कनु भारतीय

विवशता

“मम्मी! आप मेरी मदद क्यों नहीं करतीं? आप तो अच्छी तरह जानती हैं कि मुझे पढ़ाई का कितना शौक़ है। इसी तरह चलता रहा तो मैं सिनॉपसिस कैसे तैयार करूंगी?” उसकी आंखों में आंसू आ गए। “मैं तेरे भइया से आगे नहीं चल सकती।” मां ने सपाट स्वर में कहा।

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बेटी की किताब में प्रेमपत्र

-कनु भारतीय   मेरे साथ वाले पड़ोसी के घर में शाम के पांच बजे चीखने-चिल्लाने व गाली-गलौच की तेज़-तेज़ आवाजें आ रही थीं। आस-पास की महिलाएं पहले तो उनके घर के बाहर इक्‍ट्ठी खड़ी रहीं फिर उनमें से अधिकतर यह कहकर बाहर से ही लौट गयीं कि यह उनके घर का मामला है। फिर भी चार-पांच औरतें हिम्मत करके अंदर ...

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