एस. मोहन

वक़्त से डरो

दो पुत्रों और एक पुत्री की मां बीरो को ज़िंदगी में कोई सुख नहीं मिला था। दोनों पुत्र अपना विवाह होते ही दूर-दूर जा बसे थे। मां और बहन किस हालत में हैं उन दोनों ने मुड़ कर भी नहीं देखा। ऐसे में पड़ोस में रह रहे राय बाबू को व्यंग्य बाण छोड़ते हुए ज़रा भी दया नहीं आती थी।

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इसके बाद

रात बहन ने डॉक्टर भैया को बताया, 'तुम्हारी दवाई का ज़रा भी असर नहीं हुआ, पिता जी की हालत पहले से बेहतर नहीं है, तुम आ जाते तो...' डॉक्टर साहब बीच में बोल उठे, 'मैं अभी नहीं आ पाऊंगा, अभी तो पूरी तरह चार्ज भी नहीं लिया

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चांदनी का प्रतिशोध

हर इंसान के जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घटती हैं जिन्हें लाख चाह कर भी हृदय से निकाला नहीं जा सकता फिर वो घटना जो किसी के बहुत अपने व्यक्ति की हो तो जिस्म का अंग-अंग कट कर गिरता सा लगता है वो इंसान ऊपर से नीचे तक खून से लथपथ होकर भी चिल्ला नहीं सकता, रो नहीं सकता। यादों ...

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सोचें वक़्त से पहले

-एसः मोहन वैसे तो हमारे समाज में लड़की पैदा होना ही मां-बाप को एक बोझ का अहसास कराता है। लड़की पैदा करने की हीन भावना शनैःशनैः लड़की के साथ-साथ बढ़ती जाती है। लड़की के जवान होते ही मां-बाप की आपाधापी चरम सीमा पर पहुंच जाती है। फलतः मां-बाप बिना सोचे समझे ऐसे धोखे का शिकार हो जाते हैं जिसका प्रायश्‍च‍ित ...

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