नील कमल ‘नीलू’

जज़बात

आज भी जी भर आता है उस दहलीज़ से क़दम बाहर रखते हुए कितना कुछ ले आती हूं साथ कुछ धुले-धुले से जज़्बात मुस्कुराती हुई कुछ यादें और बहुत बुज़ुर्ग हो चुकी वो दो जोड़ी आंखें

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दस्तक

ना हुई कोई आहट ना नज़र कोई आया क्यों लगा जैसे किसी ने बुलाया... यादों के बगीचे में कुछ पत्तियां सरसराईं खुशबू कुछ गुलाबों की मेरे होठों पे मुस्कुराई मानों दी किसी ने दस्तक

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एक अक्स

एक महकता सा ख़याल इक खुशनुमा सी याद ख़्वाबों में एक अक्स तुम्हीं तुम होते हो जब तुम नहीं होते आईने में मुख़ातिब तसवीरों में रूबरू

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हमसफ़र ग़र हमराज़ न हो तो

-नील कमल ‘नीलू’ ज़िंदगी के सफ़र की मुख़्तलिफ़ राहों पर, मुख़्तलिफ़ मुक़ामों पर कहीं न कहीं किसी हमराज़ की ज़रूरत अकसर पेश आ ही जाती है। क्योंकि अगर अपने राज़ दिल के अंदर ही दबा लिए जाएं, तो वो राज़, राज़ नहीं रहते बोझ हो जाते हैं। दिल की हर बात हर राज़ कभी न कभी, किसी न किसी के ...

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