डॉ. प्रदीप शर्मा स्नेही

मेरा कुछ भी नहीं

मेरे पिता का अब "मेरा" कुछ भी नहीं है क्योंकि मैं उसका बेटा नहीं हूं उसके तथाकथित 'कुलीन कुल' का दीपक भी नहीं हूं न ही उसके वंश साम्राज्य का प्रतीक ही हूं

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देवता

आधी रात को मुंशी अब्दुर्रहीम की नींद खुली तो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य चन्द्रभान को पैर दबाते पाया। ‘‘चन्द्रभान, तू सोयेगा कब ? क्या सारी रात मेरे पैर ही दबाता रहेगा पगले ! रात बहुत हो गई है जा अपने घर और सो जा।’’ मीठी झिड़की देते हुए मुंशी जी ने कहा। चन्द्रभान को गुरूभक्‍ति का नशा था। प्रतिदिन रात्रि ...

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