-प्रेम प्रकाश शर्मा सृष्टि-योजना में किसी भी तत्व, पदार्थ, स्थिति, कृत्ति, भाव आदि के ठीक–ठीक मूल्यांकन कर सकने से पूर्व उसके मर्म को समझ लेना अनिवार्य होना चाहिए । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि ‘धर्म’ क्या है, यह निश्चित किया जाए। कहा गया है ‘धारयति इति धर्म:।’ अर्थात् जो धारण करें, वही धर्म ...
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