिरिक्त बढ़ा कर आरक्षित जातियों को दी जाएं। अब इस बारे में वहां आगे चल कर क्या होता है यह तो पता नहीं। पर यह भी कितना न्यायसंगत है, मुद्दा तो यह भी है।

ऐसे अन्याय पूर्वक माहौल में जाटों के आरक्षण के विरोध की बात सोचना कहां तक न्यायसंगत हो सकता है यह मेरी समझ से बाहर की बात है।

3 comments

  1. bhagwant singh

    Very Respected Editor Simran ji your views on Jatt reservation are commendable. My decided view is that reservation should be on economic basis only (if reservation is must). This country has suffered a lot on the issues of religion. Now a new concept of castes is gaining its roots. On the basis of economic condition people of all the religions and castes will be covered if eligible.
    Reservation is compromise with quality.Reservation in promotions is another hurdle in good administration.
    Thank you ji.

  2. आपकी कलम से शायद सियासत पर आधारित सामाजिक समस्या पर पहली बार लिखा गया है। सिमरन जी आपने बहुत साहसिक व तथ्यपूर्ण लेख लिखा है इसके िलए मेरी बधाई कबूल करें। असल में हर समस्या के बहुत सारे पहलू होते हैं जिन्हें व्यापक दृष्टि से देखने के बाद ही उसके साथ न्याय हो सकता है। जाट आंदोलन मेरी नजर में एक मांग कम पर जिद ज्यादा थी

  3. My husband and i ended up being joyous when John managed to conclude his inquiry from the precious recommendations he gained from your very own blog. It’s not at all simplistic to simply continually be freely giving methods many people have been trying to sell. Therefore we grasp we need the website owner to appreciate for that. These explanations you have made, the straightforward web site navigation, the relationships you will assist to promote – it is most incredible, and it’s really letting our son and the family reckon that the idea is excellent, which is certainly exceptionally vital. Thank you for all the pieces!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*