डॉ. सुरेन्द्र कुमार ‘अंशुल’

नारी की नियति

कहानी में फै़सला तुमने पाठकों पर छोड़ दिया। लेकिन तुम्हारे विचार में तुमने उसके शोषण के प्रति क्या निर्णय लिया? क्या उसकी कोई मदद...।

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पुस्तक की क़ीमत

"जी, यहां मेरा मायका है।" युवती बिस्कुट खाते हुए बोली।पहली बार सुखनजीत को लगा कि वह धोखे में था क्योंकि उसे कहीं से भी युवती विवाहित नहीं लग रही थी। "आप शादीशुदा हैं?"

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मिट्टी के दीये

बूढ़ा कुम्हार बोला, "बेटी ये दीये हमने अपने लिए पूजा के लिए पानी में भिगो कर रखे थे। 21 दीयों में से 11 दीये मैं तुम लोगों के लिए ले आया हूं। अरे पूजा ही करनी है तो हम 21 की जगह 7 दीयों से कर लेंगे। 11 दीयों से तुम पूजा कर लेना।

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खुशबू

  -सुरेन्द्र कुमार ‘अंशुल’ आज मैं बहुत खुश हूँ। आँखों से नींद कहीं दूर छिटकी हुई थी। खुली खिड़की के उस पार मुस्कराते हुए चाँद को देख कर मेरे होंठ मंद ही मंद मुस्करा रहे हैं। मन का पंछी नीले आकाश पर फैले बादलों के पास उड़ान भर रहा है। क्यों न हो ऐसा? आज … हाँ आज ही मुझे ...

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