शबनम शर्मा

सानिध्य

जी चाहता है, प्यार की सफ़ेद कम्बली ओढ़कर, छिपा लो मुझे अपने अन्तस्तल में, छिप जाऊं तुम्हारे विशाल वक्ष में जी भर के सो लूं,

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एहसास

सौंप कर अपने दिल का टुकड़ा तुम्हें, मैं निश्चिन्त हो गई, पर कैसे? उग गये मेरे हदय पटल पर एक की जगह दो पौधे जिन्हें साथ-साथ बढ़ता, लहराता देखना चाहती।

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स्वपन

गोद में नन्हें को लिये, मुस्करा रही थी, खुद ही खुद बतिया रही थी, मेरा राजा बेटा, मेरा राजकुमार मेरी आंखों का तारा

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पोटली

बड़े नाज़ों से पाल पोस मैंने पकड़ा दी अपने प्राणों की डोर किसी अनजान पथिक को, देना चाहती हूं समस्त संसार की खुशियां

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गांव मुझे पहचानता नहीं

बरसों बाद वहीं पगडंडी वहीं आंखें ढूंढ़ती जामुन, आम, पीपल, बड़ के वृक्षों की छाया कुएं से पानी लाती बन्तो चौपाल के बुज़ुर्ग

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अहसास

अचानक उसका तबादला दूर-दराज़ किसी स्थान पर हो गया और इधर उसकी बीवी आपातकलीन स्थिति में। रामस्वरूप को समझ नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करे

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लड़की जब सोलह साल की हुई

आईना शरमाने लगा, यौवन बल खाने लगा, लड़की जब सोलह साल की हुई। बाबुल के जूते सरकने लगे, मैया के सपने चटकने लगे, लड़की जब सोलह साल की हुई।

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पैबंद

ज़र्रा-ज़र्रा, कतरा-कतरा दुश्मन मेरा होता गया सिलसिला हर बात से जब तेरा होता गया तेरे नाम का जो पैबंद मेरी जिंदगी पर लग गया

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रास्ता

होश संभलते ही शुरू हो गया चलना ज़िन्दगी के रास्ते की ओर, बिन परवाह किए, गरम हवाओं की, सरद थेपड़ों की बर्फीले टीलों की

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